राजस्थान में चल रहे भीषण बिजली संकट को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 29 अप्रैल को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाली। अपने तर्कों के साथ सीएम गहलोत ने भास्कर अखबार में छपी खबर को भी पोस्ट किया। इस खबर में बताया गया कि मौजूदा बिजली संकट 16 राज्यों में चल रहा है और इन राज्यों में रोजाना 2 से 10 घंटे तक बिजली कटौती हो रही है। भास्कर की खबर को पोस्ट करने के साथ ही सीएम गहलोत ने बिजली संकट के लिए केंद्र सरकार को दोष ठहराया। सीएम के इस बयान के बाद ही राजस्थान भाजपा की तेज तर्रार प्रवक्ता और चार बार की विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने एक बयान जारी कर बिजली संकट के लिए कांग्रेस सरकार की दोषपूर्ण नीतियों को जिम्मेदार ठहराया। भदेल ने अपने बयान में अनेक सवाल खड़े किए जिन पर सरकार का जवाब देना चाहिए। विधायक भदेल के बयान को ब्लॉग में ज्यों का त्यों शामिल किया जा रहा है।
कांग्रेस को चंदा देने वाली जिंदल समूह को फायदा पहुंचाने राजस्थान की जिस भ्रष्ट कांग्रेस सरकार ने राजस्थान की जनता के हक के कोयला अवैध खनन के जरिए बेच दिया था आज वही कोयला संकट के लिए मोदी सरकार को दोष दे रही है:
भाजपा प्रदेश प्रवक्ता श्रीमती अनिता भदेल ने बिजली कटौती को लेकर कांग्रेस सरकार को घेरते हुए कहां कि वर्ष 2022-23 में महामहिम राज्यपाल के चौथे अभिभाषण के पैरा 160 में राजस्थान विधानसभा में सरकार ने राज्य की कुल विद्युत उत्पादन 23 हजार 309 मेगावाट के होने का दावा करते हुए विद्युत उपलब्धता की दृष्टि से राजस्थान को सरप्लस स्टेट घोषित किया था। इन 23 हजार 309 मेगावाट के कुल विद्युत उपलब्धता में सरकार के स्वयं के तापीय विद्युत घरों की 8 हजार 597.35 मेगावाट विद्युत उपलब्धता शामिल है जिनमें औसतन 3 रु 40 पैसे प्रति यूनिट विद्युत उत्पादित होती है। 23 हजार 309 मेगावाट की कुल उपलब्धता का दावा करने वाली कांग्रेस सरकार आज प्रदेश में पिछले तीन माह की अधिकतम विद्युत खपत 13 हजार 600 मेगावाट होने के बाद भी राज्य के शहरी क्षेत्र में एक घंटे से तीन घंटे तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 7 घंटे से 9 घंटे की घोषित/अघोषित बिजली कटौती कर राजस्थान को अंधकार में डूबा दिया है। उन्होने कहां कि 23 हजार 309 मेगावाट की कुल विद्युत उपलब्धता में अगर अधिकतम । Auxiliary Consumption / T&D Loss अधिकतम 20 प्रतिशत मान लें तो भी राज्य में विद्युत उपलब्धता राज्य सरकार द्वारा विधानसभा में घोषित 23 हजार 309 मेगावाट में से 18 हजार 647 मेगावाट की उपलब्धता रह जाती है। जबकि राज्य में पिछले तीन माह का अधिकतम विद्युत खपत 13 हजार 500 मेगावाट ही मात्र है। राज्य सरकार के स्वयं के 8 हजार 597.35 मेगावाट तापीय विद्युत घरों जिनमें एक यूनिट विद्युत उत्पादन पर मात्र 3 रुपए 40 पैसे का औसत खर्चा आता है। इन तापीय विद्युत घरों से 1970 से लेकर 4 हजार मेगावाट के 6 से 10 तापीय विद्युत संयंत्रों को पिछले 3 माह से तकनीकी व रखरखाव के नाम पर जानबुझकर निजी विद्युत उत्पादनकर्ताओं से महंगी बिजली खरीदने का षड़यंत्र राज्य सरकार एवं ऊर्जा विभाग में उच्च पदस्थ अधिकारी कर रहे हैं।
