एएसपी दिव्या मित्तल की गिरफ्तारी के बाद यही बात सही है-जो पकड़ा जाए वही चोर और भ्रष्ट है। शिक्षा बोर्ड के बर्खास्त अध्यक्ष जारोली के राजनीतिक संरक्षण का अभी तक पता नहीं चला।
राजस्थान पुलिस की जांच एजेंसी एसीबी में एडीजी दिनेश एमएन, एएसपी बजरंग सिंह शेखावत जैसे ईमानदार अधिकारी भी हैं जो बड़े बड़े मगरमच्छों को भी पकड़ते हैं। लेकिन आमतौर यही बात सही होती है कि जो पकड़ा जाए, वही चोर और भ्रष्ट है। राजस्थान पुलिस की जांच एजेंसी एसओजी की अजमेर चौकी की प्रभारी एएसपी दिव्या मित्तल को एसीबी के एएसपी बजरंग सिंह शेखावत की टीम ने 16 जनवरी को गिरफ्तार किया। दिव्या पर एक दवा कंपनी के मालिक से दो करोड़ रुपए की रिश्वत मांगने का आरोप है। हालांकि दिव्या को रिश्वत लेते नहीं पकड़ा गया, लेकिन एसीबी का दावा है कि दिव्या ने दो करोड़ रुपए की मांग की थी। एसीबी के पास ऑडियो और पीड़ित व्यक्ति के दिव्या से मुलाकात करने के सबूत है। राजस्थान पुलिस में दिव्या की छवि एक ईमानदार अधिकारी की है, इसलिए दिव्या को एसीबी में प्रतिनियुक्ति पर जा रही थी। राजस्थान के बहुचर्चित नशीली दवा के प्रकरण में दिव्या की जांच रिपोर्ट पर ही अजमेर पुलिस के कई वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही हुई। अब खुद दिव्या पर रिश्वत मांगने का आरोप लगा है। पीड़ित व्यक्ति से रिश्वत मांगते वक्त दिव्या ने कहा कि रिश्वत की राशि वह अकेले ही हजम नहीं करेंगी। यह राशि बड़े अधिकारियों को दी जाएगी। अब चूंकि दिव्या ही पकड़ी गई है, इसलिए उसे ही भ्रष्ट समझा जा रहा है, लेकिन दिव्या के बयान से स्पष्ट है कि पुलिस महकमे में और भी भ्रष्ट हैं जो अभी पकड़े नहीं गए हैं। जब तक पकड़े नहीं जाते, तब तक ईमानदार ही कहलाएंगे। अब दिव्या एसीबी के शिकंजे में है, तो उन अधिकारियों का भी नाम उजागर होना चाहिए जो दिव्या को मोहरा बना कर रिश्वत की राशि हजम कर रहे थे। वैसे भी एक एएसपी स्तर का अधिकारी सिर्फ अपने दम पर दो करोड़ रुपए की रिश्वत की मांग नहीं कर सकता है।
राजनीतिक संरक्षण पर कार्यवाही नहीं:
चाहे पेपर लीक का मामला हो अथवा भ्रष्टाचार का, लेकिन भ्रष्टाचार और अपराध को संरक्षण देने वालों पर कार्यवाही नहीं होती है। गत वर्ष जब रीट का पेपर लीक हुआ तब राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डीपी जारोली ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि पेपर लीक राजनीतिक संरक्षण के कारण हुआ है। हालांकि जारोली को भी अध्यक्ष पद से बर्खास्त किया गया, लेकिन किसी भी जांच एजेंसी ने जारोली के बयान के अनुरूप राजनीतिक संरक्षण देने वालों पर कोई कार्यवाही नहीं की। इतना ही नहीं जारोली का मुंह बंद रखने के लिए जांच एजेंसियों ने उन्हें भी क्लीन चिट दे दी। रीट पेपर के मामले में जिस तरह जांच में लीपापोती की गई उस से जाहिर है कि सरकार की मंशा असली अपराधियों को पकड़ने की नहीं है।
S.P.MITTAL BLOGGER (17-01-2023)
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