सफलता के साथ अजमेर देहात भाजपा अध्यक्ष पद से विदाई चाहते हैं बीपी सारस्वत।

सफलता के साथ अजमेर देहात भाजपा अध्यक्ष पद से विदाई चाहते हैं बीपी सारस्वत।
6 वर्ष के कार्यकाल में अधिकांश चुनावों में भाजपा की जीत।
ब्यावर में भूतड़ा ने भी दिखाई दक्षता। 

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देश और प्रदेश के भाजपा संगठन में इन दिनों चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। अजमेर जिले में भी 10 दिसम्बर तक मंडल स्तर तक चुनाव हो जाएंगे। इसके बाद जिलाध्यक्ष का चुनाव होगा। अजमेर देहात भाजपा के अध्यक्ष पद पर गत 6 वर्ष से प्रो. बीपी सारस्वत विराजमान हैं। 6 वर्ष पहले सारस्वत को तब भाजपा का जिलाध्यक्ष बनाया जब तत्कालीन अध्यक्ष नवीन शर्मा ने बगावत कर मसूदा से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा। 6 वर्ष के सारस्वत के कार्यकाल में दो बार विधानसभा तथा तीन बार लोकसभा के चुनाव हुए। विधानसभा के 2013 के चुनाव में तो अजमेर जिले की आठों सीटों पर जीत मिली, जबकि 2019 के चुनाव में चार सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हुई। इनमें से दो अजमेर शहर की सीट भी शामिल हैं। लोकसभा के उपचुनाव को छोड़कर दोनों आम चुनावों में अजमेर से भाजपा के उम्मीदवार विजयी रहे। हाल में सम्पन्न तीन निकाय चुनाव में भी भाजपा को जीत हासिल हुई है। यानि सारस्वत की सफलता का ग्राफ इस समय ऊंचाइयों पर है। आमतौर पर सफलताओं को भुना कर ही राजनेता अपने पदों पर कायम रहते हैं, लेकिन सारस्वत अब देहात जिलाध्यक्षद पद से विदाई चाहते हैं। अपनी भावनाओं से सारस्वत ने प्रदेश के नेताओं को भी अवगत करा दिया है। प्रदेश नेतृत्व को भी पता है कि जब निकाय चुनाव में अधिकांश स्थानों पर कांग्रेस सफल रही है तब अजमेर में तीनों ही निकायों में भाजपा को सफलता मिली। ब्यावर और पुष्कर में तो भाजपा का बोर्ड बना जबकि नसीराबाद में लॉटरी से कांग्रेस को सफलता मिल गई। वैसे भी 6 वर्ष का कार्यकाल बहुत लम्बा होता है। सारस्वत अपने कार्यकाल में विवादों से भी दूर रहे। यही वजह रही कि सारस्वत विधायकों के भी चहेते बने रहे। सारस्वत चाहते थे कि गत लोकसभा चुनाव में उन्हें उम्मीदवार बनाया जाए, लेकिन जातीय समीकरणों में फिट नहीं बैठने की वजह से सारस्वत का दावा धरा रह गया। भाजपा के पिछले शासन में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का संरक्षण होने की वजह से भी सारस्वत की एक छत्र चली। लेकिन सारस्वत सरकार में किसी लाभ के पद पर नहीं रहे। हालांकि सारस्वत अजमेर स्थित एमडीएस यूनिवर्सिटी में वाणिज्य संकाय के विभागाध्यक्ष रहे, लेकिन राजनीतिक स्तर पर उन्हें कोई सरकारी पद नहीं मिला। यूनिवर्सिटी में रहते  हुए सारस्वत ने बीएड और पीटीईटी जैसी राज्य स्तरीय परीक्षाएं भी सफलता पूर्वक करवाई। सारस्वत अब यूनिवर्सिटी से भी सात माह बाद रिटायर हो रहे हैं। देखना है कि अब सारस्वत का राजनीति में किस प्रकार उपयोग होता है। उम्मीद की जा रही है कि उन्हें भाजपा की कार्यकारिणी में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलेगी। राजनीतिक सफलता के लिए मोबाइल नम्बर 9414007655 पर सारस्वत को बधाई दी जा सकती है।
भूतड़ा ने भी दिखाई दक्षता:
निकाय चुनाव में ब्यावर के पूर्व विधायक देवीशंकर भूतड़ा ने भी राजनीतिक दक्षता दिखाई है। आमतौर पर माना जाता है कि ब्यावर के विधायक शंकर सिंह रावत ने भूतड़ा की पटरी नहीं बैठती है। कई बार दोनों नेता आमने सामने भी हुए हैं। विधायक रावत का राजनीति करने का अपना तरीका है। रावत समुदाय में जबर्दस्त पकड़ होने की वजह शंकर सिंह ब्यावर से लगातार तीसरी बार विधायक चुने गए हैं। ब्यावर नगर परिषद के वार्ड चुनाव में भूतड़ा भले ही अपने समर्थकों को उम्मीदवार बनवाने में सफल रहे, लेकिन परिणाम के बाद भूतड़ा ने सभापति के लिए विधायक रावत के उम्मीदवार नरेश कनौजिया को ही समर्थन दिया। चूंकि सभापति के चुनाव में भूतड़ा और रावत एकजुट थे, इसलिए मतदान से पहले 15 निर्दलीयों में से 10 ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। यही वजह रही कि सभापति चुनाव में भाजपा को 60 में से 39 पार्षदों के वोट मिल गए। इसमें कोई दो राय नहीं कि भूतड़ा ने निकाय चुनाव में अपनी राजनीतिक दक्षता दिखा कर संगठन को मजबूत किया है। सारस्वत की जगह भूतड़ा भी देहात भाजपा के जिलाध्यक्ष हो सकते हैं।
एस.पी.मित्तल) (29-11-19)
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