सीबीआई में अफसरों के झगड़े पर सुप्रीम कोर्ट का संतुलित निर्णय आलोक वर्मा के प्रकरण में अब रिटायर जज पटनायक की निगरानी में जांच होगी।
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सीबीआई में पिछले एक सप्ताह से बड़े अधिकारियों के बीच जो खींचतान चल रही थी, उस पर 26 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस सुनवाई को लेकर नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार भी घबराई हुई थी। क्योंकि इस समय सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की कुर्सी पर जस्टिस रंजन गोगई बैठे हैं। ये वो ही जज हैं जिन्होंने दीपक मिश्रा के कामकाज को लेकर साथी जजों के साथ प्रेस काॅन्फ्रेंस की थी। लेकिन जब निर्णय आया तो सरकार ने राहत की सांस ली। जस्टिस गोगई के साथ जस्टिस संजय किशन और जस्टिस जोसेफ की पीठ ने कहा कि आलोक वर्मा पर लगे आरोपों की जांच केन्द्रीय सतर्कता आयोग ही करेगा। लेकिन यह जांच रिटायर जज ए के पटनायक की निगरानी में होगी। साथ ही जांच का कार्य दो सप्ताह में पूरा करना होगा। अब इस मामले की सुनवाई 12 नवम्बर को होगी। कोर्ट ने यह भी निर्णय दिया कि अंतिम निर्णय तक सीबीआई के कार्यवाहक निदेशक राजेश्वर राव कोई नीतिगत निर्णय नहीं लेंगे। कोर्ट के इस निर्णय के तुरंत बाद केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि कोर्ट ने सरकार के रुख को ही आगे बढ़ाया है। सरकार का मानना रहा कि जब निदेशक और विशेष निदेशक एक दूसरे पर भ्र्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं तब दोनों को फिलहाल सीबीआई से हटाया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने भी 26 अक्टूबर को सरकार के इस फैसले पर कोई टिप्पणी नहीं की और सीबीसी की जांच को ही आगे बढ़ाया है। सरकार पहले ही कह चुकी है कि निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को पदों से हटाया नहीं गया है बल्कि उन्हें छुट्टी पर भेजा गया है। जेटली ने कहा कि सरकार सीबीआई की निष्पक्षता को बनाए रखना चाहती है।
कोर्ट के निर्णय की प्रशंसाः
सुप्रीम कोर्ट ने देश के इस ज्वंलत मुद्दे पर जो निर्णय दिया उसकी अब न्यायिक क्षेत्र में प्रशंसा हो रही है। चीफ जस्टिस रंजन गोगई को लेकर जो आशंका व्यक्त की जा रही थी, वह भी निर्मूल साबित हुई है। जेटली का यह कथन सही है कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के निर्णय को ही आगे बढ़ाया है। हालांकि एक अंग्रेजी अखबार ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के आरोपों की पुष्टि की है। अखबार के अनुसार सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को विगत दिनों एक पत्र प्राप्त हुआ था कि जिसमें राफेल डील के बारे में विस्तृत जानकारी थी, इस जानकारी के आधार पर ही वर्मा राफेल डील की जांच करने वाले थे। सरकार को भनक लगते ही सीबीआई में हंगामा शुरू हो गया और निदेशक और विशेष निदेशक दोनों को लम्बी छुट्टी पर भेज दिया गया। राहुल गांधी और अंग्रेजी अखबार के आरोपों में कितनी सच्चाई है यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा। लेकिन इतना जरूर है कि इस पूरे प्रकरण से सीबीआई के साथ साथ सरकार की छवि पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है।
राहुल ने दी गिरफ्तारीः
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने 26 अक्टूबर को दिल्ली में सीबीआई मुख्यालय पर प्रदर्शन किया और गिरफ्तारी दी। राहुल के साथ राष्ट्रीय महासचिव अशोक गहलोत और अन्य नेताओं ने भी गिरफ्तारी दी। हिरासत में लिए जाने के बाद सभी को पुलिस के वाहन में बैठा कर थाने लागया गया जहां बिना शर्त रिहा कर दिया गया। पुलिस की हिरासत से छूटने के बाद राहुल गांधी ने राफेल पर अपने आरोपों को एक बार फिर दोहराया और कहा कि सरकार कितना भी झूठ बोल ले, लेकिन एक दिन सच्चाई सामने आएगी ही।
काॅमनकौज की याचिका पर नोटिसः
सीबीआई के प्रकरण में ही मशहूर वकील प्रशांत भूषण और उनके एनजीओ काॅमनकौज ने जो याचिकाएं प्रस्तुत की उन पर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार, सीबीसी और सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को नोटिस जारी किए हैं। जानकारों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट की यह कार्यवाही आगे चल कर सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है।