आखिर चित्तौड़ के कब्रिस्तान में दफन नहीं हो सके अहमद हुसैन।

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आखिर चित्तौड़ के कब्रिस्तान में दफन नहीं हो सके अहमद हुसैन।
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इसे सामाजिक विसंगतियां ही कहा जाएगा कि 46 वर्षीय अहमद हुसैन का शव राजस्थान के चित्तौड़ शहर के सार्वजनिक कब्रिस्तान में दफन नहीं हो सका। हुसैन की बेवा रूकैया बानो ने समाज के प्रतिनिधियों के समक्ष गिड़गिड़ाते हुए शव के दफन का आग्रह किया। इसके लिए रूकैया बानो ने पुलिस तक की मदद मांगी और अपने पति का शव दिनभर अपने सीने से चिपकाए रखा, लेकिन किसी का भी रूकैया बानो के लिए दिल नहीं पसीजा। इतना ही नहीं पुलिस ने 14 जनवरी की रात के अंधेरे में अहमद हुसैन के शव को बाहर निकाला और तेज गति से उसके गांव बिगोद ले गई। अहमद हुसैन लंबे अरसे से चित्तौड़ में ही रह रहे थे और उनका निधन 14 जनवरी की सुबह हो गया था। चूंकि अहमद हुसैन का घर चित्तौड़ में ही है, इसलिए शव का दफन चित्तौड़ के कब्रिस्तान में ही करना चाहते थे। लेकिन कब्रिस्तान की प्रबंधन समिति से जुड़े लोगों ने अहमद हुसैन के शव को दफन नहीं होने दिया। यहां तक कि शव के दफन के लिए जो कब्र खोदी गई थी, उसे भी वापस भर दिया गया। मुस्लिम धर्म में नमाज का सबसे बड़ा महत्व है और यह माना गया है कि बादशाह और फकीर एकसाथ नमाज पढ़ सकता है। लेकिन इसे सामाजिक विसंगति ही कहा जाएगा कि मौत के बाद कब्रिस्तान में जगह नहीं मिलती है।
एस.पी.मित्तल) (15-01-17)
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