विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन का नाम इंडिया रखा, इसलिए अब संविधान प्रदत्त विकृति भी दूर हो रही है। भारत शब्द से अपनेपन का अहसास होता है।

देश के विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन का जो इंडिया नाम रखा उसका पूरा अनुवाद     INDIA होगा. इसमें आई (I) – भारतीय (Indian), एन (N) -राष्ट्रीय ( National), डी (D)-विकासवादी (Developmental), आई (I)- समावेशी (Inclusive) और ए (A) – गठबंधन (Alliance)  है। जाहिर है कि इंडिया के लिए विपक्षी दलों ने बहुत माथापच्ची की और इंडिया के अंग्रेजी शब्दों की माला बनाई। विपक्षी दलों ने जोड़ जोड़ कर इंडिया बनाया, इसलिए अब संविधान प्रदत्त विकृति को दूर किया जा रहा है। संविधान में देश का नाम इंडिया और भारत रखना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं था। हो सकता है उस समय हमारे संविधान निर्माताओं के दिमाग में भारत के साथ इंडिया शब्द रखना जरूरी हो, लेकिन हमारे वेदों और धार्मिक ग्रंथों में तो देश का नाम भारत ही है। 1947 में जब धर्म के आधार पर पाकिस्तान बन गया था, तब संविधान निर्माताओं को अपने देश का नाम सिर्फ भारत ही रखना चाहिए था, लेकिन विभाजन के बाद भी अंग्रेजों का असर रहा, इसलिए शायद लिख दिया इंडिया दैट इज भारत। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे देश के दो नाम हैं। चूंकि आजादी के बाद वामपंथियों की दादागिरी रही इसलिए भारत से ज्यादा इंडिया शब्द को तवज्जो मिली। यदि अपने देश के प्रति प्रेम होता तो प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के बजाए प्रेसिडेंट ऑफ भारत ही लिखा जाता। जो विकृति 75 साल पहले दर्ज हुई उसे 5 सितंबर 2023 को दूर किया गया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए 9 सितंबर के डिनर के लिए जो निमंत्रण पत्र भिजवाए हैं, उसमें प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा गया है। इसके साथ ही नरेंद्र मोदी ने भी स्वयं को प्राइ मिनिस्टर ऑफ इंडिया के जगह भारत लिखना शुरू कर दिया है। आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट में भी चीफ जस्टिस ऑफ भारत लिखा जाने लगेगा। विपक्षी दलों के नेताओं को इस बात का गर्व होना चाहिए कि उनकी वजह से संविधान की विकृतियों को दूर किया जा रहा है। विपक्षी नेता माने या नहीं, लेकिन भारत शब्द से अपनेपन का अहसास होता है, जबकि इंडिया शब्द से गुलामी की बू आती है। जिन अंग्रेजों की वजह से भारत को इंडिया कहा जाने लगा, उन अंग्रेजों के देश इंग्लैंड में भी इन दिनों हमारे भगवान राम को मानने वाले प्रधानमंत्री ऋषि सुनक हैं। जब इंग्लैंड के प्रधानमंत्री को स्वयं को राम भक्त कहने पर एतराज नहीं है, तब भारत में इंडिया की जिद क्यों की जा रही है? विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन इंडिया का नाम चुनाव आयोग या यूएनओ में  रजिस्टर्ड नहीं करवाया है। विपक्षी दल चाहे तो अपने गठबंधन का नाम भारत भी रख सकते हैं। नाम रखना तो अपने धर की बात है। विपक्षी दलों को नाम से ज्यादा अपने सहयोगियों के विचारों पर ध्यान देना चाहिए। गठबंधन का एक दल डीएमके खुलेआम कह रहा है कि सनातन धर्म को खत्म कर दिया जाना चाहिए। वहीं कांग्रेस चाहती है कि राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सनातन धर्म मानने वाले लोग विधानसभा चुनाव में वोट दें। नाम के बजाए विपक्षी दलों को अपने विरोधाभासों को दूर करना चाहिए।
S.P.MITTAL BLOGGER (06-09-2023)
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