सामान्य वर्ग को जाट समुदाय जैसी एकत दिखानी होगी।

सामान्य वर्ग को जाट समुदाय जैसी एकत दिखानी होगी।
नहीं तो पिसते चले जाएंगे। क्या कांग्रेस में है एससी एसटी वर्ग के अधिकारों में कटौती की हिम्मत?

संसद में जब से एससी एसटी संशोधित बिल पास हुआ है, तब से सामान्य वर्ग के लोगों के मन में नाराजगी है। यह नाराजगी नरेन्द्र मोदी सरकार को लेकर भी है, लेकिन सबने देखा कि संसद में कांग्रेस, भाजपा और अन्य दलों के सांसदों ने भी सामान्य वर्ग के लोगों के हितों के लिए एक शब्द भी नहीं कहा। जबकि यह बिल सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को पलटने वाला था, जिसमें एफआईआर दर्ज करने से पहले सिर्फ जांच की बात कही थी। सामान्य वर्ग के लोगों खासकर राजपूत, महाजन, ब्राह्मण आदि को लगता है कि उनके साथ अन्याय हुआ है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या कभी इन जातियों के लोगों ने जाट समुदाय जैसी एकता दिखाई है? चाहे राजनीति का क्षेत्र या फिर प्रशासनिक अथवा सामाजिक। सभी में जाट समुदाय के लोग एक दूसरे को आगे बढ़ाने में लगे रहते हैं। लोकसभा अथवा विधानसभा के चुनाव में बिना राजनीतिक भेदभाव के वोटिंग की जाती है। कई बार दोनों प्रमुख राजनीतिक दल जाट समुदाय के उम्मीदवार ही मैदान में उतार देते हैं। तब उस क्षेत्र का जाट मतदाता सुस्त हो जाता है, क्योंकि उसे पता होता है कि जीतेगा तो अपना ही आदमी। जाट समुदाय अपनी एकता के दम पर ही ओबीसी वर्ग में शामिल हुआ है। अब किसी की हिम्मत नहीं कि ओबीसी वर्ग के आरक्षण के साथ छेड़छाड़ कर सके। एक ताजा उदाहरण 12 अगस्त की रात को निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल और विधानसभा में प्रति पक्ष के नेता रामेश्वर डंूडी की मुलाकात है। 11 अगस्त को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के आगमन पर डूंडी को सम्मान नहीं मिलने को लेकर 12 अगस्त को बेनीवाल ने सचिन पायलट की निंदा वाला एक प्रेस नोट जारी किया। यह प्रेस नोट 13 अगस्त को अखबारों में छपता, इससे पहले ही रात को ही डूंडी ने बेनीवाल को अपने जयपुर स्थित सरकारी बंगले पर बुला लिया। असल में बेनीवाल भी डूंडी को कांग्रेस में कोई नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते थे, इसलिए रात को ही घर पहुंच गए। क्या ऐसी हिम्मत और एकता सामान्य वर्ग का कोई राजनेता दिखा सकता है? यदि लालचंद कटारिया की जह सामान्य वर्ग के किसी नेता ने अशोक गहलोत के समर्थन में बयान दिया होता तो सचिन पायलट अब तक उस नेता का कचूमर निकाल देते। सामान्य वर्ग के नेता अधिकारी और अन्य प्रभावशाली लोग तो आपस में ही एक दूसरे की टांग खींचने में लगे रहते हैं। जब सामान्य वर्ग के किसी व्यक्ति को नुकसान होता है तो सबसे ज्यादा खुश आसपास रहने वाले सामान्य वर्ग के लोग ही होते हैं। यही वजह है कि किसी स्तर पर खासकर राजनीति में सामान्य वर्ग के लोगों की कोई सुनवाई नहीं होती। अपने लोगों को हराने की सीख सामान्य वर्ग से ली जा सकती है, जबकि सहयोग और मदद करने की सीख जाट समुदाय से। जब लोकतंत्र में सत्ता हथियाने के लिए नम्बरों का खेल है तो फिर सामान्य वर्ग के लोग अपने नम्बर एक साथ क्यों नहीं दिखाते। राजनीति तो जाट समुदाय भी करता है, लेकिन कभी समुदाय की एकता खतरे में नहीं पड़ती है। लोकतंत्र में यह गुण सभी को सीखना चाहिए। एससी एसटी वर्ग के लोग अपने अधिकारों के लिए एकजुट है। तो इसमें बुराई क्या है? जो लोग एकजुट नहीं है और उनके अधिकार कम हो रहे हैं तो यह उनकी गलती है। सामान्य वर्ग के लोग जब तक बिखरे रहेंगे, तब तक पिसते रहेंगे। राजनीतिक दलों के शीर्ष पदों पर बैठे नेता भी उन्हीें की सुनते हैं जो एकजुट होते हैं। जाट समुदाय के नेता, अधिकारी तथा प्रभावी लोग वाकई बधाई के पात्र हैं, जो अपने हर साथी का ध्यान रखते हैं। ऐसा नहीं कि जाट समुदाय में सभी सम्पन्न है, लेकिन जो सम्पन्न हो गए हैं वे अपने गरीब साथी की मदद को प्राथमिकता देते हैं।

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