अधिक बच्चे वाले परिवार का बोझ आखिर करदाता कब तक ढोएगा? उत्तर प्रदेश हो या असम। जनसंख्या नियंत्रण की नीति का स्वागत किया जाना चाहिए। इसे वोट की राजनीति से जोड़कर न देखा जाए।
उत्तर प्रदेश और असम जैसे राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए अनेक प्रस्तावों का ऐलान किया है। अभी इन प्रस्तावों पर आम लोगों और धर्मनिरपेक्षता का झंडा बुलंद करने वालों से सुझाव और मांगे गए हैं। लेकिन सवाल उठता है कि अधिक बच्चों वाले परिवारों का बोझ कर दाता कब तक ढोएगा? चाहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हो या कांग्रेस शासित राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत। ये लोग आप लोगों को जब भी कोई सुविधा देने की घोषणा करते हैं तो उसके खर्च का बोझ देश के करदाताओं पर ही आता है। कोविड काल में कोरोना की दूसरी लहर में अप्रैल से नवम्बर तक देश के 80 करोड़ लोगों को पांच किलो प्रति माह गेहूं मुफ्त में देने की घोषणा की गई है। यदि नरेंद्र मोदी एक किलो गेहूं 20-22 रुपए प्रति किलो के हिसाब से खरीदते है तो 80 करोड़ लोगों के लिए प्रतिमाह खरीदे गए गेहूं के खर्च का अंदाजा लगाया जा सकता है। चूंकि मोदी सरकार का नारा सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास है, इसलिए उन परिवारों को भी मुफ्त में गेहूं मिलेगा, जिनके बच्चों की संख्या अधिक है। यदि बच्चों की संख्या कम होगी तो सरकार को गेहंू की खरीद कम करनी पड़ेगी। यदि गेहूं कम खरीदा जाएगा तो खर्च भी कम आएगा। इससे करदाता पर बोझा भी कम पड़ेगा। पेट्रोल डीजल की कीमतों में वृद्धि को लेकर आए दि हो हल्ला मचाया जाता है। लेकिन कोई यह सवाल नहीं उठता कि 80 करोड लोगों को प्रतिमाह पांच किलो गेहूं कहा से दिया जा रहा है? अब यदि कोई राज्य अधिक बच्चों वाले परिवार को कुछ सरकारी सुविधाओं से वंचित कर रहा है तो इस नीति का सभी को स्वागत करना चाहिए, यह अच्छी बात है कि जिन परिवारों में एक या दो बच्चे हैं उन्हें सुविधाओं में इजाफा किया जा रहा है। वाकई उन लोगों को सुविधाएं मिलनी चाहिए जो कम बच्चे पैदा कर देश के विकास में भागीदार है। हर कोई चाहता है कि भारत भी चीन की तरह मजबूत देश बने, लेकिन चीन के कानून मानने का कोई तैयार नहीं है। चीन में एक बच्चे की राष्ट्रीय नीति है। इस नीति के खिलाफ बोलने की किसी की हिम्मत नहीं है। चाहे कोई किसी भी धर्म का नागरिक हो। लेकिन उसे सरकार के कानून का ही पालन करना होगा। हमारे तो लोकतांत्रिक व्यवस्था है, जिसमें हर व्यक्ति अपने धर्म के नियमों के अंतर्गत रहने को आजाद है। भारत में समान नागरिक आचार संहिता की मंशा लगातार हो रही है, लेकिन धर्मनिरपेक्षता का झंडा उठाने वाले ऐसा नहीं होने देते हैं। अब समय आ यगा है कि जब देश में जनसंख्या नियंत्रण और सिविल कोड जैसे नियम कानून लागू किए जाए। यदि देश मजबूत नहीं होगा तो फिर कट्टरपंथी ताकतें मजबूत होंगी। पड़ोसी देश अफगानिस्तान में इस्लामिक कट्टरपंथी विचारधारा वाले लोगों का ही दबदबा है। भारत की स्थिति का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि अफगानिस्तान पर कब्जा करने वाले तालिबानी लड़ाके अब चीन को अपना दोस्त बता रहे है। हमें यह भी समझना चाहिए कि दुनिया में मुसलमान सबसे ज्यादा सुकून और सम्मान के साथ भारत में ही रहता है। करोड़ों मुसलमान कट्टरपंथियों के सामने चुप रहते हैं। जबकि हिन्दू समुदाय ने सूफीवाद को भी स्वीकार किया है। इसी सूफीवाद का सम्मान करते हुए करोड़ों हिन्दू मुस्लिम सूफी संतों की दरगाहों में जाकर जियारत करते हैं। जो हिन्दू दरगाह में जाकर मुस्लिम सूफी संतों की मजार पर सिर झुकाता है, वह मुस्लिम विचारों का विरोधी नहीं हो सकता है, इस विचार को कट्टरपंथियों को समझना होगा। S.P.MITTAL BLOGGER (12-07-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9799123137To Contact- 9829071511