जगदीप धनखड़ और सी.पी. राधाकृष्णन के राज्यसभा का सभापति होने में बहुत अन्तर है। चेहरा भावशून्य लेकिन असरदार । काशी में पूजा-अर्चना के बाद मासांहार छोड़ा। यह पीएम मोदी के लिए बड़ी बात है।
यूं तो सीपी राधाकृष्णन ने 12 सितम्बर 2025 को देश के , उपराष्ट्रपति का पद संभाल लिया था, लेकिन 1 दिसम्बर को यह पहला अवसर रहा, जब राज्यसभा के सभापति के तौर पर राधाकृष्णन को अपनी भूमिका प्रकट करनी पड़ी। राधाकृष्णन से पहले जगदीप धनखड़ उपराष्ट्रपति के नाते राज्यसभा के सभापति थे। धनखड ने कोई तीन वर्ष तक सभापति की कुर्सी पर बैठकर राज्यसभा का संचालन किया। अब जगदीप धनखड़ और राधाकृष्णन की भूमिका की तुलना की जा सकती है। भले ही विपक्ष संसद के शीत कालीन सत्र में हंगामा कर रहा हो, लेकिन राधाकृष्णन अपनी प्रभावी भूमिका निभाने में कोई कसर नहीं छोड रहे है। धनखड़ को जहां पक्ष-विपक्ष के मुद्दे पर हर बार टिप्पणी करते देखा गया वही राधाकृष्णन किसी भी मुद्दे पर अपनी ओर से कोई टिप्पणी नहीं कर रहे। एक दिसम्बर को संसद के पहले दिन ही विपक्ष के सांसदों ने जब राधाकृष्णन पर सीधे तौर से टिप्पणी की, तब भी उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा से राधाकृष्ण न तो गदगद हुए और न ही विपक्ष की आलोचना पर कोई नाराजगी दिखायी। पहले दिन राधाकृष्ण ने सभी राजनैतिक दलों के नेताओं की बात को ध्यान से सुना। शून्यहीन चेहरा बता रहा था कि राधाकृष्णन की राज्यसभा में उपस्थिति बहुत असरदार है। हालांकि राधाकृष्णन पूर्व में दो बार तमिलनाडू के कोयंबबर से सांसद रह चुके है और उन्हें लोकसभा में बैठने का अनुभव है। लेकिन यह पहला मौका है जब वे सीधे संसद में राज्यसभा के सभापति की कुर्सी पर आसीन हुए है। पिछले दो दिनों की राज्य सभा की कार्यवाही में राधाकृष्णन ने हंगामे पर सांसदों को कोई उपदेश भी नहीं दिया। यदि सांसद खासकर विपक्ष के सांसद सदन नहीं चलाना चाहते है, तो राधाकृष्णन को सदन चलाने में कोई रुचि नहीं थी। उन्होंने स्पष्ट संकेत दिए कि सांसद चाहेगें तो ही संसद चलेगी। बिना कोई टिप्पणी किये बिना राज्य सभा को स्थगित करने से जाहिर है कि राधाकृष्णन कम बोलकर भी अपनी प्रभावी भूमिका प्रकट कर रहे है। जिन पाठकों को जगदीप धनखड़ की राज्यसभा में भूमिका याद है, उन्हें साफ लगेगा कि धनखड और राधाकृष्णन में बहुत अंतर है। राधाकृष्णन को यह पता है कि राज्यसभा में हर सदस्य का एजेंडा उसके राजनैतिक दल के अनुरूप है इसलिए यदि वे सांसदों को शांत रहने की सलाह भी देगें तो उसका असर नहीं होगा।
मासांहार छोड़ा –
1 दिसम्बर को प्रथम दिन जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राज्यसभा में में राधाकृष्णन के राजनैतिक, सामाजिक, पारिवारिक और धार्मिक, पृष्ठभूमि की जानकारी दे रहे थे तभी पीएम मोदी ने बताया कि उपराष्ट्रपति बनने के बाद राधाकृष्णन ने मेरे संसदीय क्षेत्र वाराणासी में काशी विश्वनाथ के मंदिर में पूजा अर्चना की। पूजा अर्चना के साथ ही राधाकृष्णन ने मासांहार छोड़ने का संकल्प लिया। मेरे लिए बड़ी बात है कि राधाकृष्णन जी ने मेरे संसदीय क्षेत्र में मासांहार छोड़ने का संकल्प किया है। पीएम ने कहा कि मैं मासांहार वालों का आलोचक नहीं हूं, लेकिन जीवन में सात्विकता का बहुत असर होता है।
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