तो विदेशी फंड से चल रहा है दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन? डेढ़ माह के धैर्य के बाद अब सरकार भी जवाबी कार्यवाही के मूड में। विवाद नहीं सुलझा तो 26 जनवरी को दिल्ली की सड़कों पर होगा आंदोलनकारियों और सरकार का शक्ति प्रदर्शन।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने किसान आंदोलन से जुड़े कई नेताओं को विदेशी फंड लेने के मामले में समन जारी किया है। इनमें लोक भलाई इंसाफ वेलफेयर सोसायटी को चलाने वाले किसान नेता बलदेव सिंह सिरसा भी शामिल हैं। इन्हीं लोगों में पंजाब के लोक गायक भी हैं। अब ऐसे लोगों का कहना है कि विदेशी फंड लंगर के लिए प्राप्त हुआ है। सब जानते हैं कि दिल्ली की सीमाओं पर डेढ़ माह से बैठे लोगों में पंजाब के नागरिक ज्यादा हैं और धरना स्थलों पर लंगर व्यवस्था भी चल रही है। यहां तक जब 40 यूनियनों के प्रतिनिधि सरकार से वार्ता करने जाते हैं तब भी किसी संस्था द्वारा भेजे गए लंगर का ही उपयोग होता है। पंजाब में लंकर व्यवस्था गुरुद्वारों से भी जुड़ी हुई है, इसलिए अनेक सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं में बड़ी मात्रा में विदेशों से चंदा प्राप्त होता है। पंजाब में लंगर व्यवस्था से जुड़ी संस्थाएं ही अब दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन में सक्रिय हैं। ऐसे में किसान आंदोलन में विदेशी फंड के उपयोग से इंकार नहीं किया जाता है। पूरा देश देख रहा है कि धरना स्थल पर मसाज पार्लर से लेकर सभी सुविधाएं उपलब्ध करवाई गई है। ऐसे में धन की आवश्यकता भी अधिक है। एनआईए अब यही जानना चाहती है कि किसान आंदोलन में विदेश से कितना पैसा आया है? सवाल यह भी है कि क्या कोई आंदोलन विदेशी फंड से चल सकता है? यदि ऐसा है तो फिर यह देश के लिए बेहद खतरनाक होगा। ऐसे में तो कोई भी दुश्मन देश फंडिंग कर देश में अराजकता फैला सकता है। भारत में अराजकता फैलाने के लिए पाकिस्तान और चीन तो तैयार बैठे हैं। भारत के नागरिकों खास कर पंजाब के लोगों को विदेशी ताकतों की इन साजिशों को समझना चाहिए। पिछले डेढ़ माह से देश की राजधानी को घेरा हुआ है। दिल्ली आने वाले प्रमुख मार्ग जाम हैं। इससे दिल्लीवासियों को भारी परेशानी हो रही है। सरकार ने अभी तक धैर्य दिखाया है। जो लोग दिल्ली को घेर कर बैठे हैं, उन पर कोई सीधी कार्यवाही नहीं की है। सरकार तीन कृषि कानूनों पर लगातार वार्ता कर रही है। 10वें दौर की वार्ता भी 19 जनवरी को होनी है। सरकार कई बार कह चुकी है कि तीनों कानून किसानों के हित में हैं। कृषि विशेषज्ञों का भी मानना है कि इन कानूनों से किसान खुशहाल होंगे। किसानों और उपभोक्ताओं के बीच दलालों की शृंखला खत्म हो जाएगी। इससे किसानों को अपनी उपज का लागत से अधिक दाम मिलेगा, वहीं उपभोक्ताओं को सस्ती दर पर माल मिलेगा। लेकिन इसके बावजूद भी कुछ लोग कृषि कानूनों को रद्द करने की जिद पर अड़े हुए हैं। अब आंदोलनकारियों की ओर से घोषणा की गई है कि 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर जब दिल्ली के राज पथ पर देश की सेनाओं की परेड होगी, तब दिल्ली की सड़कों पर ट्रेक्टर मार्च निकाला जाएगा। यानि गणतंत्र दिवस के प्रोग्राम को बिगाडऩे की कोशिश होगी। सब जानते हैं कि गणतंत्र दिवस का प्रोग्राम देश की आजादी और स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है। क्या देश की आजादी से जुड़े कार्यक्रम को बिगाडऩा उचित है? स्वभाविक है कि देश के नागरिकों के सम्मान के खातिर सरकार ऐसे ट्रेक्टर मार्च को रोकने की कोशिश करेगी। तब सरकार और आंदोलनकारियों के बीच शक्ति प्रदर्शन होगा। विदेशों में बैठे भारत विरोधी तत्व तो चाहते हैं ही है कि आंदोलनकारियों और सुरक्षा बलों में भिड़ंत हो जाए। S.P.MITTAL BLOGGER (17-01-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9509707595To Contact- 9829071511

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