न दरगाह में खिदमतगार और न पुष्कर के घाटों पर तीर्थ पुरोहित।

न दरगाह में खिदमतगार और न पुष्कर के घाटों पर तीर्थ पुरोहित।
ऐसा है कोरोना वायरस का प्रकोप।
श्रद्धालु और जायरीन के नहीं आने से सब सूना।

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कोरोना वायरस के प्रकोप की वजह से धार्मिक नगरी अजमेर का मिजाज ही बदल गया है। अब न तो ख्वाजा साहब की दरगाह में खिदमतगार नजर आ रहे हैं और न ही पुष्कर के घाटों पर तीर्थ पुरोहित। इतिहास में यह पहला अवसर होगा, जब इन दो बड़े धार्मिक स्थलों की स्थिति ऐसी हुई है। धर्म न देखने वाले कोरोना वायरस ने सबको एक समान कर दिया है। जायरीन के बगैर जो हाल दरगाह के खादिमों का वही हाल पुष्कर के तीर्थ पुरोहितों का। जो खादिम दरगाह में ख्वाजा साहब और जायरीन को खिदमत करते थे, वो अब दरगाह परिसर के अंदर भी नहीं जा पा रहे हैं। इसी प्रकार पुष्कर में भी तीर्थ पुरोहित अपने घरों में ही कैद होने को मजबूर हैं। जिला प्रशासन ने जहां दरगाह में जायरीन का प्रवेश बंद करवाया है, वहीं पुष्कर के विश्व विख्यात ब्रह्मा मंदिर में भी श्रद्धालुओं का प्रवेश फिलहाल 31 मार्च तक बंद कर दिया गया है। जो लोग कभी दरगाह में जियारत के लिए आए हैं उन्हें पता है कि दरगाह के अंदर का हाल कैसा होता है। दरगाह में पैर रखने की जगह भी नहीं मिलती है, लेकिन अब वही दरगाह एकदम सूनी पड़ी है। न जायरीन और न खादिम। खादिमों की संस्था अंजुमन के सचिव वाहिद हुसैन अंगाराशाह ने बताया कि प्रशासन ने आपसी सहमति से कुछ खादिमों को मजार शरीफ पर खिदमत की अनुमति दी है। मजार शरीफ पर पहले की तरह खिदमत का काम हो रहा है। इसी प्रकार पुष्कर के ब्रह्मा मंदिर के पुजारी परिवार के रामनिवास वशिष्ठ और कमलेश वशिष्ठ ने बताया कि मंदिर में लगी ब्रह्माजी की प्रतिमा परिसर पर प्रतिदिन पूजा अर्चना हो रही है। पुजारी परिवार अपनी धार्मिक गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। बस इतना जरूर है कि ब्रह्माजी की प्रतिमा का जो शृंगार होता है, उसे आम श्रद्धालु नहीं देख पा रहा है। दरगाह के खादिम और पुष्कर के तीर्थ पुरोहित भी मानते हैं कि सबसे पहले मानवता को बचाने की जरुरत है। जायरीन और श्रद्धालुओं के नहीं आने से भले ही अनेक परिवारों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो रहा हो, लेकिन उम्मीद है कि परिवारों पर ख्वाजा साहब का करम और ब्रह्माजी की कृपा बनी रहेगी।
(एस.पी.मित्तल) (22-03-2020)
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