दिल्ली हिंसा की आरोपी दिशा रवि को जमानत मिलने और न्यायाधीश की सख्त टिप्पणी से देश के प्रगतिशील बुद्धिजीवी बहुत खुश हैं। लेकिन एक लाख के ईनामी लक्खा की किसान रैली में उपस्थिति और फिर फरारी तथा पश्चिम बंगाल में एक नेता की एवज में उसके दो मासूम बेटों को उठा ले जाने पर चुप हैं।
देश के प्रगतिशील माने जाने वाले बुद्धिजीवी अब सोशल मीडिया पर दिल्ली के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेन्द्र राणा की जमकर प्रशंसा कर रहे हैं। ऐसे बुद्धिजीवियों का कहना है कि न्यायाधीश राणा ने सरकार के घमंड को सही आईना दिखाया है। इन बुद्धिजीवियों में वे भी शामिल हैं जिन्हें कभी कभी भारत की न्यायपालिका स्वतंत्र नजर नहीं आती हैं। ऐसे बुद्धिजीवियों को अदालतों के कई फैसले सरकारी दबाव में नजर आते हैं। 23 फरवरी को न्यायाधीश राणा ने 26 जनवरी की दिल्ली हिंसा की आरोपी दिशा रवि को न केवल जमानत पर छोडऩे के आदेश दिए, बल्कि दिल्ली पुलिस की कार्यशैली पर भी सख्त टिप्पणी की। न्यायाधीश राणा का कहा रहा कि लोगों को सिर्फ इसलिए जेल में नहीं डाल सकते कि वे सरकार की नीतियों से असहमत हैं। सब जानते हैं कि दिशा रवि ने स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग के साथ मिलकर सोशल मीडिया पर भड़काने वाले संदेश प्रसारित किए। 26 जनवरी को दिल्ली में जो कुछ भी हुआ उसे न्यूज़ चैनलों पर देश की जनता ने देखा। दिल्ली पुलिस के 400 जवान जख्मी हो गए। लाल किले पर हुए तांडव को भी सबने देखा। दिल्ली पुलिस ने जो धैर्य रखा उसकी देशभर में प्रशंसा हो रही है। न्यायाधीश राणा की टिप्पणी अपनी जगह हैं, लेकिन इस टिप्पणी की आड़ में सोशल मीडिया पर केन्द्र सरकार को उपदेश और नसीहत देने वाले बुद्धिजीवी बताएं कि 23 फरवरी को ही पंजाब के बंटिडा में एक किसान रैली में भाषण करने के बाद एक लाख का ईनामी अपराधी लक्खा सिघाना कैसे फरार हो गया? जबकि दिल्ली पुलिस ने पंजाब पुलिस को पहले ही बता दिया था कि लक्खा रैली में आएगा। रैली से फरारी के बाद पंजाब पुलिस का कहना रहा कि भीड़ में लक्खा को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता था। यानि दिल्ली हिंसा का आरोप कांग्रेस शासित पंजाब में धड़ल्ले से रैलियां कर सकता है। इतना ही नहीं पश्चिम बंगाल में जब भाजपा नेता राकेश सिंह अपने घर पर नहीं मिले तो कोलकाता पुलिस उनके दो मासूस बेटों को उठा लाई। बेटी चिल्लाती रह गई, लेकिन बेरहम पुलिस वाले दोनों बच्चों को जबरन जीप में डाल कर ले गए। क्या पिता की एवज में बेटों को उठाकर ले जाया जा सकता है? बंगाल पुलिस की नजर में राकेश सिंह दोषी हो सकते हैं, लेकिन उनके बेटों का क्या कसूर है? राकेश सिंह पर भी सीधा कोई आरोप नहीं है। पिछले दिनों पुलिस ने 10 ग्राम कोकीन रखने के आरोप में पामेला सिंह नाम की एक लड़की को गिरफ्तार किया था। इस लड़की का ही आरोप है कि राकेश सिंह ने साजिश कर उसे फंसाया है। पश्चिम बंगाल में किस तरह पुलिस का इस्तेमाल हो रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है। भाजपा नेता राकेश सिंह के बेटों पर हुई कार्यवाही को बदले की भावना से प्रेरित बताया जा रहा है। 23 फरवरी को सुबह ही पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के सांसद भतीजे अभिषेक बनजी की पत्नी रुजिरा बनर्जी से सीबीआई के अधिकारियों ने कोयला तस्करी के प्रकरण में पूछताछ की । रुजिरा बनर्जी थाईलैंड की नागरिक हैं और आरोप है कि कोयले की ब्लैक मार्केटिंग करने वाले लोगों ने रुजिरा के विदेशी खातों में लाखों रुपया जमा करवाया है। क्या सीबीआई को ऐसे प्रकरण में पूछताछ का भी अधिकार नहीं है? सीबीआई के अधिकारियों ने पूरी शालीनता और पूर्व सूचना देकर घर पर ही रुजिरा से पूछताछ की है। लेकिन ममता बनर्जी के इशारों पर काम करने वाली बंगाल पुलिस तो राकेश सिंह के मासूम बेटों को यूं ही उठा लाई। किसान रैली से लक्खा सिधाना की फरारी और राकेश सिंह के बेटों को दबोचने पर प्रगतिशील बुद्धिजीवियों को प्रतिक्रिया देनी चाहिए।
S.P.MITTAL BLOGGER (24-02-2021)
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