यूक्रेन का बदला अमेरिका ने ताइवान में लिया। बौखलाए चीन ने इंटरनेशनल एयरलाइंस कंपनियों को ताइवान के हवाई मार्ग का इस्तेमाल नहीं करने की चेतावनी दी। तो क्या चीन अब ताइवान पर हमला कर देगा। क्या ताइवान को बचाने के लिए अमरीका आगे आएगा।

साल के शुरुआत में अमेरिका ने रूस को चेतावनी दी थी कि यदि यूक्रेन पर हमला किया तो गंभीर परिणाम होंगे। इस चेतावनी को नजरअंदाज कर रूस ने यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई की और अमेरिका देखता रह गया। अमरीका का एक भी सैनिक यूक्रेन को बचाने नहीं पहुंचा। रूस की सैन्य कार्रवाई से यूक्रेन बर्बाद हो चुका है। विगत दिनों चीन ने अमेरिका को चेतावनी दी थी कि यदि अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने ताइवान की यात्रा की तो अमेरिका को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि अमेरिका आग के साथ न खेले। चीन की इस धमकी के बाद भी नैंसी ने दो व तीन अगस्त को ताइवान की यात्रा की। नैंसी ने न केवल यात्रा की बल्कि ताइवान में लोकतंत्र की रक्षा करने का भरोसा भी दिलाया। नैंसी ने ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन से कहा कि हर स्थिति में अमेरिका ताइवान के साथ खड़ा है। नैंसी की यात्रा के दौरान चीन कोई सैन्य कार्यवाही न करे, इसके लिए ताइवान में अमेरिका के 21 जेट विमान तैनात रहे। समुद्र में भी कई पनडुब्बियां तैनात की गई। नैंसी की यात्रा के बाद अब चीन बौखलाया हुआ है। चीन ने इंटरनेशनल एयरलाइंस कंपनियों को हिदायत दी है कि वे ताइवान के हवाई मार्ग का इस्तेमाल न करे। इसके साथ ही चीन ने ताइवान की सीमा से लगे इलाकों में युद्धाभ्यास शुरू कर दिया है। इतना ही नहीं चीन के फाइटर प्लेन बार बार ताइवान की सीमा में घुस रहे हैं। असल में अमेरिका ने यूक्रेन का बदला ताइवान में लिया है। यूक्रेन पर हमले के समय चीन, रूस के साथ खड़ा था। उस वक्त चीन ने भी अमेरिका को सलाह दी थी कि वह रूस की सैन्य कार्रवाई पर दखलंदाजी न करे। यह सही है कि चीन रूस के आक्रामक तेवरों को देखते हुए यूक्रेन पर हमले के समय अमेरिका को पीछे हटना पड़ा था। लेकिन अब एशिया क्षेत्र में अमेरिका चीन के मुकाबले में आकर खड़ा हो गया है। सवाल उठता है कि यदि चीन ताइवान पर हमला करता है तो क्या अमेरिका अपने सैनिक ताइवान की सुरक्षा के लिए भेजेेगा। यदि ताइवान को बचाने के लिए अमरीका आगे आता है तो दो महाशक्तियों में जबरदस्त टकराव होगा, जिसका असर दुनिया भर में पड़ेगा। लेकिन वहीं जानकारों का मानना है कि चीन ने कभी भी कोई युद्ध नहीं लड़ा है। चीन अपनी सामरिक शक्ति का डर दिखाकर जमीनों पर कब्जा करता है। जमीन पर कब्जा करने के कारण ही चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है। उसका कहना है कि ताइवान चीन की वन पॉलिसी के अंतर्गत आता है। चीन ने कुछ वर्ष पहले  हांगकांग  को भी इसी तरह हड़पा था। आज हांगकांग के लोग चीन के अत्याचारों से दुखी है। चीन ने जो स्थिति हांककांग की है वही स्थिति ताइवान की भी करना चाहता है। लेकिन ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन ने अमेरिका की स्पीकर नैंसी को बुलाकर यह दर्शा दिया है कि ताइवान चीन से डरने वाला नहीं है।

S.P.MITTAL BLOGGER (03-08-2022)
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