आखिर राजस्थान के भाजपा उम्मीदवारों का मामला प्रधानमंत्री तक क्यों जाएगा?

आखिर राजस्थान के भाजपा उम्मीदवारों का मामला प्रधानमंत्री तक क्यों जाएगा? एमपी और छत्तसीगढ़ में तो अमित शाह ही फाइनल आथोरिटी थे। वसुंधरा फैक्टर का असर!
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विधानसभा चुनाव के लिए राजस्थान के भाजपा उम्मीदवारों को लेकर 10 नवम्बर की रात को राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे के मध्य एक-एक सीट पर चर्चा हुई। अब कहा जा रहा है कि उम्मीदवारों का मामला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक जाएगा। मोदी से विचार विमर्श के बाद ही उम्मीदवारों की घोषणा होगी। राजस्थान के साथ ही एमपी और छत्तसीगढ़ में भी विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। लेकिन दोनों राज्यों के भाजपा उम्मीदवारों का मामला प्रधानमंत्री तक नहीं गया। राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह ही फाइनल आॅथोरिटी रहे। अमितशाह के निर्णय को किसी ने भी चुनौती नहीं दी। चूंकि राजस्थान में वसुंधरा राजे जैसी दमदार मुख्यमंत्री है, इसलिए अमितशाह के साथ हुई बातचीत को भी अंतिम नहीं माना जा रहा है। ऐसे में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर, प्रदेशाध्यक्ष मदनलाल सैनी, संगठन महासचिव चन्द्रशेखर जैसे नेताओं की वार्ता भी बेनतीजा मानी जा रही है। गजेन्द्र सिंह शेखावत, अर्जुनराम मेघवाल जैसे नेताओं की तो बोलती बंद है। ओम माथुर जैसे दिग्गज नेता भी ज्यादा बोल कर कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं। मीडिया में भले ही 80 भाजपा विधायकों के टिकिट कटने की बात सामने आ रही हो, लेकिन वसुंधरा राजे के समर्थक इन खबरों पर भरोसा नहीं कर रहे हैं। जो विधायक पांच वर्ष तक हर हालात में साथ रहे, उनके टिकिट सीएम इतनी आसानी से कटने नहीं देंगी। चूंकि अनेक सीटों पर सहमति नहीं बन रही है। इसलिए मामला प्रधानमंत्री तक जाएगा, हालांकि 10 नवम्बर की रात को सीएम राजे से विचार विमर्श के बाद अमितशाह ने 11 नवम्बर को अपने  आवास पर ओम माथुर, मदनलाल सैनी, चन्द्रशेखर आदि से विचार विमर्श किया। माना जा रहा है कि इस बैठक में वसुंधरा राजे के कथनों और राय पर विचार हुआ। ओम माथुर, सैनी, चन्द्रशेखर आदि जहां विधायकों के टिकिट काटने के पक्ष में हैं, वहीं वसुंधरा राजे अपने विधायकों को बचाना चाहती हैं। राजस्थान में 200 में 163 भाजपा के विधायक हैं। आरोप है कि विशाल बहुमत की वजह से अधिकांश विधायक सत्ता के नशे में मदहोश हो गए। पहली बार विधायक बनने वालों को सीएम ने संसदीय सचिव बना कर मंत्री स्तर का दर्जा तक दे दिया। अमितशाह का अभी भी प्रयास है कि आपसी सहमति से ही उम्मीदवारों का निर्णय हो जाए। शाह विवाद को प्रधानमंत्री तक ले जाने के पक्ष में नहीं है। मालूम हो कि भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष के बदलाव के समय भी राष्ट्रीय नेतृत्व और वसुंधरा राजे में खींचतान हुई थी। इस खींचतान की वजह से ही प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति में चार माह का विलम्ब हुआ था। चूंकि अमितशाह को राजस्थान का चुनाव हर कीमत पर जीतना है, इसलिए वे चुनाव के ऐनमौके पर विवादों को टालना चाहते हैं। चूंकि अमितशाह 11 नवम्बर को दिन भर राजस्थान के उम्मीदवारों पर ही चर्चा करते रहे, इसलिए माना जा रहा है कि 12 नवम्बर को भाजपा की पहली सूची जारी हो जाएगी।
एस.पी.मित्तल) (11-11-18)
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