विभाजन के बाद भी मुसलमानों के लिए अपना कानून हो सकता है तो फिर हिन्दुओं को नागरिकता देने पर ऐतराज क्यों? सीएए पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की दो टूक।

16 मार्च को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आज तक न्‍यूज चैनल पर विशेष कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार राहुल कंवल के सवालों का जवाब दिया। राहुल ने सवाल पूछने के बजाए आरोप लगाया कि संशोधित नागरिकता कानून से हिंदुओं को भारत की नागरिकता देकर मोदी सरकार हिंदुओं का तुष्टीकरण कर रही है। इसके जवाब में अमित शाह ने कहा कि मुझे मीडिया की समझ पर तरस आता है। नए कानून के तहत मुस्लिम देश पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धर्म के आधार पर प्रताड़ित होकर आए हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध और पारसी समुदाय के लोगों को नागरिकता दी जा रही है। शाह ने कहा कि सब जानते हैं कि देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ। धर्म के आधार पर पाकिस्तान बन जाने के बाद भी मुसलमानों के लिए अपना पर्सनल   लॉ   कानून है। लेकिन अब जब प्रताड़ित हिंदुओं को नागरिकता दी जा रही है तो हमारी सरकार पर तुष्टीकरण का आरोप लगाया जारहा है। मुझे कोई बताए कि जब पाकिस्तान बन गया, तब भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ का प्रावधान क्यों किया गया? शाह ने कहा कि जब देश का विभाजन हो रहा था, तब पाकिस्तान में हिंदुओं को मारा काटा जा रहा था, तब यह निर्णय लिया गया कि जो लोग जहां है वहीं पर रहे। ऐसे में लाखों हिंदू, सिख और ईसाई पाकिस्तान में ही रह गए। तब यह भी कहा गया कि ऐसे हिंदुओं को शांति होने पर भारत बुला लिया जाएगा। जो बात विभाजन के समय हो जानी चाहिए थी, उसे अब हम पूरा कर रहे हैं। शाह ने कहा कि पाकिस्तान से प्रताड़ित होकर आए हिंदुओं को भारत की नागरिकता देने पर यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भी सहमति जताई थी। ऐसे में हिंदुओं के तुष्टीकरण का सवाल ही नहीं होता। मीडिया को विपक्ष के बहकावे में नहीं आना चाहिए। शाह ने कहा कि मीडिया को नेताओं के इंटरव्यू लेने के बजाए उन हिंदू, सिख शरणार्थियों के इंटरव्यू लेना चाहिए जो अपने ही देश में बेघर है। शाह ने इस बात पर अफसोस जताया कि लाखों हिंदू नागरिकता के अभाव में सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। ऐसे हिंदू सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज से वंचित है। इतना ही नहीं बच्चे सरकारी स्कूलों में प्रवेश नहीं ले पा रहे हैं। शाह ने सवाल उठाया कि आखिर इन हिंदुओं का क्या कसूर है? यदि ऐसे हिंदू विभाजन के समय ही भारत आ जाते तो उन्हें नागरिकता मिल जाती, लेकिन तब के हालातों को देखते हुए हिंदू भारत नहीं आ सके। मीडिया को यह समझना चाहिए कि विभाजन के समय पाकिस्तान में 23 प्रतिशत आबादी हिंदू, सिख और ईसाइयों की थी, लेकिन आज मात्र 3 प्रतिशत है। आखिर इन समुदायों के लोग कहां चले गए। 
S.P.MITTAL BLOGGER (17-03-2024)

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