तो फिर केंद्र की मोदी सरकार ने राजस्थान की मुख्य सचिव उषा शर्मा का एक्सटेंशन क्यों किया? क्या नैतिकता के आधार पर उषा शर्मा सीएस का पद छोड़ेंगी? निकट रिश्तेदार सीपी जोशी नाथद्वारा से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं।
25 अक्टूबर को जयपुर में भाजपा का एक प्रतिनिधि मंडल भाजपा विधायक दल के नेता राजेंद्र सिंह राठौड़ के नेतृत्व में राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी प्रवीण गुप्ता से मिला। राठौड़ ने राजस्थान की मुख्य सचिव श्रीमती उषा शर्मा को तत्काल प्रभाव से हटाने की मांग की। राठौड़ का तर्क रहा कि उषा शर्मा का कार्यकाल 30 जून को समाप्त हो चुका है और अब वे अवधि विस्तार के तहत काम कर रही हैं। अवधि विस्तार वाला अधिकारी चुनाव कार्य से जड़ा नहीं रह सकता। जबकि मुख्य सचिव की हैसियत से उषा शर्मा को ही विधानसभा चुनाव के महत्वपूर्ण निर्णय लेने हैं। गुप्ता ने भाजपा के प्रतिनिधिमंडल को भरोसा दिलाया कि उनकी भावनाओं से केंद्रीय चुनाव आयोग को अवगत करा दिया जाएगा। सवाल उठता है कि भाजपा अब इस मुद्दे को क्यों उठा रही है? यह सही है कि उषा शर्मा का कार्यकाल छह माह बढ़ाने के लिए अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने प्रस्ताव केंद्र की मोदी सरकार को भेजा था। राज्य सरकार के इस प्रस्ताव को मोदी सरकार ने मंजूर कर लिया। यही वजह है कि उषा शर्मा अब 31 दिसंबर तक मुख्य सचिव के पद पर रहेंगी। सवाल उठता है कि जब मोदी सरकार ने छह माह के एक्सटेंशन को मंजूरी दी, तब यह ख्याल क्यों नहीं आया कि राजस्थान में नवंबर और दिसंबर में विधानसभा के चुनाव होने हैं। जिन भाजपा नेताओं की सिफारिश से उषा शर्मा को एक्सटेंशन मिला उनका यह दायित्व था कि वे विधानसभा चुनाव का ख्याल रखते। यदि एक्सटेंशन के समय चुनाव का ध्यान रखा जाता तो आज भाजपा को मुख्य निर्वाचन अधिकारी को ज्ञापन नहीं देना पड़ता। भाजपा के नेता माने या नहीं, लेकिन उषा शर्मा के प्रकरण में भाजपा ही जिम्मेदार है। जहां तक सीएम अशोक गहलोत का सवाल है तो उन्हें अच्छी तरह पता था कि नवंबर दिसंबर में चुनाव होने हैं। गहलोत ने बड़ी चतुराई से अवधि विस्तार का प्रस्ताव भेजा और मोदी सरकार ने स्वीकृति दे दी। कहां जा सकता है कि गहलोत ने भाजपा नेताओं को राजनीतिक मात दी है। जब मोदी सरकार उषा शर्मा का कार्यकाल 6 माह बढ़ा रही थी, तब भाजपा के किसी भी नेता ने विरोध नहीं किया।
नैतिकता का तकाजा:
मोदी सरकार की स्वीकृति और भाजपा नेताओं की मांग अपनी जगह है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या उषा शर्मा नैतिकता के आधार पर मुख्य सचिव का पद छोड़ेंगी? वर्ष 2009 में हरीश मीणा राज्य के पुलिस महानिदेशक थे, तब उनके बड़े भाई नमोनारायण मीणा लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे। तब चुनाव की निष्पक्षता को ध्यान में रखते हुए हरीश मीणा दो माह की छुट्टी पर चले गए। हरीश मीणा उस समय स्थायी डीजीपी थे। जो नियम हरीश मीणा पर लागू होता है, वही नियम उषा शर्मा पर भी लागू होता है। उषा शर्मा के निकट रिश्तेदार डॉ. सीपी जोशी नाथद्वारा से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। उषा शर्मा पर नैतिकता इसलिए भी लागू होती है कि वे मुख्य सचिव के पद पर भी सेवा विस्तार पर हैं। सवाल उठता है कि यदि उषा शर्मा पद छोड़ती हैं तो फिर अगला मुख्य सचिव कौन होगा? वरिष्ठता के आधार पर श्रीमती वीनू गुप्ता का नाम है, लेकिन वीनू गुप्ता पर भी अंगुली उठ सकती है, क्योंकि गहलोत सरकार ने वीनू गुप्ता को हाल ही में रियल स्टेट नियामक प्राधिकरण रेरा का चेयरमैन नियुक्ति किया है। यह बात अलग है कि वीनू गुप्ता ने अभी तक भी इस पद को स्वीकार नहीं किया है। वीनू गुप्ता और उषा शर्मा की सेवानिवृत्ति 31 दिसंबर को ही है। चूंकि सीएम गहलोत ने बड़ी चतुराई से उषा शर्मा का कार्यकाल छह माह के लिए बढ़ा दिया, इसलिए वीनू गुप्ता मुख्य सचिव नहीं बन सकी। मुख्य सचिव की भरपाई के लिए ही वीनू गुप्ता को रेरा का चेयरमैन बनाया गया। वीनू गुप्ता नए पद पर पांच वर्ष तक रहेंगी। गहलोत सरकार वीनू गुप्ता के पति डीबी गुप्ता पर भी मेहरबान रही है। डीबी गुप्ता को मुख्य सचिव के पद से सेवानिवृत्ति के बाद राज्य का मुख्य सूचना आयुक्त नियुक्ति किया है। इस पद पर डीबी गुप्ता आज भी कार्य कर रहे हैं।
S.P.MITTAL BLOGGER (26-10-2023)
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