गौरव गोयल के बाद तो विश्वमोहन शर्मा, आरती डोगरा, प्रकाश पुरोहित और अंशदीप भी अजमेर के कलेक्टर रहे। स्मार्ट सिटी के अवैध निर्माणों में सभी कलेक्टरों की जिम्मेदारी तय हो।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अजमेर शहर में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में बने सेवन वंडर्स, स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स, गांधी स्मृति उद्यान और फूड कोर्ट को तोड़ने के आदेश दिए हैं। ट्रिब्यूनल का मानना है कि ये चारों निर्माण मास्टर प्लान, ग्रीन बेल्ट और ओपन स्पेस के नियमों का उल्लंघन  करते हैं। इन चारों निर्माणों को 64 करोड़  रुपए खर्च हुए हैं। इसलिए निर्माण कार्यों के जिम्मेदार अधिकारियों एवं इंजीनियरों पर भी कार्यवाही होने की मांग उठी है। नियम कायदों की पालना के लिए ही सरकार ने स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का सीईओ अजमेर के जिला कलेक्टर को बनाया। जबकि एसीईओ की जिम्मेदार नगर निगम के आयुक्त को सौंपी गई। इन दोनों पदों पर आईएएस की नियुक्ति होती है। सिटी के सभी प्रोजेक्ट जिला कलेक्टर की अनुमति के बाद ही मंजूर हुए। अब यदि ट्रिब्यूनल ने 64 करोड़ रुपए के निर्माण को अवैध माना है तो प्रोजेक्ट के सीईओ अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकते हैं। यदि जनता 64 करोड़ रुपया मिट्टी के ढेर में तब्दील होता है तो प्रोजेक्टों को मंजूरी देने वालों पर भी कार्यवाही होनी चाहिए। आखिर जिम्मेदार पद पर रहते हुए इन्होंने नियमों का ध्यान क्यों नहीं रखा? अजमेर जिला प्रशासन का रिकॉर्ड बताता है कि वर्ष 2016 से 2018 तक आईएएस गौरव गोयल अजमेर के कलेक्टर थे। गोयल के कार्यकाल में आनासागर के किनारे लव कुश गार्डन परिसर में एक टी पॉइंट की अनुमति दी गई। यह स्थान भी खुला रखना था, ताकि पर्यटक आनासागर का प्राकृतिक सौंदर्य देख सके। ऐसे टी-पॉइंट वन विभाग के जंगलों में भी बनाए जाते हैं। यह बात अलग है कि अब लवकुश गार्डन वाला टी पॉइंट एक बड़े रेस्टोरेंट में तब्दील हो गया है। नगर निगम ने यह रेस्टोरेंट ठेके पर दे दिया है। जिन अधिकारियों ने टी पॉइंट के स्वरूप में बदलाव किया, उनके विरुद्ध कार्यवाही होनी चाहिए। गौरव गोयल के स्थानांतरण के बाद विश्व मोहन शर्मा, आरती डोगरा, प्रकाश पुरोहित, अंशदीप जिला कलेक्टर और स्मार्ट सिटी के सीईओ के पद पर रहे। मौजूदा समय में डॉ. भारती दीक्षित कलेक्टर हेँ। किन अधिकारियों के कार्यकाल में आनासागर के भराव क्षेत्र में सेवन वंडर, आजाद पार्क में स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स, और गांधी स्मृति उद्यान बनाए गए, इसकी जांच होनी चाहिए। आखिर कलेक्टरों ने मास्टर प्लान, ग्रीन बेल्ट और ओपन स्पेस के नियमों की अनदेखी क्यों की? इस मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को ही संज्ञान लेना चाहिए। दोषी अधिकारियों पर कार्यवाही होने के बाद ही 64 करोड़ रुपए के निर्माण तोड़ने का निर्णय होना चाहिए। 

S.P.MITTAL BLOGGER (02-09-2023)
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