कश्मीर के पत्थर देशभर में फैल गए हैं। तो क्या शोभा यात्राएं नहीं निकल सकेंगी? कांग्रेस के मनोनीत पार्षद मुनव्वर कायमखानी ने अजमेर के शिव मंदिर में पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित करवाई।

सब जानते हैं कि दो वर्ष पहले तक कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंके जाते थे। चूंकि घाटी से हिन्दू समुदाय के लोगों को प्रताड़ित कर भगा दिया था, इसलिए 1990 के बाद से घाटी में हिन्दू पर्वों पर शोभा यात्राएं निकलना भी बंद हो गए थीं। यानी पूरी कश्मीर घाटी उन आतंकियों के कब्जे में भी जो पाकिस्तान के इशारे पर कश्मीर को भारत से अलग करना चाहते थे, लेकिन दो वर्ष पहले कश्मीर से जब अनुच्छेद 370 को हटाया गया तो सबसे पहले पत्थरबाजों पर ही नियंत्रण किया गया। अब कश्मीर घाटी में सुरक्षाबलों पर पत्थर फेंकने की हिम्मत किसी की नहीं होती। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि हिन्दू नववर्ष, रामनवमी और हनुमान जयंती पर निकलने वाली शोभायात्राओं पर पत्थर फेंकने की वारदातें कई स्थानों पर हुई हैं। राजस्थान से लेकर गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल आदि में पत्थर फेंकने का तरीका एक जैसा है। यदि एनआईए की जांच हो तो इस पत्थरबाजी के तार आपस में जुड़े होने का भी पता चल सकता है। सभी स्थानों पर पत्थरबाजी मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में ही हुई है। कुछ लोग टीवी चैनलों की बहस में कह रहे हैं कि हिंदुओं की शोभायात्रा मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में क्यों निकाली जाती है? ऐसे लोग सुझाव भी दे रहे हैं कि मुस्लिम बाहुल्य इलाकों से शोभा यात्राएं निकालने से बचना चाहिए। सब जानते हैं कि एक शहर में तीन चार इलाके मुस्लिम बाहुल्य है हीं। यानी ऐसे इलाकों में हिन्दू धर्म से जुड़ी गतिविधियां नहीं होनी चाहिए? हिन्दू समाज के कुछ लोग ऐसे तर्कों से सहमत भी हैं। राजनीति से जुड़े ऐसे लोगों का कहना है कि मुस्लिम बाहुल्य इलाको से शोभायात्रा निकाल कर सद्भावना का माहौल खराब किया जाता है। हालांकि इन तर्कों का जवाब धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदारों को देना चाहिए क्योंकि धर्म निरपेक्षता की आड़ में हिंदुस्तान को बहुत नुकसान पहुंचाया गया है। इसका फायदा उन कट्टरपंथियों ने उठाया जो इस देश को अपनी सोच से आगे बढ़ाना चाहते हैं। मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में यदि शोभा यात्रा पर पत्थर फेंकने वालों पर शीघ्र सख्त कार्यवाही नहीं हुई तो देश को बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। सवाल उठता है कि जिन इलाको में मुसलमानों की संख्या कम है, वहां शोभायात्राओं पर पत्थर क्यों नहीं फेंके जाते? इस भेद को आम मुसलमानों को भी समझना होगा। ऐसा नहीं कि हर मुसलमान हिन्दू धर्म से परहेज करता हो। यह माना कि मुसलमान अपने धर्म के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म के ईश्वर को स्वीकार नहीं करते, लेकिन फिर भी ऐसे बहुत से मुसलमान हैं जो हिन्दू देवी देवताओं के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं। ऐसे मुसलमान न केवल शोभा यात्राओं में शामिल होते हैं, बल्कि शोभायात्राओं पर फूल भी बरसातें हैं। ऐसे ही एक शख्स हैं अजमेर के मुनव्वर  कायमखानी । मुनव्वर अजमेर नगर निगम में कांग्रेस के मनोनीत पार्षद भी हैं। अजमेर के पुष्कर रोड स्थित रीजनल कॉलेज के सामने सड़क के किनारे एक शिव मंदिर पिछले 60 वर्षों से संचालित था। सड़क को चौड़ा करने के लिए शिव मंदिर को आम सहमति से 100 मीटर पीछे स्थापित किया गया। मंदिर की पुनर्स्थापना में मुनव्वर कायमखानी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। मंदिर की प्रबंध कमेटी में कायमखानी सक्रिय सदस्य हैं। 16 अप्रैल को हनुमान जयंती  पर मंदिर में पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा भी स्थापित करवाई। कायमखानी स्वयं इस प्रतिमा को किशनगढ़ से लाए। प्रतिमा के स्थापना के हर धार्मिक कार्यक्रम में कायमखानी ने भाग लिया। हनुमान जयंती पर दिन भर मंदिर परिसर में ही एक हनुमान भक्त की तरह उपस्थिति दर्ज करवाई। सुंदरकांड का पाठ भी सुना। शाम को सामूहिक भंडारे में भी शामिल रहे। पूड़ी आलू की सब्जी और बेसन की नुक्ती को प्रसाद के तौर पर ग्रहण भी किया। सवाल उठता है कि जब मुनव्वर कायमखानी मंदिर की पुनर्स्थापना कर सकते हैं तो मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में शोभायात्राओं का स्वागत क्यों नहीं हो सकता है। क्या शोभायात्राओं पर पत्थर फेंक जाते हैं? असल में मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में भी अजमेर के मुनव्वर कायमखानी जैसी सोच वाले मुसलमान रहते हैं। लेकिन कट्टरपंथियों के आगे ऐसे मुसलमान बोल नहीं पाते। पत्थर कुछ लोग फेंकते हैं, लेकिन बदनामी पूरे इलाके की होती है। पुष्कर रोड के मंदिर की पुनर्स्थापना की और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9549244000 पर मुनव्वर कायमखानी से ली जा सकती है। S.P.MITTAL BLOGGER (18-04-2022)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9929383123To Contact- 9829071511

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