आखिर कांग्रेस ने राजीव गांधी फाउंडेशन के लिए चीन से 1 करोड़ 35 लाख रुपए का चंदा क्यों लिया?

9 दिसंबर को अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में सीमा पर चीन के सैनिकों के साथ जो झड़प हुई उस में अब यह बात सामने आ गई है कि भारतीय सेना के जवानों का पलड़ा भारी रहा है। वायरल वीडियो में नजर आ रहा है कि हमारे जवान चीन के सैनिकों को डंडों से खदेड़ते नजर आ रहे हैं। चीन सेना पीछे हट रही है। सेना ने भी कहा है कि हमने चीन की करतूतों का मुंह तोड़ जवाब दिया है। देशवासी भी इस बात से उत्साहित हैं कि हमारे सैनिकों ने चीन के सैनिकों को पीटा है। पूरा देश सेना की बहादुरी पर गर्व कर रहा है। जो चीन पूरे विश्व में आंखें दिखाता है उसी चीन को हमारी सेना ने पीछे धकेला है। लेकिन इसके बावजूद भी कांग्रेस सहित कई विपक्षी दल 9 दिसंबर की घटना को लेकर संसद और संसद के बाहर हंगामा कर रहे हैं। जो मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है, उस पर राजनीति की जा रही है। कांग्रेस के सांसद मनीष तिवारी ने लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव लगाया है, तो वहीं कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने विपक्षी नेताओं की एक बैठक भी आयोजित की। लोकतंत्र में विपक्षी दलों को अपनी बात कहने का अधिकार है, लेकिन जब मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हो तो विपक्षी दलों को भी देशभक्ति दिखानी चाहिए। कांग्रेस राजनीतिक नजरिए से सत्तारूढ़ भाजपा सरकार पर हमला करे यह लोकतंत्र का एक पक्ष है। लेकिन कांग्रेस को यह भी बताना चाहिए कि केंद्र ने 2006 और 2007 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी, तब राजीव गांधी फाउंडेशन के लिए 1 करोड़ 35 लाख रुपए का चंदा चीन से क्यों लिया गया? गंभीर बात यह है कि कांग्रेस नेता के अधिकार वाले इस फाउंडेशन में चीन के दूतावास द्वारा चंदा दिया गया। यानी यह चंदा एक तरह से चीनी सरकार ने दिया। एक ओर कांग्रेस अपने फाउंडेशन में चीन से चंदा लेती है तो दूसरी ओर सीमा पर हुए सैन्य विवाद पर राजनीति करती है। कांग्रेस के नेताओं को यह बताना चाहिए कि दुश्मन देश चीन से चंदा क्यों लिया गया? राजीव गांधी फाउंडेशन का उद्देश्य सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है। कांग्रेस को यह भी बताना चाहिए कि जो चंदा चीन से लिया गया उस का उपयोग किस सामाजिक कार्य के लिए गया गया है। चूंकि चीन का हमेशा अपनी सीमाओं पर आक्रामक रुख रहता है, इसलिए भारत के विपक्षी दलों को भी सोच समझकर प्रतिक्रिया देनी चाहिए। हमारे नेताओं को यह भी समझना चाहिए कि चीन और भारत के हालातों में रात दिन का अंतर है। चीन में विपक्ष का कोई वजूद नहीं है। चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की तानाशाही है और हाल ही में कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेता शी जिनपिंग ने लंबे समय तक राष्ट्रपति रहने का कानून बना लिया है। शी जिनपिंग को चुनाव जीतने की जरूरत ही न हो वो अपने नजरिए से देश में शासन करते हैं। जबकि भारत में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने रहने के लिए 2024 में एक बार फिर जनता का मत हासिल करना होगा। भारत में विपक्षी दलों के नेताओं को कुछ भी बोलने की छूट है, जबकि चीन में कोई नेता अथवा नागरिक सेना के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोल सकता है। सरकार की ओर से जो कहा जाता है उसे ही स्वीकारा जाता है। जबकि भारत में सेना द्वारा जारी बयान का भी विपक्षी दल के नेता विरोध कर रहे हैं। इससे चीन और भारत के हालातों का अंदाजा लगा लेना चाहिए। 1962 में किस दल की सरकार के समय चीन ने भारत की भूमि पर कब्जा किया उसे पूरा देश जनता है। आजादी के बाद यह पहला अवसर है, जब सीमा पर चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया जा रहा है।

S.P.MITTAL BLOGGER (14-12-2022)
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