अशोक गहलोत का मुख्यमंत्री बने रहना ही राजस्थान में कांग्रेस की सबसे बड़ी उपलब्धि। मुख्यमंत्री बने रहने के लिए अशोक गहलोत का इससे बड़ा त्याग क्या हो सकता है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को भी ठुकरा दिया। कांग्रेस की दुर्दशा पर अब चिंता जताई गई।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा तो राजस्थान से सफलता और शांतिपूर्वक निकल गई, लेकिन अब जब 29 दिसंबर को प्रदेश प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा ने कांग्रेस के जिम्मेदार कार्यकर्ताओं से वन टू वन संवाद किया तो प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति बेहद खराब सुनने को मिली। 2018 में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर विधानसभा का चुनाव हारे नेताओं ने कहा कि निर्दलीय और बसपा वाले विधायकों ने अपने अपने क्षेत्र में कांग्रेस को गर्त में पहुंचा दिया है। चूंकि ये विधायक अशोक गहलोत की सरकार को समर्थन दे रहे हैं, इसलिए कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की सुनने वाला कोई नहीं है। सरकार को समर्थन देने वाले इन विधायकों ने लूट मचा रखी है। संवाद में शामिल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने भी रंधावा के समक्ष स्वीकार किया कि हम पराजित उम्मीदवारों के साथ न्याय नहीं कर सके हैं। रंधावा ने भी ऐसी स्थिति को चिंताजनक बताया। हो सकता है कि कांग्रेस के नेताओं की चिंता वाजिब हो, लेकिन यह सही है कि राजस्थान में कांग्रेस की सबसे बड़ी उपलब्धि अशोक गहलोत का मुख्यमंत्री बने रहना है। गहलोत चार साल पहले जब सीएम बने तभी से कुर्सी बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी में आंतरिक खींचतान को देखते हुए ही बसपा के सभी 6 विधायकों को कांग्रेस में शामिल करवाया। जुलाई 2020 में जब कांग्रेस के 19 विधायक एक माह के लिए दिल्ली गए, तब भी 100 विधायकों को होटलों में रखकर गहलोत ने अपनी सरकार को बचाए रखा। गहलोत ने तभी कहा था कि सरकार बचाने वाले विधायकों को ब्याज सहित भुगतान करुंगा। राजस्थान में 13 निर्दलीय विधायक हैं। ये सभी गहलोत सरकार को समर्थन दे रहे हैं। सभी 13 निर्दलीय विधायकों का समर्थन लेकर कितनी कीमत चुकानी पड़ रही होगी, यह गहलोत ही बता सकते हैं। जब बसपा और निर्दलीय विधायकों से सरकार चल रही है, तब संगठन के कार्यकर्ताओं की परवाह किसे होगी? गहलोत ने मुख्यमंत्री बने रहने का सबसे बड़ा त्याग तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद ठुकरा कर किया है। गहलोत ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेंगे यह तय हो गया था, लेकिन मुख्यमंत्री बने रहने के लिए गहलोत ने अध्यक्ष पद भी ठुकरा दिया। जब मुख्यमंत्री बने रहने के लिए सभी हथकंडे अपनाए जा रहे हों, तब संगठन और उसके कार्यकर्ता गौण हो जाते हैं। गहलोत ने 2008 से 2013 के बीच भी कांग्रेस की अल्पमत सरकार को जोड़ तोड़ कर ही चलाया था। इसी का नतीजा रहा कि विधानसभा चुनाव में 200 में से कांग्रेस को मात्र 21 सीटें मिलीं। गंभीर बात तो यह है कि बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए मंत्री राजेंद्र गुढ़ा कह रहे हैं कि यदि अशोक गहलोत ही मुख्यमंत्री रहते हैं तो 2023 के चुनाव में कांग्रेस को 11 सीटें भी नहीं मिलेंगी। सरकार में मंत्री रहते हुए भी राजेंद्र गुढ़ा कुछ भी कहें लेकिन कांग्रेस की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि अशोक गहलोत मुख्यमंत्री के तौर पर पांच वर्ष पूरे कर लेंगे। जिन तौर तरीकों से सरकार चलाई गई उन तरीकों का उपयोग सिर्फ अशोक गहलोत ही कर सकते हैं। अभी विधानसभा चुनाव में 10 माह शेष हैं। आने वाले दिनों में कार्यकर्ताओं की नाराजगी और बढ़ेगी। जब उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया शुरू होगी, तब ज्यादा विवाद देखने को मिलेगा। 

S.P.MITTAL BLOGGER (30-12-2022)

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