गहलोत सरकार के लिए मुसीबत बनी जयपाल पूनिया की हत्या। नागौर में तनावपूर्ण हालात। उपमुख्य सचेतक महेंद्र चौधरी और उनके भाई को भी आरोपी माना। चार दिन से शव का पोस्टमार्टम भी नहीं हो पाया है। सीबीआई से जांच की मांग पर भाजपा-आएलपी एकजुट।

भाजपा के नेता माने या नहीं, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान में भाजपा की हार का एक कारण आनंदपाल सिंह की हत्या का प्रकरण भी रहा। तब इस हत्या को लेकर राजपूत और रावणा राजपूत समाज ने विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ प्रदेशभर में मोर्चा खोला। अब वही स्थिति मौजूदा कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समक्ष नागौर के नावां में जयपाल पूनिया की हत्या को लेकर हो गई है। पूनिया की 14 मई को हत्या हुई, तभी पूरे नागौर में राजनीतिक विवाद की स्थिति है। पूनिया के परिजन ने जिन 8 लोगों के विरुद्ध नामजद एफआईआर दी है, उसमें गहलोत सरकार के उपमुख्य सचेतक महेंद्र चौधरी और उनके भाई का नाम भी शामिल है। पूनिया का शव 14 मई से ही सरकारी अस्पताल के मुर्दाघर में रखा हुआ। भीषण गर्मी के बाद भी अभी तक शव का पोस्टमार्टम भी नहीं हुआ है। हत्या को लेकर नागौर में लगातार धरना प्रदर्शन किया जा रहा है। 16 मई को भी भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया ने भी धरना स्थल पर आकर अपना समर्थन जताया। 17 मई को भाजपा के पूर्व विधायक हरीश कुमावत भी धरने पर बैठ गए हैं। पूनिया हत्याकांड में जहां भाजपा पूरी तरह सक्रिय हैं, वहीं नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल ने भी अपनी पार्टी आरएलपी के जरिए गहलोत सरकार पर हमला बोला है। बेनीवाल का कहना है कि कांग्रेस के विधायक महेंद्र चौधरी के इशारे पर ही पूनिया ने जयपाल पूनिया पर झूठे मुकदमे दर्ज कर उन्हें हिस्ट्रीशीटर घोषित करवाया। जबकि पूनिया तो नागौर में अपना नमक का कारोबार करते थे। बेनीवाल ने पूनिया की हत्या के लिए विधायक महेंद्र चौधरी को ही जिम्मेदार ठहराया है। अब प्रदेशभर में पूनिया की हत्या को लेकर जाट समुदाय में आक्रोश है। यही वजह है कि यह हत्याकांड अब गहलोत सरकार के लिए मुसीबत बनता जा रहा है। भाजपा और बेनीवाल की आरएलपी एकजुट होकर पूनिया के परिजन के साथ खड़ी है। दोनों पार्टियों ने हत्याकांड की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया और सांसद हनुमान बेनीवाल का कहना है कि एफआईआर में सत्तारूढ़ दल के विधायक महेंद्र चौधरी का भी नाम है, इसलिए राजस्थान पुलिस निष्पक्ष जांच नहीं कर सकती है। सीबीआई की जांच की मांग के साथ साथ परिजन को 50 लाख रुपए का मुआवजा, परिजन के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने तथा नावां पुलिस पर बड़ी कार्यवाही करने की मांग की गई है। हालांकि नागौर के पुलिस अधीक्षक राममूर्ति जोशी परिजनों से संवाद का प्रयास कर रहे हैं, ताकि शव का पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार हो सके। लेकिन मामले की जांच सीबीआई से करवाने का निर्णय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के स्तर पर होना है, इसलिए नागौर प्रशासन के प्रयास विफल हो रहे हैं। जानकार सूत्रों के अनुसार सीएम गहलोत उदयपुर में कांग्रेस के तीन दिवसीय चिंतन शिविर और गांधी परिवार की आवभगत से 17 मई को ही फ्री हुए हैं, इसलिए अब जयपाल पूनिया की हत्या के प्रकरण पर ध्यान देंगे। उम्मीद है कि 18 मई तक सीएम गहलोत का दखल हो ाजए। मौजूदा राजनीतिक हालातों में सीएम गहलोत भी नहीं चाहेंगे कि सरकार के प्रति जाट समुदाय में नाराजगी बढ़े और वो भी तब जब आंदोलन में भाजपा और आरएलपी  शामिल हैं। भाजपा के पूर्व विधायक हरीश कुमावत की उम्र 80 वर्ष है, लेकिन वे 17 मई से अनशन पर बैठ गए हैं। अनशन के दौरान कुमावत सिर्फ पानी ग्रहण करेंगे। इस बीच  नावां के एसडीएम ने पूनिया के शव  पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार के लिए परिजन को नोटिस जारी कर दिया है। इस नोटिस की अवधि भी 17 मई को प्रातः 10 बजे समाप्त हो गई है। नोटिस में विधिक कार्यवाही की चेतावनी भी दी गई है, लेकिन नागौर प्रशासन में इतनी हिम्मत नहीं है कि पूनिया के शव को जबरन अंतिम संस्कार करवा दे। नागौर और नावां के माहौल को देखते हुए पूनिया के शव को हाथ लगाने की हिम्मत किसी में भी नहीं है। यह बात अलग है कि पोस्टमार्टम में जितना विलंब होगा उतने सबूत भी कमजोर होंगे। शव का अंतिम संस्कार नहीं होने से नागौर में तनावपूर्ण हालात है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (17-05-2022)

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