जामिया के छात्रों के मार्च से पहले फायरिंग।
इन हालातों से किसी का भी भला होने वाला नहीं है। 

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30 जनवरी को देश की राजधानी दिल्ली में जब महात्मा गांधी की 72वीं पुण्यतिथि के आयोजन हो रहे थे, तभी दोपहर एक बजे जामिया यूनिवर्सिटी के क्षेत्र में फायरिंग हो गई। इससे सम्पूर्ण दिल्ली में दहशत का माहौल हो गया। दिल्ली में हो रहे विधानसभा चुनाव की वजह से आरोप-प्रत्यारोपों का माहौल पहले ही गरम है, लेकिन अचानक हुई इस फायरिंग से हालात बेहद नाजुक हो गए। भारी पुलिस बल की मौजूदगी के बाद भी एक युवक ने फिल्मी स्टाइल में फायरिंग की। इससे पुलिस की मुस्तैदी पर भी सवाल उठता है। शाहीन बाग के लोगों की तरह दिल्ली में जामिया यूनिवर्सिटी के छात्र भी संशोधित नागरिकता कानून का लगातार विरोध कर रहे हैं। यूनिवर्सिटी में पढ़ाई का कामकाज ठप है और छात्र-छात्राएं सड़कों पर है। 30 जनवरी को प्रदर्शनकारी छात्रों ने जामिया से राजघाट तक शांति मार्च निकालने का ऐलान किया। पुलिस का कहना रहा कि अनुमति के बगैर मार्च नहीं निकाला जा सकता। 30 जनवरी को भी जब मार्च को लेकर छात्र-छात्राएं नारेबाजी कर रहे थे, तभी एक युवक पिस्तौल लहराता हुआ सामने आया और जामिया के छात्रों को ललकारने लगा। इस युवक ने जो फायरिंग की उससे यूनिवर्सिटी का एक छात्र जख्मी हो गया। चूंकि छात्र के हाथ में गोली लगी उसे अस्पताल में भर्ती करवाया गया। सवाल यह भी है कि क्या इस युवक को पुलिस का भी डर नहीं रहा। शाहीन बाग में पिछले अड़तालीस दिनों से लगातार धरना प्रदर्शन किया जा रहा है। चूंकि यह धरना बीच सड़क पर है, इसलिए यातायात भी अवरुद्ध हो रहा है। शाहीन बाग के बेमियादी धरने को लेकर पहले ही देश का माहौल गरम हो रहा है। ऐसे में जामिया के क्षेत्र में फायरिंग होना बहुत बड़ी घटना है। दिल्ली में इन दिनों जो कुछ भी हो रहा है, उससे किसी का भी लाभ होने वाला नहीं है। इससे देश का माहौल बेवजह बिगड़ रहा है। संशोधित नागरिकता कानून को लेकर सरकार की ओर से कई बार सफाई दी जा चुकी है, लेकिन फिर भी मुस्लिम समुदाय के लोगों में भय बना हुआ है। शाहीन बाग में बैठी महिलाएं बार बार कह रही है कि इस कानून से मुसलमानों की नागरिकता छिन जाएगी। इन महिलाओं की मांग है कि एनआरसी पर भी सरकार को अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए। हालांकि प्रधानमंत्री पहले ही कह चुके हैं कि एनआरसी पर कोई चर्चा नहीं हुई है। इस प्रकार सीएए के बारे में भी कहा गया है कि यह किसी की नागरिकता छीनने का कानून नहीं है, बल्कि पाकिस्तान से धर्म के आधार पर प्रताडि़त हो कर आए अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का कानून है। सरकार की लाख कोशिश के बाद भी मुस्लिम समुदाय संतुष्ट नहीं हो रहा है। जाहिर है कि सरकार को और प्रयास करने होंगे। सरकार को इस मुद्दे पर मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधियों को बुलाकर भी संवाद करना चाहिए। अभी देश का जो माहौल बना है उससे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। इसका सबसे ज्यादा फायदा पाकिस्तान को हो रहा है। कश्मीर के मुद्दे को लेकर पाकिस्तान पहले ही भारत को कठघरे में खड़ा करता रहा है। अब शाहीन बाग में भी जो कुछ हो रहा है उससे पाकिस्तान को प्रोपेगंडा करने का अवसर मिलेगा। सरकार को उन तत्वों पर भी नजर रखनी होगी, जो देश का माहौल बिगाडऩे में लगे हुए हैं। जब सरकार सबका साथ सबका विश्वास का नारा देती है तो फिर मुस्लिम समुदाय का विश्वास भी जीतना जरूरी है। यह माना कि कुछ लोग अपने नीहित स्वार्थों की खातिर माहौल को बिगाडऩे में लगे हुए हैं। लेकिन आम लोगों को समझाने की जिम्मेदारी सरकार और उसके प्रतिनिधियों की है।
(एस.पी.मित्तल) (30-01-2020)
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