आखिर अशोक गहलोत और खाचरियावास सरकारी बंगलों से इतना मोह क्यों दिखा रहे हैं? मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी को गेस्ट हाउस में रहना पड़ रहा है।
राजस्थान की राजनीति में इन दिनों पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा सरकारी बंगला खाली नहीं किए जाने को लेकर चर्चा है। राजस्थान विधानसभा के परिणाम तीन दिसंबर को आ गए थे। आमतौर पर परिणाम के बाद ही मुख्यमंी सरकारी बंगला खाली कर देते हैं, ताकि सत्तारूढ़ पार्टी के मुख्यमंत्री बंगले में रह सके। भाजपा सरकार के भजनलाल शर्मा ने 15 दिसंबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली, लेकिन आज दो माह गुजर जाने के बाद भी भजनलाल शर्मा सरकारी आवास में शिफ्ट नहीं हो सके हैं। शर्मा को पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बंगला खाली करने का इंतजार है। हालांकि विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने सिविल लाइन में ही गहलोत को कैबिनेट मंत्रियों वाला बंगला अलॉट कर दिया है, लेकिन अशोक गहलोत ढाई माह बाद भी मुख्यमंत्री वाले बंगले में ही रह रहे हैं। गहलोत जिस प्रकार मुख्यमंत्री के बंगले के प्रति मोह दिखा रहे हैं, उसी प्रकार पूर्व मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास भी सरकारी बंगले का मोह नहीं छोड़ रहे हैं। खाचरियावास का बंगला देवनानी ने स्वयं के लिए आवंटित किया है। खाचरियावास के जयपुर में स्वयं के दो तीन निजी आवास हैं। लेकिन फिर भी खाचरियावास सरकारी बंगले में जमे हुए हैं। देवनानी ने खाचरियावास से दो तीन बार बंगला खाली करने का आग्रह भी किया है, लेकिन खाचरियावास सरकारी बंगले का कब्जा नहीं दे रहे हैं। देवनानी चाहते हैं कि बसंत पंचमी पर सरकारी बंगले में शिफ्ट हो जाए, लेकिन खाचरियावास ने देवनानी की इच्छा पर पानी फेर दिया। गहलोत और खाचरियावास के द्वारा बंगले खाली नहीं किए जाने से मुख्यमंत्री भजनलाल को जयपुर में ऑफिसर ट्रेनिंग सेंटर के गेस्ट हाउस में रहना पड़ रहा है। इसी गेस्ट हाउस के परिसर में मुख्यमंत्री जनसुनवाई भी करते हैं। सरकारी आवास नहीं होने से मुख्यमंत्री आवास का कामकाज भी प्रभावित हो रहा है। सरकारी आवा में मुख्यमंत्री पद के अनुरूप अनेक सुविधाएं होती है। इसी प्रकार देवनानी को भी विधायकों के फ्लैट में रहना पड़ रहा है। इससे विधानसभा अध्यक्ष का कामकाज भी प्रभावित हो रहा है। सरकारी नियमों के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री और मंत्रियों को 3 फरवरी तक सरकारी बंगले खाली कर देने चाहिए थे, लेकिन गहलोत और खाचरियावास जैसे पूर्व मंत्रियों ने पहले तो शिष्टाचार नहीं निभाया और अब नियमों की भी अवहेलना कर रहे हैं। नियमों के मुताबिक यदि दो माह बाद भी कोई मंत्री बंगला खाली नहीं करता है तो फिर एक माह तक डबल किराया देकर रह सकता है। यानी गहलोत और खाचरियावास को 3 फरवरी के बाद डबल किराया देना होगा। 3 मार्च के बाद भी यदि अशोक गहलोत सरकारी आवास खाली नहीं करते हैं तो प्रतिदिन 10 हजार रुपए किराया देना होगा। सवाल किराये का नहीं है, सवाल शिष्टाचार का है। चुनाव में हार जाने के बाद भी कांग्रेस नेताओं का सरकारी संसाधनों से मोह नहीं छूट रहा है।
S.P.MITTAL BLOGGER (19-02-2024)
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