हाईकमान का डंडा पड़ा होगा, इसलिए वसुंधरा राजे कांग्रेस सरकार द्वारा बुलाई बैठक में नहीं आईं। क्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के द्वारा पूर्व महिला मुख्यमंत्री के लिए इस तरह की भाषा उचित है? आखिर इतना चिढ़ चिढ़ा पन क्यों?

सब जानते हैं कि भाजपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष वसुंधरा राजे राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। राजे केंद्र में मंत्री भी रही हैं। देश के चुनिंदा राजनेताओं में वसुंधरा राजे का भी नाम आता है। वसुंधरा राजे के राजनीतिक कद को देखते हुए ही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट (ईआरसीपी) पर आयोजित सरकारी बैठक में राजे को भी बुलाया, लेकिन किन्हीं कारणों से राजे इस बैठक में शामिल नहीं हो सकीं। राजे की अनुपस्थिति पर गहलोत का कहना रहा कि भाजपा हाईकमान का डंडा पड़ा होगा, इसलिए राजे बैठक में नहीं आईं। सवाल उठता है कि क्या मुख्यमंत्री गहलोत को एक महिला पूर्व मुख्यमंत्री के लिए ऐसी भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए? गहलोत स्वयं को महात्मा गांधी का अनुयायी होने का दावा करते हैं और फिर एक महिला सीएम के लिए डंडा पड़ने जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। क्या यह सीएम गहलोत की कथनी और करनी में अंतर नहीं है? सवाल यह भी है कि गहलोत इतना चिढ़ चिढ़ा पन क्यों दिखा रहे हैं? राजनीति में तो ऐसा होता ही रहता है। केंद्र सरकार जब विभिन्न मुद्दों पर सर्वदलीय बैठक बुलाती है तो सभी बैठकों में सोनिया गांधी, राहुल गांधी उपस्थित नहीं होते। अशोक गहलोत यह तो अपेक्षा करते हैं कि उनके द्वारा बुलाई सरकारी बैठक में वसुंधरा राजे उपस्थित हो, लेकिन जब प्रधानमंत्री के लिए बेशर्म जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, तब गहलोत सोचते नहीं हैं। जब गहलोत देश के प्रधानमंत्री को बेशर्म कह रहे हों, तब वसुंधरा राजे कांग्रेस की सरकारी बैठक में कैसे जा सकती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि ज्यों ज्यों विधानसभा चुनाव निकट आ रहे हैं, त्यों त्यों गहलोत का चिढ़ चिढ़ा पन बढ़ता जा रहा है। गहलोत भी इस बात का आभास कर रहे हैं कि कांग्रेस से जनता दूर होती जा रही है। गहलोत की तुष्टीकरण की नीति से आम लोग नाराज हैं। यह तीसरा अवसर है, जब गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस विधानसभा का चुनाव लड़ेगी। सब जानते हैं कि जब जब भी कांग्रेस ने गहलोत के नेतृत्व में चुनाव लड़ा, तब तब हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस को एक बार 56 व दूसरी बार मात्र 21 सीटें मिली। प्रतिद्वंदी नेता सचिन पायलट इस मुद्दे की ओर कई बार ध्यान आकर्षित कर चुके हैं। हालांकि 2018 का चुनाव कांग्रेस ने सचिन पायलट के नेतृत्व में भी लड़ा था। लेकिन मौजूदा समय में राजस्थान में कांग्रेस संगठन और सरकार में पायलट की कोई भूमिका नहीं है। गहलोत तो पायलट की शक्ल देखना भी पसंद नहीं करते हैं। राजस्थान में अगले वर्ष ही चुनाव होने हैं। 

S.P.MITTAL BLOGGER (25-07-2022)
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