एक बार सांसद और पांच बार के विधायक राम नारायण मीणा अब कांग्रेस के हालातों से दुखी हैं। चिंता! आखिर राजस्थान में कांग्रेस सरकार कैसे रिपीट होगी?

राजस्थान में राम नारायण मीणा कांग्रेस के उन चुनिंदा विधायकों में शामिल हैं जो पिछले 45 वर्षों से राजनीति में सक्रिय हैं। मीणा एक बार कोटा के सांसद रहे तो पांच बार विधायक का चुनाव जीते, दो-तीन बार मीणा को हार का सामना भी करना पड़ा। लेकिन मीणा ने कभी भी कांग्रेस का दामन नहीं छोड़ा। हर परिस्थिति में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा। बड़े नेताओं ने जब कोटा संभाग से हटा कर अजमेर संभाग के टोंक के देवली से चुनाव लड़वाया तब भी राम नारायण मीणा कांग्रेस की अपेक्षाओं पर खरे उतरे। अनेक बड़े नेताओं ने मीणा को नीचा दिखाने का काम किया, लेकिन मीणा ने कांग्रेस के प्रति अपनी वफादारी बनाए रखी। आज भी इसे कांग्रेस के प्रति वफादारी ही कहा जाएगा कि मीणा सिर्फ विधायक की भूमिका में हैं। जिन राम नारायण मीणा का हक कैबिनेट मंत्री के पद पर हैं, उन मीणा को सिर्फ विधायक बनाए रखा गया है। मीणा को भले ही मंत्री न बनाया गया हो, लेकिन कांग्रेस के मौजूदा हालातों से मीणा बेहद दुखी हैं। अपने विधानसभा क्षेत्र पीपल्दा (कोटा) की सभाओं में भी मीणा को इस बात की चिंता रहती है कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार कैसे रिपीट होगी। नाराजगी इस बात को लेकर नहीं है कि एक बार सांसद और पांच बार के विधायक को मंत्री नहीं बनाया गया। दुख इस बात का है कि रामनारायण मीणा जैसे विधायक को युवा मंत्रियों के सरकारी बंगलों पर मिलने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। यदि 79 साल की उम्र में एक वफादार नेता को मंत्रियों के बंगले पर बैठे रहना पड़े तो यह अफसोस की बात है। सत्ता का नशा ऐसा है कि मीणा की वरिष्ठता और पार्टी के प्रति वफादारी का ख्याल भी नहीं रखा जा रहा है। जो विधायक कांग्रेस सरकार की आलोचना करते हैं वे मंत्री बन गए और मीणा जैसे पांच बार के विधायक को इधर उधर भटकना पड़ता है। ऐसा नहीं कि मीणा अपने विधानसभा क्षेत्र में लोकप्रिय नहीं है। आज भी पीपल्दा के अपने खेत पर ही ग्रामीणों से मुलाकात करते हैं। जयपुर तभी आते हैं, जब ग्रामीणों का कोई कार्य होता है। जुलाई 2020 में जब राजस्थान में सियासी संकट हुआ तब मीणा ने पूरी वफादारी के साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पक्ष में रहे। लेकिन अब मीणा को इस बात का दुख है कि सीएम गहलोत के पुत्र और मंत्रियों को सार्वजनिक सभाओं में बोलने तक नहीं दिया जा रहा है। कांग्रेस के विधायकों और मंत्रियों के अपने ही सरकार के आरोपों से भी आहात है। जब कभी मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं तो उन्हें अपनी स्थिति को देखकर गर्व होता है। मीणा ने अपने राजनीतिक जीवन में जो ईमानदारी दिखाई है उसे नैनवा, देवली और पीपल्दा के मतदाता भी अजूबा मानते हैं। ग्रामीण मतदाता इस बात से खुश है कि मीणा की उपलब्धता बहुत सरल और आसान है। भले ही मीणा अपनी जुबान से न कहे, लेकिन पीपल्दा के मतदाताओं के मन में मीणा को मंत्री न बनाए जाने पर गुस्सा है। मीणा ने 1977 में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा, उन्हें दूसरी बार बूंदी जिले के नैनवां से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन 1993 के चुनाव में जीत हासिल हुई। बूंदी में लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए ही कांग्रेस ने 1996 में कोटा से लोकसभा का चुनाव लड़वाया। लेकिन मीणा को संसदीय चुनाव में मात्र 185 मतों से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन 2 वर्ष बाद दुबारा से हुए चुनाव में मीणा ने जीत हासिल की। 2008 में मीणा  नैनवां अब हिंडोली से उम्मीदवार बनाए जाने के बजाए टोंक के देवली से उम्मीदवार बनाया गया। मीणा ने देवली में भी चुनाव जीते, तभी मीणा को विधानसभा का उपाध्यक्ष भी बनाया गया। 2013 में मीणा को देवली में हार का सामना करना पड़ा। लेकिन 2018 में कोटा के पीपल्दा से मीणा 5वीं बार चुनाव जीत गए। यानी हर परिस्थिति में रामनारायण मीणा कांग्रेस के साथ रहे। 

S.P.MITTAL BLOGGER (16-09-2022)
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