देश का गरीब व्यक्ति मुझ में अपना प्रतिबिंब देख सकता है। राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद द्रौपदी मुर्मू ने सबको कर्तव्य निभाने की भी सीख दी। लहसुन और प्याज का सेवन भी नहीं करती हैं देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति।

25 जुलाई को द्रौपदी मुर्मू ने देश के 15वें राष्ट्रपति पद की शपथ ले ली।  द्रौपदी मुर्मू  पहली ऐसी राष्ट्रपति हैं जिनका जन्म देश की आजादी के बाद हुआ है। मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 का है। जबकि देश की 1947 में आजादी मिली। राष्ट्रपति बनते ही मुर्मू ने अपने संबोधन में कहा कि देश का गरीब दलित, पिछड़ा आदिवासी वर्ग का हर व्यक्ति मुझ में अपना प्रतिबिंब देख सकता है। अब कहा जा सकता है कि देश का गरीब से गरीब व्यक्ति भी राष्ट्रपति बन सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब तक सबका का साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास की बात करते रहे, लेकिन अब नई राष्ट्रपति मुर्मू ने सबका कर्तव्य शब्द भी जोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि अब सबको अपना कर्तव्य निभाने की जरूरत है। मेरा यह सौभाग्य है कि मैं आजादी के 75वें वर्ष में राष्ट्रपति बन रही हंू। हमारे सामने आगामी 25 वर्षों का लक्ष्य है। यह भारत के लोकतंत्र की अहमियत है कि एक गरीब व्यक्ति भी राष्ट्रपति बनने का सामना देख सकता है। मैं उड़ीसा के आदिवासी क्षेत्र के छोटे से गांव से निकल कर यहां तक पहुंची हंू। हमारे गांव की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मैं कॉलेज जाने वाली गांव की पहली लड़की थी। राष्ट्रपति बनना मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है बल्कि यह भारत के लोकतंत्र की उपलब्धि है। देश के विकास और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की भूमिका की चर्चा करते हुए मुर्मू ने कहा कि कोरोना काल में भारत में न केवल स्वयं को संभाला बल्कि दुनिया के जरूरतमंद देशों की मदद भी की। आत्मनिर्भर भारत की ही पहचान है कि अब तक कोरोना की 200 करोड़ डोज लोगों को लगाई जा चुकी है। 
एक मिनट में बदल गई कुर्सी:
शपथ ग्रहण समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी मौजूद रहे। समारोह की शुरुआत में अशोक स्तंभ वाली राष्ट्रपति की कुर्सी पर कोविंद बैठे थे। लेकिन शपथ लेते ही द्रौपदी मुर्मू कोविंद वाली राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठी और कोविंद को पास वाली कुर्सी पर बैठना पड़ा। यानी मात्र एक मिनट में कुर्सी बदल गई। समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उपस्थित रहे, लेकिन परंपरा के अनुसार प्रधानमंत्री भी दर्शक दीर्घा में बैठे। 
लहसुन-प्याज का सेवन नहीं:
जंगलों में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोगों के खानपान के बारे में सभी को जानकारी है, लेकिन द्रौपदी मुर्मू एक ऐसी आदिवासी महिला हैं जो लहसुन और प्याज का सेवन भी नहीं करती हैं। हालांकि बदलते माहौल में अब खानपान का कोई महत्व नहीं है, लेकिन कहा जा सकता है कि द्रौपदी मुर्मू सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। 


S.P.MITTAL BLOGGER (25-07-2022)

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