जम्मू कश्मीर में हुए आतंकी हमले को याद करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और प्रति पक्ष के नेता गुलाब नबी आजाद खूब रोए। भारत में यह है हिन्दू और मुसलमानों का रिश्ता। मोदी-आजाद के संवाद से बड़ी कोई घटना नहीं हो सकती। मुझे फख्र है मैं भारतीय मुसलमान हंू। आखिर मुस्लिम देशों में मुसलमान किस से लड़ रहे हैं?-आजाद।

सवाल यह नहीं है कि 9 फरवरी को राज्यसभा में प्रति पक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद को सदन से विदाई देते समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तीन बार रोए। अहम सवाल उस संवाद का है जो वर्ष 2005 में जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच हुआ। भारत में हिन्दू और मुसलमानों के रिश्तों को दर्शाने के लिए आजाद-मोदी के संवाद से बड़ी कोई बात नहीं हो सकती। आंखों से आंसू टपकाते हुए मोदी ने राज्यसभा में कहा कि जब जम्मू कश्मीर में गुजरात के पर्यटकों की बस पर आतंकी हमला हुआ, तब गुलाम नबी आजाद ने रोते हुए मुझे घटना की जानकारी दी। मुझे वह क्षण याद है जब फोन पर आजाद लगातार रोते रहे। जितनी देर आजाद ने मुझ से बात की उतनी देर उनकी आंखों में आंसू रहे। आजाद की स्थिति से अंदाजा लगाया जा सकता था कि उनके मन में गुजराती पर्यटकों की मौत का कितना दु:ख है। मोदी जब आतंकी हमले का जिक्र कर रहे थे, तब उनके मुंह से कई बार शब्द नहीं निकले। मुंह से शब्द निकलने के बजाए आंखों से आंसू टपक रहे थे। जब मोदी से बोला नहीं गया, तो उन्होंने आजाद की ओर देखते हुए सैल्यूट किया। इसी प्रकार जब आजाद ने अपना विदाई भाषण दिया, तब वर्ष 2005 में हुए आतंकी हमले का उल्लेख किया। आजाद ने बताया कि वर्ष 2005 में मुख्यमंत्री बनने के दो दिन बाद ही कश्मीर में आतंकियों ने गुजरात के पर्यटकों से भरी बस पर हमला कर दिया। कश्मीर में नए मुख्यमंत्री का आतंकवादी इसी तरह स्वागत करते थे। इस हमले में कोई दर्जन भर गुजराती पर्यटक मारे गए। मैं जब एयरपोर्ट पर शवों को विमान में रखवाने के लिए पहुंचा तो छोटे छोटे बच्चे मेरे पैरों में लिपट गए। तब मैं जोर से रोया। मेरे पास उन बच्चों को जवाब देने के लिए शब्द नहीं थे। मेरी अल्ला-भगवान से दुआ है देश से आतंकवाद खत्म किया जाए। आजाद ने आंसू पौंछते हुए कहा कि इस घटना पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भावुक होना स्वभाविक है। भारत में हिन्दू और मुसलमानों के बीच रिश्तों को मोदी-आजाद के संवाद से समझा जा सकता है। विपक्ष का नेता रहता हुए आजाद ने कई बार सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आलोचना भी की, लेकिन 9 फरवरी को प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह प्रति पक्ष के नेता का प्रशंसा की वह भारतीय लोकतंत्र की उजली तस्वीर प्रस्तुत करती है। यदि प्रति पक्ष के नेता की सदन से विदाई के समय देश का प्रधानमंत्री आंसू बहाए तो राजनीति की इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है? जो लोग नरेन्द्र मोदी पर लोकतंत्र को कमजोर करने का आरोप लगाते हैं, उन्हें 9 फरवरी की घटना से सबक लेना चाहिए। मोदी आज इसलिए प्रधानमंत्री हैं कि उन्हें देश की जनता का समर्थन है। मोदी के आंसुओं से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनका दिल और मन कितना संवेदनशील है। हो सकता है प्रधानमंत्री के इन आंसुओं पर भी राजनीति हो, लेकिन यह मौका हिन्दू और मुसलमानों के रिश्तों को समझने का भी है।

फख्र है मैं भारतीय मुसलमान हंू:

अपने विदाई समारोह में आजाद ने कहा कि मुझे फख्र है कि मैं भारतीय मुसलमान हंू। आज अनेक मुस्लिम देश आपस में लड़ कर खत्म हो रहे हैं। सवाल उठता है कि क्या मुस्लिम देशों में हिंदुओं से जंग लड़ी जा रही है? भारत में मुसलमान सुकून और सम्मान के साथ रह रहा है। मैं खुश किस्मत हंू कि मुझे कभी भी पाकिस्तान जाने का अवसर नहीं मिला। आजाद ने कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा पर भी चिंता जताई। आजाद ने कहा कि सदन में कई बार मैंने सरकार की आलोचना की, लेकिन नरेन्द्र मोदी ने कभी भी व्यक्तिगत तौर पर नहीं लिया। मेरे जन्मदिन और ईद के अवसर पर पीएम मोदी ने हमेशा फोन पर मुझे बधाई दी है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (09-02-2021)

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