एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत क्या अशोक गहलोत और राजस्थान पर ही लागू होगा? कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद भी मल्लिकार्जुन खड़गे से राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता का पद वापस नहीं लिया जा रहा है?
2 दिसंबर को फर्स्ट इंडिया न्यूज़ चैनल पर रात 8 बजे बिग फाइट लाइव डिबेट में पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक के तौर पर मैंने भी भाग लिया। यह डिबेट कांग्रेस में एक व्यक्ति एक पद पर केंद्रित थी। एंकर विजेंद्र सोलंकी का यह सवाल वाजिब था कि कांग्रेस का यह सिद्धांत क्या सिर्फ अशोक गहलोत और राजस्थान पर ही लागू होता है? अशोक गहलोत को जब कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का निर्णय हुआ, तब कहा गया कि एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत का पालन करते हुए गहलोत को राजस्थान के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना चाहिए। गहलोत पर इतना दबाव डाला गया कि उन्हें सार्वजनिक तौर पर एक व्यक्ति एक पद की बात को स्वीकारना पड़ा। इतना ही नहीं तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी के निर्देश पर 25 सितंबर को जयपुर में कांग्रेस विधायक दल की बैठक भी बुला ली ताकि गहलोत के बाद नए मुख्यमंत्री के नाम को आगे बढ़ाया जाए। यह बात अलग है कि तब गहलोत ने राष्ट्रीय नेतृत्व की इस योजना को फेल कर दिया। गहलोत ने जो बगावती रुख अपनाया उससे वे राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से भी बच गए। सब जानते हैं कि जब गोविंद सिंह डोटासरा को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष और रघु शर्मा व हरीश चौधरी को गुजरात व पंजाब का प्रभारी बनाया गया था, तब इन तीनों से अशोक गहलोत ने मंत्री पद से इस्तीफा ले लिया था। सवाल उठता है कि एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत क्या अशोक गहलोत और राजस्थान पर ही लागू होता है? मल्लिकार्जुन खडग़े को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बने डेढ़ माह हो गए, लेकिन खडग़े के पास अभी राज्यसभा में प्रतिपक्ष नेता का पद है। यानी उन्हें केबिनेट मंत्री की सुविधा अभी मिल रही है। जब खडग़े को राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ साथ राज्यसभा में प्रतिपक्ष का नेता भी बनाए रखना था फिर अशोक गहलोत को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से पहले ही मुख्यमंत्री के पद से क्यों हटाया जा रहा था? एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत को लागू करने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय अध्रूख के नाते खडग़े पर ही है, लेकिन जब खुद खडग़े ही दो महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए हैं, तब इस सिद्धांत को पार्टी में कैसे लागू करेंगे? 25 सितंबर से पहले तो यही माना जाता था कि कांग्रेस में अशोक गहलोत ही गांधी परिवार के सबसे भरोसेमंद नेता हैं, लेकिन अब ऐसा लगता है कि सबसे भरोसेमंद नेता मल्लिकार्जुन खडग़े हैं। सब जानते हैं कि कर्नाटक की राजनीति से निकले खडग़े 2014 से 2019 तक लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता यानी प्रतिपक्ष के नेता थे। मई 2019 में लोकसभा का चुनाव हार जाने के बाद खडग़े को राज्यसभा में लाया गया और गुलाम नबी आजाद को हटाकर खडग़े को राज्यसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाया गया। यानी गांधी परिवार ने खडग़े के लिए केबिनेट मंत्री की सुविधाओं को बरकरार रखा। एक लोकसभा का चुनाव हारने के बाद भी खडग़े को राज्यसभा में कांग्रेस संसदीय दल का नेता बनाया गया, वहीं राजस्थान में अल्पमत की सरकार चलाने वाले अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री के पद से भी हटाने का प्रयास किया गया। गहलोत में यदि स्वयं का दम नहीं होता तो अब तक भूतपूर्व मुख्यमंत्री हो चुके होते। सवाल यह भी है कि आखिर गहलोत ने गांधी परिवार की चाकरी के लिए क्या क्या नहीं किया? गांधी परिवार की हौसला अफजाई के लिए उदयपुर में तीन दिन का राष्ट्रीय चिंतन शिविर करवाया। बीमार सोनिया गांधी को लाने के लिए चार्टर्ड प्लेन का इंतजाम किया। एक अन्य मौके पर प्रियंका गांधी को लेने के लिए स्वयं एयरपोर्ट गए और एक एनजीओ के कार्यक्रम स्थल तक अपनी कार में सफर करवाया। राहुल गांधी की मिजाजपुर्सी के लिए तो गहलोत ने राजनीति और मुख्यमंत्री पद की गरिमा को ही ताक में रख दिया।
S.P.MITTAL BLOGGER (03-12-2022)
Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9929383123To Contact- 9829071511