अजमेर में ख्वाजा साहब की दरगाह और आगरा में ताजमहल के रिवाजों को लेकर न हो विवाद। आखिर दोनों शहरों का कारोबार भी जुड़ा है।
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अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में कदीमी सलाम को पढ़ने व न पढ़ने तथा आगरा स्थित विश्वविख्यात ताजमहल में नमाज पढ़ने को लेकर इन दिनों विवाद की स्थिति है। फिलहाल यह विवाद शुरुआती दौर में है, इसलिए ऐसे विवादों पर नियंत्रण पाया जा सकता है, लेकिन यदि विवाद आगे बढ़ते हैं तो न केवल कानून व्यवस्था बिगड़ेगी, बल्कि दोनों शहरों के कारोबार पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। दुनिया का सातवां आश्चर्य माना जाने वाले ताजमहल में नमाज पढ़ने को लेकर कोर्ट ने रोक लगा रखी है। पुरातत्व विभाग का कहना है कि यह इमारत भारत की धरोहर है, इसलिए इसको संरक्षित करना जरूरी है। इमारत के संरक्षण के लिए कई सख्त कदम उठाए गए है। ताजमहल को देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक बड़ी संख्या में आते हैं। यही वजह है कि आगरा में होटल कारोबार बहुत फलफूल रहा है। कुछ लोग चाहते हैं कि ताज महल में नमाज पढ़ी जाए। इसके लिए प्रयास भी शुरू हो गए हैं। टीवी चैनलों पर नमाज पढ़ते लोगों का वीडियो भी वायरल हो रहा है। यदि ताज महल में जबरन नमाज पढ़ने का क्रम जारी रहा तो विवाद की स्थिति रहेगी। यदि विवाद बढ़ता है तो आगरा के पर्यटन उद्योग पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। इसी प्रकार अजमेर में ख्वाजा साहब की दरगाह में देश-विदेश से जायरीन जियारत के लिए आते हैं।  दरगाह आने वालो की अकीदत सिर्फ ख्वाजा साहब के प्रति होती है। यही वजह है कि सूफी परंपरा के अनुरूप पवित्र मजार पर चादर और फूल भी पेश किए जाते हैं। ख्वाजा साहब की दरगाह में ऐसी अनेक परंपराएं हैं जो मुस्लिम संस्कृति में अनोखी मानी जाती है। जैसे बसंत उत्सव मनाना तथा देग में तैयार होने वाला तबर्रुख शुद्ध शाकाहारी चावल और मेवों से तैयार होने वाले इस तबर्रुख को जायरीन बड़ी अकीदत के साथ ग्रहण करते हैं। ऐसे ही रिवाजों की वजह से दरगाह में बड़ी संख्या में हिन्दू भी जियारत के लिए आते हैं। लेकिन पिछले कुछ दिनों से बरेलवी विचारधारा के लोग दरगाह के अंदर अपने तरीके से सलाम पेश करना चाहते हैं। इसको लेकर खादिम समुदाय और बरेलवी के लोग आमने-सामने हैं। इन हालातों में पुलिस का अतिरिक्त जाप्ता तैनात करना पड़ रहा है तथा दरगाह कमेटी की ओर से माइक पर घोषणा भी की जा रही है कि जायरीन कदीमी सलाम ही पेश करें। अन्य कोई सलाम पेश न किया जाए। सलाम तो पैगम्बर मुहम्मद साहब की शासन में ही पेश किया जाता है। तारीका अलग-अलग हो सकता है। इस पर विवाद नहीं होना चाहिए। यदि दरगाह में कोई विवाद होता है तो इसका असर जायरीन की संख्या पर पड़ेगा। दरगाह के आसपास खादिमों के गेस्ट हाउस तो बड़ी संख्या में हैं ही साथ ही हजारों होटल शहर भर में हैं। अजमेर का होटल कारोबार जायरीन पर ही निर्भर है। अजमेर और आगरा में हजारों परिवार होंगे, जिनकी आजीविका दरगाह और ताजमहल पर निर्भर है।
एस.पी.मित्तल) (15-11-18)
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