एक मुद्दे पर चार नेता और चार बयान। यह है अशोक गहलोत की जादूगरी। महेश जोशी का मुख्य सचेतक के पद से इस्तीफा क्या मायने रखता है? कैबिनेट मंत्री का पद तो बरकरार है।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत असली जादूगर हैं या नहीं, यह तो पता नहीं, लेकिन राजनीति में गहलोत जो कलाबाजियां दिखाते हैं वह जादूगरी ही है। ऐसी जादूगरी को विदेशों के असली जादूगर भी नहीं दिखा सकते हैं। जलदाय महकमे के कैबिनेट मंत्री महेश जोशी ने 17 फरवरी को मुख्य सचेतक के पद से इस्तीफा दिया तो जोशी सहित चार बड़े नेताओं के बयान सामने आ गए। जोशी का इस्तीफा खुद सीएम गहलोत ने स्वीकार किया, लेकिन स्वयं ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन गहलोत के इशारे पर चारों नेताओं ने अलग अलग तरीके से प्रतिक्रिया दी। महेश जोशी कांग्रेस के उन तीन नेताओं में शामिल हैं, जिन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने अनुशासनहीनता का नोटिस दिया था। जोशी ने जब मुख्य सचेतक के पद से इस्तीफा दिया तो प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कह दिया कि यह अनुशासनहीनता के प्रकरण वाली कार्यवाही है। यानी जोशी को मुख्य सचेतक के पद से इसलिए हटाया गया है कि 25 सितंबर को विधायक दल की बैठक नहीं होने दी। रंधावा का बयान जारी होते ही प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि महेश जोशी का इस्तीफा एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत के चलते हुआ है। यानी डोटासरा ने रंधावा के बयान को झुठला दिया। कांग्रेस की अनुशासन समिति के सचिव तारिक अनवर ने भी कहा कि 25 सितंबर के प्रकरण में अभी कोई कार्यवाही नहीं हुई है। वहीं महेश जोशी ने कहा कि यदि इस्तीफे को मेरे खिलाफ कार्यवाही माना जाता है तो उन नेताओं के विरुद्ध भी कार्यवाही होनी चाहिए, जिन्होंने 2020 में अनुशासनहीनता की थी। एक मुद्दे पर चार नेताओं के चार बयानों से असल मुद्दा गुम हो गया। सवाल यह है कि आखिर मुख्य सचेतक के पद से इस्तीफा क्या मायने रखता है? जोशी तो पहले ही जलदाय महकमे के कैबिनेट मंत्री हैं। मुख्य सचेतक के मुकाबले में कैबिनेट मंत्री का पद ज्यादा प्रभावी होता है। डेढ़ वर्ष पूर्व जब महेश जोशी को कैबिनेट मंत्री बनाया गया था, तभी उन्होंने मुख्य सचेतक के पद से इस्तीफा दे दिया था। यह अशोक गहलोत की जादूगरी है कि डेढ़ वर्ष पूर्व दिए इस्तीफे को स्वीकार करने की घोषणा अब की गई है। राजनीति की जंग में कौन सा हथियार कब इस्तेमाल करना है, यह गहलोत अच्छी तरह जानते हैँ। 25 सितंबर को 81 विधायकों की बगावत के लिए अशोक गहलोत खुद जिम्मेदार हैं, लेकिन अनुशासनहीनता के नोटिस तीन मंत्रियों को दिलवाए गए। तीनों का मंत्री पद अभी तक कायम है। अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष खिलाड़ी लाल मीणा भले ही दावा करें कि 26 फरवरी को हुए अधिवेशन के बाद अशोक गहलोत मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे, लेकिन मौजूदा समय में गहलोत की जादूगरी के आगे कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व भी फेल हैं। चाहे राहुल गांधी हों या राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े। किसी में इतनी हिम्मत नहीं की गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटा सके। यदि गहलोत को हटाने का प्रयास किया गया तो राजस्थान से कांग्रेस की सरकार ही चली जाएगी। अब जब विधानसभा चुनाव में आठ माह रह गए हैं, तब कांग्रेस का कोई भी नेता नहीं चाहेगा कि सरकार ही चली जाए। अशोक गहलोत भी अपना राजनीतिक भविष्य नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव तक ही मानते हैं। वैसे भी टिकट बंटवारे को लेकर कांग्रेस में घमासान होना शेष है। लेकिन यह सही है कि अशोक गहलोत अब गांधी परिवार के भरोसे के नेता नहीं रहे हैं। 

S.P.MITTAL BLOGGER (19-02-2023)
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