कांग्रेस ने जो कहा, सुप्रीम कोर्ट में वैसा ही रहा।

कांग्रेस ने जो कहा, सुप्रीम कोर्ट में वैसा ही रहा।
राम मंदिर पर निर्णय चुनाव बाद। 
मध्यस्थता के लिए जस्टिस इब्राहिम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में कमेटी बनाई। जहां से चले थे, वहीं पहुंचे।
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दो वर्ष पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में खड़े होकर कहा था कि अयोध्या में मंदिर विवाद पर सुनवाई मई 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के बाद की जाए। सिब्बल का कहना रहा कि सुनवाई अथवा निर्णय होने का फायदा केन्द्र की भाजपा सरकार को मिलेगा। हालांकि तब कोर्ट ने सिब्बल के कथन पर कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन सिब्बल ने जो कहा सुप्रीम कोर्ट मंे वैसा ही रहा। तारीख पर तारीख का सुप्रीम कोर्ट का रिकाॅर्ड बताता है कि सिब्बल के कहने के बाद ठोस सुनवाई नहीं हुई। 8 मार्च को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय खंडपीठ ने बगैर कोई सुनवाई किए मध्यस्थ का फार्मूला लागू कर दिया। मध्यस्थता के लिए बनाई कमेटी को आठ हफ्ते में अपनी फाइनल रिपोर्ट देनी है। इन दो महीनों में लोकसभा के चुनाव पूरे हो जाएंगे। कोर्ट ने जो तीन सदस्यीय कमेटी बनाई है उसके अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज इब्राहिम कलीफुल्ला होंगे, जबकि आर्ट आफ लिविंग के प्रणेता श्रीश्री रविशंकर और मध्यस्थ के लिए मशहूर वकील श्रीराम पंचू सदस्य होंगे। कमेटी को एक सप्ताह में राय मशवरा करने के निर्देश दिए हैं तथा कमेटी की कार्यवाही फैजाबाद में होगी। यह कमेटी विवाद से जुड़े सभी पक्षकारों से संवाद कर आम सहमति बनाएगी। हालांकि ऐसे प्रयास पूर्व में जस्टिस दीपक मिश्रा ने भी किए थे, लेकिन सफलता नहीं मिली। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला देने से पहले मध्यस्थता के लिए अनेक प्रयास किए और अब सफलता नहीं मिली तो भूमि बंटवारे के बाद राम मंदिर बनवाने का फैसला दे दिया। हालांकि इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दोनों पक्षों ने चुनौती दी। सवाल यह भी है कि यदि सुप्रीम कोर्ट को मध्यस्थता के  जरिए ही मंदिर विवाद सुलझाना था तो इतना विलम्ब क्यों किया गया? रंजन गोगोई ने चीफ जस्टिस बनते ही कहा था कि कोर्ट को सिर्फ भूमि विवाद पर सुनवाई करनी है। यानि मंदिर-मस्जिद विवाद से कोई सरोकार नहीं है, लेकिन अब जस्टिस इब्राहिम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में कमेटी बना कर जस्टिस गोगोई ने माना है कि यह दोनों पक्षों की धार्मिक भावनाओं से जुड़ा मामला है। सवाल यह भी है कि मंदिर निर्माण के लिए वर्षों से समझौतों के प्रयास चल रहे हैं, लेकिन सफलता नहीं मिली है तो फिर इब्राहिम कमेटी मात्र दो माह में किस निष्कर्ष पर पहुंचेगी? अयोध्या में मंदिर निर्माण के पक्षकार हिन्दू महासभा ने ताजा निर्णय के बाद साफ कह दिया है कि हम मध्यस्थता की प्रक्रिया में शामिल नहीं होंगे। देखना होगा कि ऐसे में मध्यस्थता का फार्मूला कितना सफल होता है।
एस.पी.मित्तल) (08-03-19)
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