वसुंधरा राजे सीएम होतीं और जयपुर में सात वर्षीय मासूम के साथ रेप के घटना के बाद दिल्ली में रहतीं तो अशोक गहलोत की क्या प्रतिक्रिया होती?

वसुंधरा राजे सीएम होतीं और जयपुर में सात वर्षीय मासूम के साथ रेप के घटना के बाद दिल्ली में रहतीं तो अशोक गहलोत की क्या प्रतिक्रिया होती? इधर जयपुर में उबाल, मुख्यमंत्री का दिल्ली में डेरा। गहलोत अब गुजरात में उलझे।

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1 जुलाई की रात को 7 वर्षीय मासूम के साथ रेप की शर्मनाक घटना के बाद जयपुर में उबाल आया हुआ है। जयपुर की इंटरनेट सेवाएं 4 जुलाई तक के लिए बंद कर दी गई हैं। आधे से ज्यादा शहर में कफ्र्यू जैसे हालात हैं। शास्त्री नगर इलाके की भट्टा बस्ती की फैजान मस्जिद में एकत्रित लोग विरोध की रणनीति बना रहे हैं। लोगों का गुस्सा जायज है,क्योंकि सात वर्षीय मासूम के साथ दरिंदगी हुई है। अब तक 150 से भी ज्यादा वाहन क्षतिग्रस्त किए जा चुके हैं। लाख कोशिश के बाद गुलाबी नगर में अमन-चैन नहीं हो रहा है। जो तनाव एक जुलाई की रात से शुरू हुआ वो तीन जुलाई को भी दिनभर बना रहा। हालांकि पुलिस अपनी स्तर पर मशक्कत कर रही है, लेकिन सवाल उठता है कि सूबे के मुखिया यानि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कहां हैं? सब जानते हैं कि गहलोत 30 जून से ही दिल्ली में डेरा जमाए हुए हैं। राहुल गांधी को मानने और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर गहलोत दिल्ली में व्यस्त हैं। गहलोत जयपुर में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालें या दिल्ली में गांधी परिवार, यह उनका व्यक्तिगत मामला है, लेकिन यदि ऐसे संवेदनशील अवसर पर वसुंधरा राजे सीएम होती और वो जयपुर के बजाए दिल्ली में होती तो गहलोत की क्या प्रतिक्रिया होती? क्या वसुंधरा को महारानी की उपाधि से नवाज कर बेटी विरोधी नहीं बताया जाता? भाजपा के पिछले शासन में ऐसे मौकों पर गहलोत ने वसुंधरा राजे की तीखी आलोचना की है। वसुंधरा राजे ने तो गुलाबचंद कटारिया को कम से कम गृहमंत्री तो बना रखा था, लेकिन गहलोत ने तो गृह विभाग भी अपने पास ही रखा हुआ है। ऐसे में रेप के प्रकरण में मुख्यमंत्री की गैर मौजूदगी तो खलेगी ही। लोकतंत्र में तो यही माना जाता है कि जनता को जरूरत पडऩे पर जनसेवक उपस्थित रहे। यूं गहलोत को एक संवेदनशील इंसान माना जाता है। शायद वर्तमान हालातों में जयपुर के बजाए दिल्ली में  रहने पर उनका मन भी उन्हें कचोट रहा होगा, लेकिन इसे राजनीतिक मजबूरी ही कहा जाएगा कि जब से प्रदेश की राजधानी में उबाल है तो गहलोत जैसा मुख्यमंत्री दिल्ली में है। ऐसा नहीं कि दिल्ली में वे प्रदेश के हितों के लिए केन्द्रीय मंत्रियों से मिल रहे हों। गहलोत का सारा समय सोनिया गांधी और राहुल गांधी के घरों के चक्कर काटने में लग रहा है। पहले कहा जा रहा था कि गहलोत तीन जुलाई की सुबह जयपुर लौट आएंगे, लेकिन एयरपोर्ट रवाना होने से पहले सोनिया गांधी ने अपने निवास पर तलब कर लिया। सोनिया से मुलाकात के बाद गहलोत का जयपुर आना फिलहाल टल गया है।
गहलोत अब गुजरात में उलझे:
5 जुलाई को गुजरात में होने वाले राज्यसभा की दो सीटों के चुनाव की राजनीति में अब राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत उलझ गए हैं। तीन जुलाई को जब गहलोत दिल्ली से जयपुर के लिए रवाना होने वाले थे कि तभी सोनिया गांधी ने तलब कर लिया। सूत्रों के अनुसार दोनों के बीच गुजरात के राज्यसभा चुनाव को लेकर विचार विमर्श हुआ। इसी के बाद गहलोत का फिलहाल जयपुर आना टल गया। मीडिया की खबरों के अनुसार राज्यसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस के 70 विधायकों में बगावत हो सकती है, इसलिए अब कांग्रेस के विधायकों को राजस्थान के माउंट आबू के रिसोर्ट में लाया जा रहा है। तीन जुलाई की रात तक सभी विधायक रिसोर्ट पहुंच जाएंगे। तय कार्यक्रम के अनुसार पांच जुलाई को जब मतदान की प्रक्रिया होगी, तब इन विधायकों को माउंट आबू से गांधीनगर के लिए रवाना किया जाएगा। कांग्रेस के बागी विधायक कल्पेश ठाकुर पहले ही कह चुके हैं कि 18 कांग्रेस विधायक पाला बदल सकते हैं। कल्पेश का मानना है कि कांग्रेस के सभी विधायक माउंट आबू नहीं जाएंगे। उन्होंने सवाल उठाया कि हर बार कांग्रेस को ही अपने विधायकों को सुरक्षित रखने की जरूरत क्यों होती है?असल में गुजरात में चुनाव आयोग ने दोनों सीटों के लिए अलग अलग मतदान करवाने का निर्णय लिया है। गुजरात में भाजपा के 99 विधायक हैं ऐसे में अलग अलग चुनाव होने पर दोनों सीटों पर भाजपा के उम्मीदवारों की जीत हो जाएगी। कांगे्रस नहीं चाहती कि राज्यसभा चुनाव के मौके पर गुजरात के विधायकों में बिखराव हो जाए। चुनाव की रणनीति कांग्रेस की ओर से गहलोत और अहमद पटेल बना रहे हैं।
एस.पी.मित्तल) (03-07-19)
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