लोकसभा चुनाव में अजमेर से सीआर चौधरी हो सकते हैं भाजपा के उम्मीदवार। ज्योति मिर्धा को भाजपा में शामिल करवाने में अजमेर के सांसद भागीरथ चौधरी की भी भूमिका। नागौर में हनुमान बेनीवाल को खतरा। सीएम गहलोत का कोटा दौरा अचानक रद्द।
राजनीति में कब क्या हो जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की उम्मीदवार ज्योति मिर्धा को हराने के लिए भाजपा ने आरएलपी के हनुमान बेनीवाल को समर्थन दिया, लेकिन 2024 में नागौर से ही बेनीवाल को हरवाने के लिए ज्योति मिर्धा को शामिल कर भाजपा ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं। पहला तो जाट बाहुल्य नागौर में कांग्रेस को कमजोर किया। दूसरा हनुमान बेनीवाल के मुकाबले में एक मजबूत उम्मीदवार तैयार कर लिया है। नागौर में बेनीवाल का जो दबदबा है, उसका मुकाबला ज्योति मिर्धा और मिर्धा परिवार ही कर सकता है। जानकारों की मानें तो विगत दिनों पीएम मोदी का एक कार्यक्रम नागौर में होना था, लेकिन बेनीवाल के समर्थकों के विरोध को देखते हुए पीएम का कार्यक्रम स्थल बदल दिया गया। तभी से बेनीवाल भाजपा को खटक रहे थे। ज्योति के समर्थकों का कहना है कि ज्योति भले ही दो बार नागौर से चुनाव हार गई हों, लेकिन नाथुराम मिर्धा की पोती ज्योति का प्रभाव आज भी कायम है। 2019 में जब देश में मोदी लहर चल रही थी, तब नागौर से सटे अजमेर में भाजपा उम्मीदवार भागीरथ चौधरी की चार लाख मतों से जीत हुई। अजमेर से सटे भीलवाड़ा में भाजपा का चार लाख मतों की बढ़त मिली। लेकिन वहीं नागौर में बेनीवाल पौने दो लाख मतों से जीत पाए। ज्योति का प्रभाव था, इसलिए हार का अंतर कम रहा, जबकि स्वयं बेनीवाल और भाजपा की ताकत लगी हुई थी। अब यदि भाजपा की ताकत के साथ ज्योति मिर्धा चुनाव लड़ती है तो नागौर में हनुमान बेनीवाल के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी। बेनीवाल के लिए परेशानी का सबब यह भी है कि पूर्व आईपीएस सवाई सिंह चौधरी भी भाजपा में शामिल हो गए हैं। चौधरी 2018 में खींवसर से ही कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर हनुमान बेनीवाल से मुकाबला किया था। अब यदि चौधरी भाजपा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ते हैं तो खींवसर में भी बेनीवाल को खतरा हो जाएगा। सांसद बनने के बाद बेनीवाल ने अपने छोटे भाई नारायण बेनीवाल को उप चुनाव जीतवाया था, तब भी भाजपा का समर्थन था। लेकिन अब विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बेनीवाल को भाजपा से ही मुकाबला करना होगा। ज्योति के भाजपा में शामिल होने पर भले ही बेनीवाल ने ज्योति को फिर हराने की बात कही हो, लेकिन इस बार बेनीवाल के लिए आसान नहीं होगा। यदि बेनीवाल अब कांग्रेस का समर्थन लेते हैं तो भाजपा की राह और आसानी हो जाएगी।
सीआर चौधरी अजमेर से:
ज्योति मिर्धा के भाजपा में शामिल होने से नागौर की राजनीति में जो बदलाव आया है, उसमें पूर्व सांसद सीआर चौधरी अजमेर से भाजपा उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं। अजमेर के मौजूदा सांसद भागीरथ चौधरी की रुचि इस बार किशनगढ़ से विधानसभा चुनाव लडऩे में है। चौधरी को लगता है कि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने पर उनका मंत्री पद पक्का है। 2019 में जब सीआर चौधरी का टिकट काट कर भाजपा ने हनुमान बेनीवाल को समर्थन दिया था, तब भी सीआर चौधरी अजमेर आने को इच्छुक थे, लेकिन तब भाजपा ने साथ नहीं दिया और चौधरी को बिना पद के ही रहना पड़ा। अब जो हालात बदले हैं, उनमें चौधरी का भविष्य उज्ज्वल नजर आ रहा है। भागीरथ चौधरी और सीआर दोनों ही जाट समुदाय के हैं, इसलिए जाट समुदाय में कोई नाराजगी भी नहीं होगी। सीआर चौधरी भले ही नागौर के रहने वाले हों, लेकिन उनकी कर्म स्थली अजमेर रही है। आरएएस रहते हुए सीआर ने अधिकांश समय अजमेर में ही गुजारा। आरएएस रहते हुए सीआर को कांग्रेस सरकार ने राजस्थान लोक सेवा आयोग का सदस्य बना दिया। सीआर प्रशासनिक सेवा में रहे हों या राजनीति में दोनों में ही तकदीर के धनी रहे हैं। सीआर का अजमेर में भी खास प्रभाव है और मौजूदा समय में सीआर भाजपा की प्रदेश स्तरीय राजनीति में सक्रिय हैं।
