मेयर हो तो धर्मेन्द्र गहलोत जैसा।

मेयर हो तो धर्मेन्द्र गहलोत जैसा।
कांगे्रस के राज में कलेक्टर तक को नोटिस।
कांगे्रसी पार्षदों का भी मुंह बंद।
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आमतौर पर यही माना जाता है कि प्रदेश में अपनी सरकार होने पर स्थानीय निकायों के प्रमुख भी दादागिरी करते हैं। अफसरों को भी अपने तबादले का डर रहता है, लेकिन अजमेर में उल्टा हो रहा है। दो माह पहले तक भाजपा के शासन में अजमेर नगर निगम का माहौल शांतिपूर्ण था। राज्य सरकार ने जो कहा वो भाजपा के मेयर धर्मेन्द्र गहलोत ने स्वीकार कर लिया, लेकिन राज्य में कांग्रेस की सरकार बनते ही गहलोत ने तेवर बदल लिए। हर मुद्दे पर गहलोत सरकार से लड़ने के मूड में हैं। गहलोत ने पहले निगम की आयुक्त चिन्मय गोपाल को नोटिस दिया और अब कलेक्टर विश्वमोहन शर्मा से जवाब तलब किया है। यह कार्यवाही उन 13 काॅमिर्शियल नक्शों को लेकर है जो निगम के उपायुक्त गजेन्द्र सिंह रलावता ने स्वीकृत किए हैं। हालांकि यह आयुक्त और  उपायुक्त के अधिकारों का विवाद है, लेकिन मेयर गहलोत उपायुक्त के साथ खडे हैं। नक्शों का विवाद छह माह से चल रहा है। सवाल किसी एक विवाद को लेकर नहीं है अहम सवाल कांग्रेस के शासन में भाजपा के मेयर की दिलेरी का है। कुछ लोग मेयर गहलोत पर भी आरोप लगाते हैं,ं लेकिन यदि ऐसे आरोपों में दम है तो अब कांग्रेस के शासन में कार्यवाही क्यों नहीं करवाई जाती? यदि गहलोत ने कोई गैरकानूनी कार्य किया है तो उनके विरुद्ध जांच करवाई जा सकती है। मजे की बात तो यह है कि निगम में कांग्रेस के पार्षद भी गहलोत के साथ है। शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय जैन ने बयान जारी कर 13 नक्शों में निगम की आयुक्त का समर्थन किया, लेकिन कांग्रेस के 21 में से एक भी पार्षद अपनी पार्टी के अध्यक्ष के रुख का समर्थन नहीं किया। निगम के 60 में से 21 पार्षद कांग्रेस के हैं। लेकिन कांग्रेस के पार्षदों की चुप्पी की हमेशा चर्चा रहती है। कई बार नीरज जैन जैसे भाजपा पार्षद निगम के निर्णयों की आलोचना कर देते हैं। लेकिन कांग्रेस के पार्षद कभी विरोध नहीं करते। असल में मेयर गहलोत को कांग्रेस के पार्षदों को नियंत्रित रखने की अटकल है। उन्हें पता है कि कांग्रेस के पार्षदों को कैसे नियंत्रित रखा जाता है। मेयर चुनाव के समय भी यदि कांगे्रस के पार्षदों का समर्थन नहीं होता तो गहलोत मेयर नहीं बन पाते। चुनाव के समय सुरेन्द्र सिंह शेखावत ने बगावत कर उम्मीदवारी जता दी थी। तब शेखावत ने 60 में से 30 वोट प्राप्त किए। यानि शेखावत को भाजपा के वोट मिले, लेकिन कांग्रेस के सभी 21 पार्षदों के वोट नहीं मिले। हालांकि बाद में लाॅटरी से मेयर का निर्णय हुआ। कांग्रेस के शासन में भाजपा के मेयर की दिलेरी बताती है कि राजनीतिक नजरिया क्या है। शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय जैन ने कहा कि वे कांग्रेस के पार्षदों की बैठक बुलाएंगे, लेकिन जैन की भी अब पार्षदों की बैठक बुलाने की हिम्मत नहीं हो रही है। असल में जैन भी अपनी पार्टी के पार्षदों के रवैए से वाकिफ है। जैन को भी पता है कि कांग्रेस के कई प्रभावशाली नेताओं ने निगम के सफाई आदि के कार्य ले रखे हैं। ऐसे नेताओं को कांग्रेस के ही एक ताकतवर मंत्री का समर्थन है। मंत्री के चेहते नेता भी निगम में ठेके पर अनेक कार्य कर रहे हैं।
एस.पी.मित्तल) (02-03-19)
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