प्रदेश प्रवक्ता भदेल ने कहां कि पिछले वर्ष राजस्थान ऊर्जा विकास निगम के अधिकृत आंकड़ों के अनुसार 2019-20 में राज्य के बाहर की निजी विद्युत उत्पादन कंपनियों से 12,470 करोड़ तथा वर्ष 2020-21 में 13 हजार 793 करोड़ रुपये की महंगी बिजली 5 रु 70 पैसे से लेकर 17 रु तक खरीदकर राजस्थान की 1 करोड़ 52 लाख उपभोक्ताओं पर एक ओर अनावश्यक बोझ डाला वहीं दूसरी ओर महंगी बिजली खरीदने में जमकर चांदी कूटी गई। आज राजस्थान सोलर एनर्जी विंड एनर्जी की दृष्टि से देश में सर्वाधिक विद्युत उत्पादन कर रहा है। राजस्थान में वर्तमान में 11, 499 मेगावाट सोलर एनर्जी, 4,326 मेगावाट विंड एनर्जी तथा 748 मेगावाट रुफटॉप सोलर प्लांट क्रियाशील है। राज्य सरकार द्वारा 10 हजार मेगावाट के MOU सोलर एनर्जी विंड एनर्जी जनरेट करने के लिए किये हैं जिनमें से 7 हजार 700 मेगावाट का बिजली उत्पादन भी प्रारम्भ हो गया है। चूंकि थर्मल पावर प्रोजेक्ट व विंड पावर प्रोजेक्ट में कोयला खरीद निजी विद्युत उत्पादन कंपनी से महंगी विद्युत खरीद में संस्थागत भ्रष्टाचार होना संभव नहीं है इसलिए राज्य सरकार जानबूझकर सोलर एनर्जी विंड एनर्जी के उत्पादन को प्रोत्साहित नहीं कर रही है। यही नहीं राज्य सरकार द्वारा 640 मेगावाट के सौर ऊर्जा प्लांट जिनसे 2 रुपये 24 पैसे प्रति यूनिट सस्ती बिजली खरीदने के लिए पूर्व में अनुबंध किया था, के अनुबंधअवधि समाप्त होने के पश्चात् उन्हें रिन्यू नहीं करके अदालती प्रपंच में फंसाने का काम कर सस्ती बिजली की उपलब्धता को रोकने का कार्य किया है।
वर्तमान में राजस्थान में विद्युत संकट सरकार की अदूरदर्शिता का परिणाम है। केवल कोयले की कमी से राजस्थान में विद्युत संकट नहीं आया है क्योंकि राजस्थान ऐसा क्षेत्र है जिसमें सोलर एनर्जी की उपलब्धता प्रचुर मात्रा में है। राजस्थान में सोलर एनर्जी का जो उत्पादन चल रहा है उसका अन्य राज्यों में भी प्रयोग किया जा रहा है परन्तु डिस्कॉम ने घरों में रूफटॉप सोलर प्लांट लगाये जाने की नीति को हतोत्साहित किया है। आज की स्थिति में अगर कोई व्यक्ति घर में सोलर प्लांट लगाने का प्रस्ताव लेकर जाता है तो उसे हतोत्साहित किया जाता है। यही नहीं राजस्थान इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन RERC ने अपने आदेश दिनांक 14 सितंबर 2021 द्वारा 500 किलोवाट तक रुफटॉप में सोलर प्लांट लगाने की अनुमति दी है। परन्तु डिस्कॉम द्वारा अपनी हठधर्मिता के कारण त्म्त्ब् के आदेश की पालना नहीं की जा रही है। आज भी वे अगर किसी के 10 किलोवाट का लोड सेंक्शन है तो उसे 8 किलोवाट का ही सोलर प्लांट लगाने की अनुमति दी जा रही है। आज हम सरकार की गलत नीतियों के कारण राजस्थान की जनता सोलर के क्षेत्र में धनीं होते हुए भी देश की सबसे महंगी बिजली खरीदने को मजबूर हो रहे हैं। कोयले के संकट का कारण राज्य सरकार की स्वयं की गलत नीतियां है। एक ओर आज भी कोल इंडिया लिमिटेड सहित विभिन्न कोयला उत्पादन कंपनियों का कोयले का 11 हजार 600 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि बकाया है। जिसके कारण कोयला उत्पादन कंपनियों नेराज्य के तापीय विद्युत संयंत्रों को कोयला देना बंद कर दिया है। अगर राज्य सरकार ने शीघ्र ही कोयला उत्पादन कंपनियों से कोयला लेकर स्टॉक नहीं किया तो जुलाई के बाद चूंकि कोयला खानों में बरसात का पानी भर जाने के कारण कोयला उपलब्ध नहीं होने से राज्य सरकार के सभी थर्मल पावर प्रोजेक्ट बंद हो जायेंगे। यही नहीं विद्युत वितरण कंपनियों का विद्युत उत्पादन निगम में 30 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की सब्सिडी की राशि बकाया है जिसके कारण विद्युत वितरण कंपनियों की स्थिति आर्थिक आपातकाल जैसी हो रही है। राज्य सरकार