अजमेर में भाजपा के लिए आसान नहीं होगा जाट और रावत समुदाय के हकों को कम करना। 2013 में 8 में से 4 उम्मीदवार दो जातियों के थे।
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राजनीतिक दल और उनके नेता सार्वजनिक मंचों से कितना भी दावा करें कि हम जातिवाद की राजनीति नहीं करते हैं, लेकिन सब जानते हैं कि जातियों के वोट को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवारों का चयन होता है। चूंकि राजस्थान में नवम्बर में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए अजमेर जिले में भी राजनीतिक माहौल गर्म है। वर्ष 2013 में भाजपा ने अजमेर जिले में चार उम्मीदवार जाट और रावत जाति के उतारे, चारों ही विजयी रहे। हालांकि सांवरलाल जाट के सांसद बन जाने के बाद नसीराबाद से भाजपा की जाट उम्मीदवार श्रीमती सरिता गैना उपचुनाव हार गई, लेकिन अब जाट समुदाय चाहेगा कि नसीराबाद में किसी जाट ही उम्मीदवार बनाया जाए। लोकसभा का उपचुनाव हारने के बाद भी सांवरलाल जाट के पुत्र रामस्वरूप लाम्बा ने नसीराबाद पर अपना दावा ठोक रखा है। परिणाम चाहें कुछ भी हो लेकिन जाट समुदाय चाहेगा कि नसीराबाद से जाट को उम्मीदवार बनाया जाए। हालांकि नसीराबाद विधानसभा को गुर्जर बहुल्य माना जाता है, इसलिए 25 वर्षों तक कांग्रेस के गोविंद सिंह गुर्जर विधायक रहे तो 2008 में उन्हीं के भतीजे महेन्द्र सिंह गुर्जर विधायक बने और वर्तमान में रामनारायण गुर्जर कांग्रेस के विधायक हैं। वर्ष 2013 में नसीराबाद से सांवरलाल जाट भाजपा उम्मीदवार के तौर पर 28 हजार मतों से जीत हासिल की थी, लेकिन अगले लोकसभा के चुनाव में भाजपा को मात्र 11 हजार मतों की बढ़त मिली तथा विधानसभा और लोकसभा के उपचुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में देखना होगा कि क्या भाजपा नेतृत्व नसीराबाद से किसी और जाट को उम्मीदवार बनाने की हिम्मत दिखाएगा। जहां तक जाट बहुल्य किशनगढ़ का सवाल है तो यहां भी भाजपा के लिए मुसीबत है। किशनगढ़ भाजपा में ही शहरी उम्मीदवार की मांग जोर पकड़ने लगी है। लोकसभा के उपचुनाव में किशनगढ़ में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। यह हार तब हुई, जब 2013 में भाजपा उम्मीदवार भागीरथ सिंह च ौधरी 31 हजार मतों से जीते थे। लोकसभा चुनाव में भाजपा की बढ़त 23 हजार मतों की थी। किशनगढ़ को जाट बहुल्य माना जाता है, इसलिए कांग्रेस भी जाट को उम्मीदवार बनाती है। चूंकि जाट समुदाय के वोट अजमेर जिले की 5 सीटों को प्रभावित करते हैं, इसलिए जाट समुदाय का दबाव है कि 2013 की तरह दो सीटें जाट समुदाय को मिले।
ब्यावर और पुष्कर पर रावतों का दावाः
अजमेर जिले की पुष्कर और ब्यावर सीट रावत समुदाय के ही भाजपा विधायक हैं। हालांकि पूर्व में गैर रावत भी यहां से भाजपा के विधायक बनते रहे हैं, लेकिन अब जब जातिगत समीकरणों को महत्व दिया जा रहा है तो सवाल उठता है कि क्या रावतों के हक को कम किया जा सकता है? ब्यावर में तो शंकर सिंह रावत लगातार दूसरी बार भाजपा के विधायक बने हैं, जबकि पुष्कर में 2013 में सुरेश सिंह रावत यह सीट कांग्रेस से छीनी थी। भले ही 2013 में मोदी लहर मानी गई, लेकिन सुरेश रावत की जीत के पीछे रावत समुदाय का एकजुट होना भी है। पुष्कर में रावतों में कितनी एकजुटता है इसका अंदाजा 2003 में निर्दलीय उम्मीदवार श्रवण सिंह रावत को करीब 23 हजार वोट मिले थे। रावत की वजह से ही भाजपा उम्मीदवार की हार हुई। जिस प्रकार जाट समुदाय के वोट जिले की 5 सीटों को प्रभावित करते हैं, उसी प्रकार रावत समुदाय के वोट भी चार सीटों को प्रभावित करते हैं। रावत समुदाय का दबाव है कि उन्हें दो टिकिट तो मिले हीं। यह बात अलग है कि लोकसभा के उपचुनाव में पुष्कर से भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था तथा 2013 में सुरेश रावत के जो 41 हजार की जीत थी, वो अगले वर्ष लोकसभा के चुनाव मात्र 13 हजार मतों तक ही सिमट गई। लोकसभा के उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार की 9 हजार मतों की हार बताती है कि चुनाव में जाति कितना मायने रखती है। हालांकि इन दिनों पुष्कर में उम्मीदवार को लेकर रावत समुदाय में भी खींचतान देखने को मिली है। वहीं ब्यावर में भी शहरी और ग्रामीण मतदाताओं के प्रतिनिधि अजमेर में जाट और रावत समुदाय को किस प्रकार संतुष्ट करती है।