सांसद चौधरी की भूमिका:
11 सितंबर को दिल्ली के भाजपा मुख्यालय में जब राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ज्योति मिर्धा को सदस्यता दिलवाई तब प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह और भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी के साथ अजमरे के सांसद और भाजपा किसान मोर्चे के प्रदेशाध्यक्ष भागीरथ चौधरी भी उपस्थित थे। सूत्रों के अनुसार ज्योति को भाजपा में शामिल करवाने में सांसद चौधरी की महत्वपूर्ण रही है। सूत्रों के अनुसार सांसद चौधरी ने ज्योति मिर्धा और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के बीच सेतु का काम किया है। ज्योति को भाजपा में शामिल करवाने से सांसद चौधरी का भाजपा में और प्रभाव बढ़ा है। चौधरी की गिनती पर प्रदेश के प्रमुख नेताओं में होने लगी है।
कोटा दौरा रद्द:
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का 12 सितंबर का कोटा दौरा अचानक रद्द हो गया है। सीएम को कोटा में पांच हजार करोड़ रुपए की लागत से हुए विकास कार्यों का लोकार्पण करना था। इसमें चंबल नदी पर बने रिवर फ्रंट का लोकार्पण भी शामिल था। तय कार्यक्रम के अनुसार 12 और 13 सितंबर को सीएम को कोटा में ही रहना था। इस दौरान मंत्री परिषद की बैठक प्रस्तावित थी। कोटा नगर सुधार न्यास की ओर से 12 सितंबर को अखबारों में जो विज्ञापन प्रकाशित हुआ, उसमें भी सीएम गहलोत की उपस्थिति बताई गई, लेकिन सीएम गहलोत कोटा नहीं गए। रिवर फ्रंट का लोकार्पण नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल और विधानसभा के अध्यक्ष सीपी जोशी की उपस्थिति में ही हुआ। इस अवसर पर कई मंत्री भी शामिल रहे। सीएम का दौरा अचानक रद्द होने को लेकर अनेक कयास लगाए जा रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि सीएम का स्वास्थ्य नासाज है, वहीं कुछ सूत्रों का कहना है कि चंबल नदी पर बने रिवर फ्रंट में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्धारित माप दंडों का उल्लंघन किया गया है। इसको लेकर ट्रिब्यूनल में शिकायत भी दर्ज करवाई गई है। पर्यावरण के नियमों के उल्लंघन के मद्देनजर ही सीएम लोकार्पण समारोह से दूर रहे। सीएम के नहीं जाने से लोकार्पण समारोह फीका नजर आया। सबसे ज्यादा मायूसी मंत्री धारीवाल को हुई। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 11 सितंबर को जयपुर में हुई पार्टी की एक बैठक में सीएम गहलोत और अशोक चांदना के बीच जो विवाद हुआ, उससे गहलोत बेहद खफा बताए गए। गहलोत को इस बात का अफसोस रहा कि जिन अशोक चांदना को उन्होंने राजनीति में आगे बढ़ाया वही चांदना अब सबके सामने उनसे बहस कर रहे हैं। मालूम हो कि दो दिन पहले बिजली की समस्या को लेकर चांदना ने अपनी ही सरकार के खिलाफ धरना दिया था। इस धरने से ही सीएम गहलोत नाराज थे। नाराजगी भी इतनी की गहलोत ने प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा से कहा कि जो मंत्री अपनी ही सरकार के खिलाफ धरना दे उसके विरुद्ध अनुशासनहीनता का नोटिस जारी किया जाए।
S.P.MITTAL BLOGGER (12-09-2023)
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