हार के लिए तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे खुद जिम्मेदार हैं।

हार के लिए तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे खुद जिम्मेदार हैं।
अजमेर में भाजपा कार्यकर्ताओं से मुख्यमंत्री ने ही जाने हार के कारण।
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अजमेर के लोकसभा के उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार रामस्वरूप लाम्बा की हार के कारणों को जानने के लिए मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने 12 मई को अजमेर में एक होटल में भाजपा कार्यकर्ताओं की बैठक ली। इस बैठक में जिले के सभी भाजपा विधायक, स्थानीय निकायों के अध्यक्ष और प्रमुख पदाधिकारी उपस्थित थे। भाजपा विधायकों की मौजूदगी में कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने नजरिए से हार के कारण गिनाए। समझ में नहीं आता कि जो मुख्यमंत्री स्वयं हार के लिए जिम्मेदार है वे दूसरों से हार के कारण क्यों जान रही हैं। सब जानते हैं कि उपचुनाव अजमेर में ही नहीं बल्कि अलवर और भीलवाड़ा में भी हारा गया। दो लोकसभा और एक विधासभा में भाजपा की बुरी हार हुई। अजमेर में मुख्यमंत्री राजे ने स्वयं देखा कि भाजपा के खिलाफ राजपूत और रावणा राजपूत समाज की महिलाओं ने मोर्चा संभाल लिया था। इन समाजों की खुली नाराजगी मुख्यमंत्री के प्रति ही थी। हालात इतने खराब थे कि कुंदन नगर में राजपूत समाज के एक समारोह में मुख्यमंत्री के आने की खबर से ही हंगामा हो गया। रावणा राजपूत समाज की महिलाओं ने मतदान वाले दिन अपने घर का चूल्हा नहीं जलाया और पहले वोट डाला। इतना गुस्सा भाजपा उम्मीदवार के प्रति नहीं बल्कि मुख्यमंत्री के खिलाफ था। क्या हार के इस सबसे बड़े कारण को मुख्यमंत्री जानती नहीं हैं? वसुंधरा राजे को यह भी पता होगा कि अजमेर संसदीय क्षेत्र में करीब दो लाख राजपूत और रावणा राजपूत मतदाता है। भाजपा उम्मीदवार लाम्बा 85 हजार मतों से हारे हैं।
ब्राह्मण समाज की भी नाराजगीः
प्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने ब्राह्मण समाज के लिए जो आपत्तिजनक टिप्पणी की थी उससे ब्राह्मण समाज ने भी चुनाव में गुस्सा निकाला। ब्राह्मण समाज के प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री तक से आग्रह किया कि देवनानी से माफी मंगवाई जाए। लेकिन देवनानी ने माफी नहीं मांगी। हालांकि मतदान से कुछ दिन पहले देवनानी ने एक चैनल पर सशर्त माफी मांगी, लेकिन इस माफी नामे को प्रचारित नहीं करवाया गया। जले पर नमक तो तब छिड़का जब देवनानी से सलेमाबाद स्थित निम्बार्क पीठ के आचार्य श्यामशरण महाराज से ब्राह्मणों का हितैषी होने का अशीर्वाद ले लिया। जब दो बड़े समुदाय मुख्यमंत्री और मंत्री से आहत हो तब उपचुनाव में हार के कारण कार्यकर्ताओं से पूछे जा रहे हैं।
विधायकों की भूमिकाः
चुनाव के दौरान जनसंवाद भी मुख्यमंत्री ने भाजपा विधायकों की मौजूदगी में किया तो अब हार के कारण भी उन्हीं विधायकों की उपस्थिति में जान रही हैं। मुख्यमंत्री माने या नहीं, हार का एक कारण भाजपा के विधायकों का घमंड भी है। संसदीय क्षेत्र के आठ भाजपा विधायकों में से पांच मंत्री स्तर की सुविधा भोग रहे हैं। इन मंत्रियों और विधायकों के रवैए से आम लोग बुरी तरह त्रस्त है। किसी पर बजरी खनन का आरोप है तो किसी पर जनता से संवादहीनता। भाजपा उम्मीदवार की हार इन विधायकों की वजह से भी हुई है।
स्थानीय निकायों में फैला भ्रष्टाचारः
आम व्यक्ति का कार्य ज्यादातर स्थानीय निकायों में पड़ता है। इनमें इतना भ्रष्टाचार व्याप्त है कि कोई कार्य बिना रिश्वत के नहीं होता। अजमेर में सभी स्थानीय निकायों में भाजपा का कब्जा है। जब नक्शा स्वीकृति के लिए भी रिश्वत देनी पड़े तो फिर रिश्वत देने वाला आम आदमी भाजपा को वोट कैसे देगा। जो लोग रिश्वत देने में आनाकानी करते हैं वे आज तक इन संस्थाओं के धक्के खा रहे हैं। अच्छा हो कि मुख्यमंत्री भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ हार पर आत्म विश्लेषण करें। मुख्यमंत्री माने या नहीं, लेकिन भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के विवाद से एक बड़े समाज में उनके प्रति नाराजगी और बढ़ी है।
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