अफगानिस्तान के हालातों से सबक ले कश्मीर के मुसलमान। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में पंजाबी मुसलमानों की संख्या बढ़ी। अनुच्छेद 370 के हटने के दो साल पूरे। अफगानिस्तान के राजदूत फरीद ने ख्वाजा साहब की दरगाह में सूफी परंपरा के अनुरूप जियारत की।

5 अगस्त 2021 को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटे दो वर्ष पूरे हो रहे हैं। आमतौर पर कश्मीर में शांति हैं, और पहले की तरह पर्यटकों की भीड़ होने लगी है। कश्मीरियों का प्रमुख कारोबार पर्यटन उद्योग ही है। पर्यटकों के आने से कश्मीरियों की आर्थिक स्थिति भी सुधरी है। लेकिन पाकिस्तान नहीं चाहता है कि कश्मीर के हालात अच्छे हो, इसलिए अभी भी कश्मीर में आतंकी हमले हो रहे हैं तथा ड्रोन उड़ा कर भारतीय सुरक्षा बलों को परेशान किया जा रहा है। ऐसे में कश्मीरी मुसलमानों को अफगानिस्तान के हालातों से सबक लेना चाहिए। अमरीका सेना के हटने के बाद अफगानिस्तान में मुस्लिम संगठन तालिबान की पकड़ मजबूत होती जा रही है। तालिबान लड़ाके कंधार और काबुल तक पहुंच गए हैं। तालिबान को देखकर लाखों अफगानी पड़ोसी देशों में शरण लेने को मजबूर हैं। सवाल उठता है कि जब अफगानिस्तान मुस्लिम राष्ट्र हैं तब तालिबान के लड़के किन्हें मार रहे हैं? जाहिर है कि अफगानिस्तान में मुसलमान मारे जा रहे हैं। तालिबान के लड़ाके बेरहमी से महिलाओं को भी मौत के घाट उतार रहे हैं। तालिबान पूरी दुनिया पर शरिया कानून लागू होने का पक्षधर है। कश्मीर के मुसलमान अपनी मौजूदा स्थिति और अफगानिस्तान के हालातों का अध्ययन करें। कश्मीर के मुसलमानों को साफ पता चलेगा कि भारतीय कानून के अंतर्गत वो बड़े आराम से रह रहे हैं। कश्मीर में लोकतांत्रिक व्यवस्था ही नहीं बल्कि लोक कल्याणकारी राज्य का शासन भी है। जहां राशन सामग्री से लेकर चिकित्सा, शिक्षा आदि की नि:शुल्क व्यवस्था है। अपने अधिकारों के लिए अदालतें भी खुली हैं। क्या ऐसी सुविधा अफगानिस्तान में है? अफगानिस्तान में ऐसी सुविधाओं की कल्पना भी नहीं की जा रही है, क्योंकि अफगानिस्तान हमारी सीमा से लगा हुआ है। कल्पना कीजिए यदि कश्मीर के चरमपंथियों ने तालीबान के लड़ाकों के संपर्क में आते हैं तो कश्मीर के क्या हालात होंगे? तालीबान को तो महबूबा मुफ्ती की नेतागिरी और फारुख अब्दुल्ला की चालाकियां भी पसंद नहीं है। अब्दुल्ला परिवार और महबूबा मुफ्ती भले ही सुरक्षा बलों की आलोचना करे, लेकिन यदि यही सुरक्षा बल इन दोनों नेताओं की सुरक्षा नहीं करें तो ऐसे नेता अपने घरों में मारे जाएं। कश्मीरियों को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के हालात भी देखने चाहिए। पीओके में अधिकांश कश्मीरी मारे जा चुके हैं और अब वहां पंजाबी मुसलमानों की संख्या ज्यादा है। पीओके में रह रहे कश्मीरी खुद पाकिस्तान के चंगुल से बाहर निकलना चाहते हैं। महबूबा मुफ्ती और फारुख अब्दुल्ला जैसे नेता माने या नहीं, लेकिन आम कश्मीरी मानता है कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद अनेक सुविधाओं में इजाफा हुआ है। कश्मीरियों के सहयोग के कारण ही कश्मीर में पर्यटन को बढ़ावा मिला है।राजदूत ने की जियारत:तालिबान के लड़ाके जब काबुल और कंधार पहुंच गए हैं, तब एक अगस्त को दिल्ली स्थित अफगानिस्तान के राजदूत फरीद ममुंडने ने अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा साहब की दरगाह में सूफी परंपरा के अनुरूप जियारत की। तालिबान की सोच सूफी परंपरा के विपरीत है। यही वजह है कि अपने मुल्क में अमन चैन के लिए फरीद ने सूफी परंपरा के अनुरूप दुआ की। अफगानिस्तान के हालात ऐसे है जिसमें फरीद ममुंडने का काबुल जाना भी कठिन है। तालिबान जिस विचारधारा को ला रहा है, उससे अफगानिस्तान के मुसलमान भी भयभीत है तो कश्मीर के हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। भारत दुनिया में एकमात्र ऐसा देश हैं, जहां लोग अपने धर्म के अनुरूप रह सकते हैं। यह भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की खूबसूरती है। S.P.MITTAL BLOGGER (02-08-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9799123137To Contact- 9

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