निकाय प्रमुख चुनाव पर सचिन पायलट का विरोध सोनिया गांधी तक पहुंचा।

निकाय प्रमुख चुनाव पर सचिन पायलट का विरोध सोनिया गांधी तक पहुंचा।
सीएम अशोक गहलोत का दिल्ली में डेरा।
दो मंत्रियों के विरोध का संज्ञान लिया है। सरकार और संगठन में समन्वय की कमी-विवेक बंसल।

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निकाय प्रमुखों के चुनाव की प्रक्रिया पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने जिस तरह सार्वजनिक तौर पर विरोध प्रकट किया, वह मामला अब कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी तक पहुंच गया है। इस बीच 20 सितम्बर को राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत दिन भर दिल्ली में रहे। गहलोत ने 19 अक्टूबर को चंडीगढ़ में हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। प्रदेश के ताजा राजनीतिक हालात में सीएम का दिल्ली दौरा महत्वपूर्ण माना जा रहा है। दौरे में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के साथ सीएम की मुलाकात हो रही है। हालांकि अभी श्रीमती सोनिया गांधी से मुलाकात करने के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है, लेकिन निकाय प्रमुखों के चुनाव को लेकर सचिन पायलट ने जो विरोध जताया उसे केन्द्रीय नेतृत्व भी गंभीरता से ले रहा है। सीएम गहलोत केन्द्रीय नेतृत्व को यह समझाने में सफल रहे हैं कि बगैर पार्षद चुने निकाय प्रमुख बनाने का फैसला संगठन और सरकार के हित में लिया गया है। इस बदलाव से कुछ शहरों में कांग्रेस के निकाय प्रमुख बन सकते हैं। नहीं तो अनुच्छेद 370 हटाने का सबसे ज्यादा असर शहरों में ही है। राज्य सरकार का प्रयास है कि किसी तरह भाजपा के राष्ट्रवाद के माहौल का मुकाबला किया जाए, इसलिए पूर्व में निकाय प्रमुखों के प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव करवाने के निर्णय को बदला गया। सूत्र बताते हैं कि सीएम की ओर से कहा गया है कि जब जब कांग्रेस सरकार को मजबूत करने के निर्णय लिए जाते हैं, तब तब सचिन पायलट प्रदेशाध्यक्ष की हैसियत से विरोध करते हैं। यही वजह है कि बसपा छोडऩे वाले सभी छह विधायकों को अभी तक भी कांग्रेस की सदस्यता नहीं मिली है। यहां तक की पायलट के विरोध के चलते ही मंत्रिमंडल का विस्तार भी टल गया। इतना ही नहीं राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के चुनाव में भी पायलट ने सीएम अशोक गहलोत को नुकसान पहुंचाने वाली टिप्पणी की, जबकि सीएम के पुत्र वैभव गहलोत अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ रहे थे। क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष पद पर पायलट समर्थक वरिष्ठ कांग्रेसी रामेश्वर डूडी ने भी दावेदारी जताई थी, तब पायलट का कहना था कि इससे कांग्रेस की छवि खराब हो रही है।
पायलट गहलोत सरकार में डिप्टी सीएम भी हैं, लेकिन फिर भी उन्होंने मुख्यमंत्री के पुत्र वैभव गहलोत का समर्थन नहीं किया। यह बात भी उल्लेखनीय है कि वैभव गहलोत प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महामंत्री भी हैं। असल में पायलट के ताजा बयान से राजस्थान में सरकार और संगठन की खींचतान खुलकर सामने आ गई है। पायलट का कहना है कि पार्षद चुने बगैर ही निकाय प्रमुख का चुनाव करवाने के निर्णय से पूर्व कांग्रेस के विधायकों को भरोसे में नहीं लिया गया और न ही इतने बड़े महत्वपूर्ण निर्णय पर मंत्रिमंडल में चर्चा हुई। पायलट के इस बयान से जाहिर है कि गहलोत सरकार जो निर्णय ले रही हैं, उसमें प्रदेश अध्यक्ष की हैसियत से पायलट की कोई भूमिका नहीं है, इससे पहले बसपा के सभी छह विधायकों को कांग्रेस में शामिल करवाने के मामले में भी पायलट से कोई विचार विमर्श नहीं हुआ।
मंत्रियों के विरोध का संज्ञान:
20 अक्टूबर को एक टीवी न्यूज चैनल से संवाद करते हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और प्रदेश के सहप्रभारी विवेक बंसल ने कहा कि पार्षद चुने बगैर निकाय प्रमुख का चुनाव करवाने का निर्णय गहलोत सरकार ने संविधान के अनुरूप लिया है। जिस निर्णय का प्रावधान संविधान के अनुरूप है उसका विरोध करना कोई मायने नहीं रखता है। सरकार के इस फैसले का जिन दो मंत्रियों ने विरोध किया है उसका संज्ञान कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने लिया है। मालूम हो कि परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास और खाद्य आपूर्ति मंत्री रमेश मीणा ने अपनी ही सरकार के फैसले का विरोध किया था। बंसल ने माना कि प्रदेश में कांग्रेस संगठन अैर सरकार के बीच समन्वय की कमी है। हमारा प्रयास होगा कि इस कमी को जल्द से जल्द खत्म किया जाए। उन्होंने कहा कि सरकार ने हाल ही में निकाय चुनावों को लेकर जो भी फैसले किए हैं, वे सब संगठन और सरकार के हित में हैं।
एस.पी.मित्तल) (20-10-19)
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