अब देखना है कि समलैंगिकता को भारत का कौन सा राजनीतिक दल वैध मानता है। इस घिनौने कृत्य से सुप्रीम कोर्ट तो दूर हो गया।

दुनिया के किसी भी धर्म अथवा संस्कृति में दो महिलाओं या दो पुरुषों की शादी को मान्यता नहीं दी गई है। लेकिन सनातन संस्कृति वाले भारत में कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्होंने समलैंगिक होने का दावा कर शादी को संवैधानिक मान्यता देने की मांग की है। 17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट कर दिया है कि दो लड़कियों और दो लड़कों के संबंध बनाने और साथ रहने की परंपरा को शादी की मान्यता नहीं दी जा सकती है। देश में अभी जो कानून है उसके मुताबिक शादी लड़के और लड़की के बीच ही हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब यदि समलैंगिक कृत्य के लोग दो लड़कों और दो लड़कियों के बीच के संबंधों को शादी की मान्यता दिलाना चाहते हैं तो संसद व विधानसभा में कानून बनाना चाहिए। चूंकि संसद से अभी तक इस मुद्दे पर कोई कानून नहीं बना है तो राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर कानून बना सकती है। यानी सुप्रीम कोर्ट ने भारत की सनातन संस्कृति के विपरीत इस घिनौने कृत्य से दूर रहने का फैसला किया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से समलैंगिक विचारों वाले लोग उत्साहित हैं। ऐसे लोगों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने हमारी मांग पर एक दिशा दिखा दी है। अब यह राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है कि वे संसद और विधानसभा में हमारे लिए कानून बनवाए। पहले इस मुद्दे पर लोग बात करने से झिझकते थे, लेकिन अब समलैंगिक कृत्य वाले युवा टीवी चैनलों पर आकर अपनी बात रख रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद देखना होगा कि भारत का कौन सा राजनीतिक दल दो लड़कियां और दो लड़कों की शादी को वैध मानता है। देश में ऐसे कई राजनीतिक दल हैं जो भारत की सनातन संस्कृति को खत्म करना चाहते हैं। ऐसे दलों का मानना है कि सनातन संस्कृति रूढ़िवादी है जो राजनीतिक दल सनातन संस्कृति को खत्म करना चाहते हैं वे क्या समलैंगिक विवाह को मान्यता देंगे? जहां तक भाजपा का सवाल है तो भाजपा से जुड़े विश्व हिन्दू परिषद ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। परिषद ने स्पष्ट कहा है कि समलैंगिक विवाह सनातन संस्कृति के विरुद्ध है। लेकिन अभी कांग्रेस, समाजवादी, कम्युनिस्ट पार्टी, ममता बनर्जी की टीएमसी, तमिलनाडु की डीएमके, आम आदमी पार्टी आदि की प्रतिक्रियाएं सामने नहीं आई हैं। स्वाभाविक है कि समलैंगिक समुदाय अब राजनीतिक दलों पर दबाव डालकर संसद और विधानसभाओं में कानून पास करवाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल समलैंगिक जोड़े को बच्चा गोद लेने का अधिकार भी नहीं दिया है। यह सही है कि जब समलैंगिक जोड़ा स्वयं बच्चे पैदा नहीं कर सकता तो फिर दूसरे के बच्चों को गोद लेने का क्या अधिकार है। कुछ लोग समाज में बेवजह की विकृति फैला रहे हैं। यदि दो लड़कियां पति-पत्नी के तौर पर रहने से खुश है तो इस खुशी का सार्वजनिक तौर पर इजार करने की कोई जरूरत नहीं है। भारत तो सनातन संस्कृति को मानता है, जिसमें परिवार एक पेड़ के समान है। परिवार में हर मौसम का आनंद लिया जाता है। हमारे यहां बच्चे के जन्म से लेकर बुजुर्ग की मृत्यु तक के उत्सव होते हैं। एक समलैंगिक जोड़ा जब बच्चे पैदा नहीं कर सकता है तो उस परिवार में खुशी कहां से आएंगी। कल्पना कीजिए की एक समलैंगिक जोड़ा किसी लड़की को गोद लेता है और आगे चलकर उस लड़की के लिए भी पति के तौर पर एक लड़की ही लाता है तो फिर इस समाज का क्या होगा? बच्चे तो पैदा होना ही बंद हो जाएंगे। 


S.P.MITTAL BLOGGER (18-10-2023)

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