अमित शाह का तीन दिवसीय कश्मीर दौरा आतंकियों की चुनौती के सामने कश्मीरियों की हौसला अफजाई है। पाकिस्तान के मुद्दे पर अब्दुल्ला और मुफ्ती के खानदानों को मुंहतोड़ जवाब भी दिया। 1947 के अक्टूबर के इन्हीं दिनों में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी कबाइलियों को कश्मीर से खदेड़ा था।
26 अक्टूबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह कश्मीर का तीन दिवसीय दौरा कर दिल्ली लौट आए हैं। शाह ने 23 अक्टूबर को दौरा तब शुरू किया था, जब हमारे सुरक्षा बल कश्मीर घाटी के जंगलों में उन आतंकियों से मुकाबला कर रहे थे, जिन्होंने निर्दोष कश्मीरियों और प्रवासी हिंदुओं को मारा था। इन्हीं दिनों प्रवासी हिन्दुओं के कश्मीर से पलायन के फोटो भी अखबारों में छपे और कोई नेता होता तो ऐसे तनावपूर्ण माहौल में कश्मीर का दौरा स्थगित कर देता। हो सकता है कि तनावपूर्ण माहौल को देखते हुए खुफिया एजेंसियों ने भी शाह का दौरा रद्द करने की सलाह दी हो। लेकिन इसे अमित शाह की दिलेरी ही कहा जाएगा कि विपरीत परिस्थितियों में भी दौरा किया। तय कार्य्रकम के मुताबिक श्रीनगर से लेकर जम्मू तक में सभाएं की और जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारियों से विकास कार्यों का जायजा लिया। अमित शाह का यह दौरा कश्मीरियों और प्रवासी हिंदुओं की हौसला अफजाई बढ़ाने वाला रहा। यदि इस मौके पर अमित शाह अपना दौरा रद्द कर देते तो आतंकियों और पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं को जश्न मनाने का अवसर मिल जाता। जिस श्रीनगर में आतंकियों ने पानी पूडी बेचने वाले बिहार के एक हिन्दू को मौत के घाट उतारा, उसी श्रीनगर के शेरे-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में आयोजित सभा में पोडियम से बुलेटप्रूफ शीशे भी अमित शाह ने हटा दिया। शाह ने कहा कि अब किसी को किसी से डरने की जरुरत नहीं है। ऐसे सुरक्षा कवच आम लोगों से संवाद में बाधा डालते हैं, इसलिए हटाए जाने चाहिए। सब जानते हैं कि कश्मीर के मुद्दे पर फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के खानदानों के लोग पाकिस्तान से बातचीत करने का दबाव भारत सरकार पर डालते रहे हैं, लेकिन ऐसे खानदानों को भी अमित शाह ने अपने कश्मीर दौरे में मुंह तोड़ जवाब दिया। शाह ने कहा कि हम पाकिस्तान से नहीं बल्कि कश्मीर के युवाओं से सीधी बात करेंगे। जाहिर है कि शाह ने खानदानों की मांगों को खारिज कर दिया है। सही भी है कि जब हम कश्मीरियों से संवाद कर रहे हैं तो पाकिस्तान से क्यों करें। अनुच्छेद 370 के हटने के बाद खुद कश्मीरियों ने महसूस किया है कि विकास के क्या मायने होते हैं। हजारों कश्मीरी युवाओं को जहां सरकारी नौकरियां मिली, वहीं पर्यटन के बढऩे से हजारों परिवारों को रोजगार मिला है। कश्मीरियों की आय का मुख्य स्त्रोत पर्यटन उद्योग ही है और यह उद्योग तभी चलेगा, जब कश्मीर में शांति होगी। कश्मीरी नागरिक खास कर मुसलमान भी अब समझ गए हैं कि देश की मुख्यधारा से जुड़े रहने में भी फायदा है। कश्मीरियों के सामने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के मुजफ्फराबाद के हालात सामने हैं। यहां भुखमरी जैसे हालात है, जबकि हमारे कश्मीर में लोगों को अनेक सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है। अमित शाह के दौरे की एक खास बात यह भी है कि यह दौरा 1947 के अक्टूबर की याद दिलाता है। सब जानते हैं कि 14 और 15 अगस्त 1947 को जब अंग्रेजों ने पाकिस्तान और भारत को अलग अलग राष्ट्र घोषित किया, तब कश्मीर के राजा हरिसिंह ने कश्मीर को भारत और पाकिस्तान से अलग रखा। तब अक्टूबर में पाकिस्तानी सेना की मदद से कबाइलियों ने कश्मीर में मार काट शुरू कर दी। हालात बिगड़ते देख राजा हरिसिंह ने स्वयं को भारत में शामिल होने की घोषणा की। उस समय सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के गृहमंत्री थे। पटेल ने ही हरिसिंह से संवाद किया और तब अक्टूबर के इन्हीं दिनों में पाकिस्तानी कबाइलियों को कश्मीर से खदेड़ा। तब यदि यूएनओ और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का दखल नहीं होता तो सरदार पटेल और भारतीय सेना मुजफ्फराबाद से भी कबाइलियों को भगा देते। लेकिन तब यथास्थिति को स्वीकार किया गया और इसलिए हमारे कश्मीर के दो जिले पाकिस्तान के कब्जे में रह गए। अब कबाइलियों के भेष में पाकिस्तानी आतंकी कश्मीर में आ रहे हैं। अमित शाह ने गृहमंत्री बनने के बाद कश्मीर से अनुच्छेद 370 को तो हटा दिया। अब पाकिस्तानी आतंकियों को भी सबक सिखाया जा रहा है। कोई माने या नहीं, लेकिन अमित शाह अब सरकार वल्लभ भाई पटेल की भूमिका में है। जिस अनुच्छेद 370 पर चर्चा करने से भी डर लगता था, उसे अमित शाह ने ही हटाया है। S.P.MITTAL BLOGGER (26-10-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9799123137To Contact- 9829071511