की ओर से मैसर्स राजवेस्ट पावर के साथ किए गए विभिन्न अनुबंधों के बाद कपुडी व जालीपा की खानों से लिग्नाइट का उत्खनन कर 1080 मेगावाट विद्युत उत्पादन करने का अनुबंध किया गया था, जिसके लिए राज्य सरकार को इन खानों से उत्खनन संबंधी आज्ञा केन्द्र सरकार से प्राप्त करनी थी जिसमें राज्य सरकार विफल रही। Office of the Accountant General (E& RSA) Rajasthan के पत्र क्रमांक एमएपी/समीक्षा / एसटीपी/ज्ञापन संख्याः स्पेशल 1 दिनांक 29 अप्रैल 2019 के द्वारा निजी विद्युत उत्पादनकर्ता कंपनी राजवेस्ट से अवैध खनन के कारण 2436 करोड़ 8 लाख रुपये की राशि को वसूलने के निर्देश दिये थे। जिस पर इसी 4 अप्रैल को राज्य सरकार द्वारा राजवेस्ट कंपनी द्वारा किये जा रहे उत्खनन को बंद करने तथा 15 दिन में लिग्नाइट की वैकल्पिक व्यवस्था करने के निर्देश दिये गये हैं। जिसके परिणाम स्वरूप 1080 मेगावाट उत्पादन बंद होना कोढ़ में खाज का काम कर रहा है।उल्लेखनीय है कि इस संबंध में उत्खनन में बाड़मेर लिग्नाइट माइंस BLM कंपनी में 51% हिस्सेदारी सरकारी उपक्रम राजस्थान स्टेट माइन्स एंड मिनरल्स RSMM की है तथा 49% निजी विद्युत उत्पादनकर्ता राजवेस्ट की है तथा बाड़मेर लिग्नाइट माइंस BLM कंपनी के चेयरमेन राज्य सचिव, खान श्री सुबोध कांत है। प्रमुख शासन यह पहला अवसर है जब एक ही खान विभाग की उप शासन सचिव ने अपने ही विभाग के ACS को 2436 करोड़ 8 लाख की वसूली का आदेश दिया जो हास्यापद है। विडम्बना है कि 7 जनवरी 2022 को प्रदेश में विद्युत उपलब्धता के लिए बनी उच्च स्तरीय चेयरमैन डिस्कॉम / ऊर्जा सचिव की अध्यक्षता में एनर्जी असेसमेंट कमेटी की बैठक में स्वीकार किया गया था कि वर्ष 2022-23 में प्रदेश में विद्युत की उपलब्धता की कोई कमी नहीं रहेगी और प्रदेश में 8 हजार 972 मिलियन यूनिट बिजली सरप्लस रहेगी। राज्य विद्युत विनियामक आयोग के समक्ष राजस्थान ऊर्जा विकास निगम द्वारा प्रस्तुत याचिका संख्या 1948/21 में राज्य के विद्युत उत्पादन निगम ने यह स्वीकार किया था कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में 8 हजार 63 मिलियन यूनिट तथा 2021-22 में 8 हजार 320 मिलियन यूनिट राज्य में विद्युत सरप्लस रहेगी। विनियामक आयोग के समक्ष प्रस्तुत दूसरी याचिका संख्या 1923/21 में डिस्कॉम द्वारा 252 मेगावाट के पीपीए इस आधार पर निरस्त कराये गये कि उनके पास विद्युत की उपलब्धता आवश्यकता से अधिक है और यदि भविष्य में आवश्यकता होती है तो बाजार से 3 रु प्रति यूनिट के हिसाब से पर्याप्त मात्रा में बिजली उपलब्ध है। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता है कि राज्य में विद्युत पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है।
सर्वाधिक महंगी बिजली राजस्थान में-
15 पैसे प्रति यूनिट शहरी सेस
40 पैसे प्रति यूनिट विद्युत शुल्क
10 पैसे प्रति यूनिट जल संरक्षण शुल्क
35 पैसे प्रति यूनिट फ्यूल चार्ज
और अब बाजार से महंगी बिजली खरीदने पर इस फ्यूल चार्ज में 18 पैसे प्रति यूनिट बढोतरी के साथ 7 रुपए प्रति यूनिट घरेलू बिजली, 18 रु औद्योगिक बिजली के साथ राजस्थान के उद्योग धंधे चौपट होने को मजबूर। और अब बिजली कटौती की मार ने कोढ में खाज का काम किया है। व्यापारी परेशान, उद्यमी परेशान, विद्यार्थी परेशान, किसान परेशान, मजदूर परेशान, आमजन परेशान इस सरकार ने किसी को नहीं बक्शा।
S.P.MITTAL BLOGGER (30-04-2022)
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