अजमेर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। भाग – 13 जब बम बनाते समय पिता रुची राम की दो अंगुलियां अलग हो गई। आपातकाल में जेल में नवल राय बच्चानी और उनकी पत्नी लाजवंती का मार्मिक संवाद सुनकर आंखों में आंसू आ गए। सुविधाओं के लिए जब तुलसीदास सोनी ने जब जेल में 10 दिन तक अनशन किया।

तुलसीदास सोनी जब मात्र 8 वर्ष के थे, तब अजमेर की चंद्रकुंड शाखा के स्वयंसेवक थे और आज जब 80 वर्ष की उम्र है, तो वरुण सागर रोड स्थित संत कंवरराम कॉलोनी में लगने वाली प्रौढ़ शाखा के नियमित स्वयंसेवक हैं। इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रभाव ही कहा जाएगा कि जो व्यक्ति एक बार संघ से जुड़ता है, वह जीवन के अंत तक जुड़ा रहता है। तुलसीदास सोनी तो उन स्वयंसेवकों में शामिल है जिन्होंने स्वयंसेवक होने के कारण अनेक कठिनाइयां झेली। यहां तक कि आपातकाल में जेल भी जाना पड़ा। उनके परिवार ने विभाजन की विभीषिका को भी झेला। यूं देखा जाए तो तुलसी जी का पूरा परिवार ही संघ मय रहा। देश के विभाजन से पूर्व उनके पिता रुची राम जी सिंध के शिकारपुर में सोने चांदी के जेवरात बनाने का काम करते थे। पिता के कारखाने में अधिकांश कारीगर मुस्लिम थे, जिनमें महिलाएं भी शामिल थी। 1947 में जब देश के विभाजन की चर्चा होने लगी तो सिंध में कट्टरपंथी भी हावी होने लगे। उस समय पिता रुची राम शिकारपुर की शाखा के मुख्य शिक्षक की भूमिका में थे, इसलिए परिवार को कुछ ज्यादा ही खतरा था। कट्टरपंथियों के हमले से बचने के लिए तब पिता ने बम बनाने का फैसला किया। विस्फोटक सामग्री से जब बम बनाया जा रहा था, तभी बम फट गया। इससे पिता के हाथ की दो अंगुलिया नष्ट हो गइ। जब देश के विभाजन की घोषणा हुई तो सिंधी हिंदुओं को भारत आना पड़ा। हमारा परिवार समुद्र मार्ग से मुंबई पहुंचा। सबसे पहले पिता ने मुंबई में जेवरात बनाने की दुकान लगाई, लेकिन बाद में दुकान को अपने छोटे भाई को दे दिया और 1951 में अजमेर आ गए। फिर अजमेर में सोने चांदी के जेवरात बनाने का काम नया बाजार में शुरू किया।  
संघ की सक्रियता:
चूंकि मैं अजमेर में संघ में शुरू से ही सक्रिय रहा, इसलिए शाखा में मुख्य शिक्षक और कार्यवाह की भूमिका भी निभाई। मेरे पास शुरू से ही लाल बुलेट रही जो अब भी संघ में चर्चा का विषय है। इसी बुलेट पर मैंने संघ के पर्चो को वितरित किया। संघ में सक्रियता के दिनों में बुलेट पर ही मैं किशनगढ़, नसीराबाद और जयपुर तक चक्कर लगाता था। तब मैं संघ के प्रचारकों को अपनी बुलेट पर बिठाकर इधर उधर ले जाता था।  
आपातकाल में जेल:
25 जून 1975 की रात को जब देश में आपातकाल की घोषणा हुई तो उस रात अजमेर में भयंकर बरसात हो रही थी। बरसात में ही स्वयंसेवकों की धरपकड़ शुरू हो गई। चूंकि मेरा चेहरा पूरे शहर में चर्चित था, इसलिए मुझे गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने जला बिछाया। मैं तो निडर होकर गिरफ्तार होना चाहता था, लेकिन तब प्रचारक धर्मनारायण जी ने सूचना भिजवाई कि मैं भूमिगत हो जाऊ क्योंकि जो लोग जेल जाएंगे उनके परिवार वालों को संभालने वाला कोई चाहिए। संघ की योजना के तहत मैंने आपातकाल में दस माह तक जेल से बाहर रहकर सक्रिय भूमिका निभाई। इधर उधर से धन एकत्रित कर उन परिवारों को दिया जिन का एक दो सदस्य जेल में था। जब मेरी सक्रियता के बारे में सूचना मिली तो पुलिस ने आखिरकार 10 अप्रैल 1976 को करीब पचास जवानों के साथ मुझे घेर लिया। जब मैंने देखा कि अब बचने का कोई रास्ता नहीं है तो पुलिस ने समक्ष सरेंडर कर दिया। जिस वक्त मेरी गिरफ्तारी हुई, तब मैं नया बाजार की अपनी दुकान पर बैठा था। जैसे ही पुलिस ने मुझे हिरासत में लिया वैसे ही मैंने भारत माता की जय के नारे लगाना शुरू कर दिया। पुलिस वाले मुझे पैदल ही नया बाजार से कोतवाली पुलिस स्टेशन ले गए। पूरे रास्ते मैंने भारत माता की जय का उद्घोष किया। मैं जब कोतवाली पहुंचा तो वहां पहले से ही झवरी लाल चौधरी, महादेव जी घड़ी वाले, रतनलाल जी यादव, गोपीचंद जी, प्रेम सुख सुराणा जी बैठे थे। हम सभी को रात भर कोतवाली में बैठाकर रखा और फिर मीसा का कानून लगाकर अगले दिन सेंट्रल जेल में भेज दिया। जेल में मेरी मुलाकात भानु कुमार शास्त्री, भंवरलाल जी शर्मा (बाद में मंत्री बने) श्री करण शारदा, कैलाश जी मेघवाल, गुमानमल जी लोढ़ा आदि से हुई। उस समय जेल में हम जैसे बंदियों के साथ अन्याय हो रहा था। मेरे से यह अन्याय बर्दाश्त नहीं हुआ। मैंने जेल अधिकारियों से कहा कि हम किसी अपराध में नहीं आए है। हम तो राजनीतिक बंदी है। ऐसे में हमें जेल में अपराधियों की तरह नहीं रखा जा सकता। अधिकारियों ने जब मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया तो मैंने भूख हड़ताल शुरू कर दी। मैं 10 दिनों तक अनशन पर रहा। तब कलेक्टर को जेल में आना पड़ा और हमें सुविधाएं देनी पड़ी। तभी हमने खेलकूद के साथ ही जेल के अंदर शाखा लगाई। आपातकाल हटने के बाद ही हम जेल से बाहर आ सके। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हंू कि जेल से बाहर आने के लिए किसी भी स्वयंसेवक ने माफी नहीं मांगी।

