सचिन पायलट राहुल गांधी की यात्रा में तो शामिल हैं, लेकिन सरकार के जश्न में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ नहीं। राजनीति में तोड़ फोड़ के हैड मास्टर हैं अशोक गहलोत। क्लास का धंधा अच्छा चलेगा।
18 दिसंबर को भी राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट दौसा जिले में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में साथ रहे। यात्रा ने 4 दिसंबर को राजस्थान में प्रवेश किया, तभी से पायलट पैदल चल रहे हैं, लेकिन 17 दिसंबर को जब जयपुर में सरकार के चार साल पूरे होने पर सरकारी आयोजन हुआ तो उसमें सचिन पायलट शामिल नहीं थे। राहुल गांधी का कहना है कि राजस्थान में कोई विवाद नहीं है। सब जानते हैं कि राजस्थान में मात्र 11 माह बाद ही विधानसभा के चुनाव होने हैं। जब कोई विवाद नहीं है तो फिर 17 दिसंबर को सरकार के जश्न में पायलट शामिल क्यों नहीं हुए? इस जश्न में सीएम अशोक गहलोत के साथ नवनियुक्त प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा तो मौजूद थे, लेकिन 2018 में कांग्रेस को बहुमत दिलवाने वाले सचिन पायलट गायब थे। खुद राहुल गांधी ने कहा है कि पायलट कांग्रेस के असेट हैं। यात्रा में भी राहुल गांधी पायलट को सीएम गहलोत के बराबर महत्व दे रहे हैं। सीएम गहलोत दावा कर रहे हैं कि अगले वर्ष कांग्रेस सरकार रिपीट होगी। लेकिन सवाल उठता है कि क्या पायलट के बगैर अकेले गहलोत कांग्रेस सरकार को रिपीट करवा लेंगे? राहुल गांधी के दबाव में भले ही गहलोत और पायलट भारत जोड़ो यात्रा में साथ साथ चल रहे हों, लेकिन दोनों के बीच दूरियां बनी हुई है। राहुल की यात्रा राजस्थान में अंतिम चरण में है और राहुल की अपनी यात्रा बिना किसी बाधा के पूरी कर ली है। यात्रा के दौरान पायलट और गहलोत कैंप की ओर से कोई बयानबाजी भी नहीं की गई, लेकिन क्या ऐसी एकता राहुल की यात्रा के बाद भी देखने को मिलेगी? यदि गहलोत के मन में कोई दुर्भावना नहीं होती तो 17 दिसंबर को सरकार के जश्न में रंधावा और डोटासरा के साथ पायलट भी होते। यदि राहुल गांधी का मकसद भी सिर्फ अपनी यात्रा को सफल करवाना है तो यात्रा के बाद गहलोत और पायलट आमने सामने होंगे। अभी तो वो फार्मूला सामने नहीं आया है, जिसके तहत दोनों गुटों में संवाद हो सके। जब गहलोत और पायलट में वन टू वन संवाद नहीं होगा, तब तक कांग्रेस में विवाद बना रहेगा।
क्लास का धंधा अच्छा चलेगा:
राजस्थान में कांग्रेस सरकार के चार साल पूरे होने पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा है कि राजनीति से रिटायरमेंट के बाद वे राजनीति की क्लास लेंगे। यानी युवा पीढ़ी को राजनीति करने के तौर तरीके सिखाएंगे। इसमें कोई दो राय नहीं कि मौजूदा समय में राजनीति में तोड़ फोड़ करने में गहलोत हैड मास्टर की भूमिका में हैं। गहलोत तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने। दो बार गहलोत ने अपनी अल्पमत सरकार को टिकाए रखने के लिए मायावती के नेतृत्व वाली बसपा को हड़प लिया। दोनों बार बसपा के 6-6 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए। इतना ही नहीं कांग्रेस में शामिल करने के बाद गहलोत ने इन विधायकों से मायावती के विरुद्ध बयान भी दिलवाए। 2019 में गहलोत ने बसपा के सभी 6 विधायकों को तब शामिल करवाया, जब तत्कालीन कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट सहमत नहीं थे। गहलोत ने रातों रात बसपा के विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के समक्ष प्रस्तुत किया और कांग्रेस में शामिल होने पर मुहर लगा दी। इस घटना की प्रदेश अध्यक्ष तक को भनक तक नहीं लगने दी। राजस्थान में 13 निर्दलीय विधायक हैं और सभी 13 निर्दलीय विधायक गहलोत सरकार का समर्थन कर रहे हैं। ऐसा राजनीतिक करिश्मा अशोक गहलोत ही कर सकते हें। गहलोत ने हाल ही में गत 25 सितंबर को कांग्रेस हाईकमान और गांधी परिवार को उस समय मात दे दी, जब केंद्रीय पर्यवेक्षक जयपुर में कांग्रेस विधायक दल की बैठक करने आए थे। गहलोत ने पर्यवेक्षकों के समक्ष विधायकों को एकत्रित ही नहीं किया। देश की राजनीति के इतिहास में यह पहला अवसर रहा, जब किसी मुख्यमंत्री के समर्थन में 106 में से 91 विधायकों ने अपने इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष को सौंप दिए। यह गहलोत का ही करिश्मा है कि अब विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी भी 91 विधायकों के इस्तीफे पर कोई निर्णय नहीं ले रहे हैं। 100 विधायकों को 35 दिनों तक होटलों में कैसे बंद रखा जाता है, यह तरीका भी सिर्फ गहलोत को ही आता है। राजनीति में आने वाला कोई युवा यदि राजस्थान में अशोक गहलोत की राजनीति को समझ ले तो वह कभी भी विफल नहीं होगा। दूसरों के हकों को ऐसे हथियाया जाता है, यह सिर्फ गहलोत के राजनीतिक आचरण से समझा जा सकता है। यदि गहलोत राजनीति की क्लास लेंगे तो उनका यह धंधा खूब चलेगा।
S.P.MITTAL BLOGGER (18-12-2022)
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