आंखों में आंसू:
जेल में एक बार नवल राय जी बच्चानी की पत्नी लाजवंती मिलने आई। लाजवंती ने बच्चानी जी से कहा कि मेरे लिए घर चलाना मुश्किल हो रहा है। बिना किसी कमाई के चार चार बच्चों को दो समय रोटी खिलाना मुश्किल है। यह बात कहते हुए लाजवंती रोने लगी। लेकिन बच्चानी जी ने पत्नी के आंसू की परवाह किए बगैर दृढ़ता के साथ कहा कि यदि मैं मर जाता तब भी तो तुम्हे ही परिवार को पालना पड़ता। बच्चानी जी की बात सुनकर हम सभी की आंखों में आंसू आ गए। तब बाहर रह रहे स्वयंसेवकों को सूचना भिजवाई गई कि बच्चानी जी के परिवार की मदद की जाए, लेकिन बच्चानी जी की दो टूक बात सुनने के बाद पत्नी लाजवंती ने लाचारी छोड़ी और अपने परिवार को पालने के लिधर घर पर ही बच्चों के साथ कागज के लिफाफे बनाए और उन्हें बेचकर दो वक्त की रोटी का इंतजाम किया। 

चुनाव लड़ने का प्रस्ताव:
21 मार्च 1977 को आपातकाल हटा और हम सभी रिहा हो गए। उन्हीं दिनों चुनाव की भी चर्चा हुई, तब हमारे प्रचारक धर्मनारायण जी ने मेरे समक्ष प्रस्ताव रखा कि मैं अजमेर पश्चिम क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव लड़ू। लेकिन मैंने चुनाव लडऩे से मना कर दिया, क्योंकि मुझे संघ का ही कार्य करना था। बाद में नवल राय बच्चानी को उम्मीदवार बनाया गया और वे विधायक बने। उन्हीं दिनों संघ ने मुझे राजनीति में जाने के निर्देश दिए। मैं पहले मंडल अध्यक्ष फिर जिला उपाध्यक्ष और महामंत्री के पद पर रहा। तुलसी जी ने अपने 80 वर्षों का वृतांत एक डायरी में लिख रखा है। वह रोजाना की घटनाओं को डायरी में लिखते हैं। तुलसी जी का मानना है कि सनातन धर्म और हिंदुओं की रक्षा के लिए संघ का मजबूत होना जरूरी है। हर सनातनी को संघ से जुड़ना चाहिए। सनातनी यदि एकजुट रहेंगे तभी देश बच सकेगा। आज हिंदुओं को एकजुट करने में संघ महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। तुलसी जी के जीवन के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9829029647 पर तुलसी जी सोनी से ली जा सकती है। 80 वर्ष की उम्र में भी तुलसी जी को जीवन की हर घटना याद है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (11-10-2025)
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