तो क्या पाकिस्तान में मंदिर जलाने और हिंदुओं को प्रताडि़त करने वाले कट्टरपंथियों को भारत की नागरिकता दे दी जाए? भारत में सीएए कानून का विरोध करने वाले अब पाकिस्तान में मंदिर जलाने की घटना पर प्रतिक्रियां दें। देश के विभाजन के समय पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी 23 प्रतिशत थी, आज मात्र तीन प्रतिशत है। हिंदुओं की अकीदत देखनी है तो अजमेर की दरगाह पर आएं कट्टरपंथी।

वर्ष 2021 के शुरू होने के साथ ही पाकिस्तान से मंदिर जलाने की खबर आई हैं। पाकिस्तान के खैबर पख्तून प्रांत के कटक जिले में जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम से जुड़े कट्टरपंथियों ने एक मंदिर को आग लगा दी तथा जमकर तोडफोड़ की। कट्टरपंथियों ने यह कार्यवाही धार्मिक आधार पर की। जब कट्टरपंथी मंदिर को आग के हवाले कर रहे थे, तब अल्पसंख्यक हिन्दू समुदाय के लोग दहशत में थे। पाकिस्तान में हिन्दू, जैन, सिक्ख, ईसाई आदि समुदाय के लोग अल्पसंख्यक कहलाते हैं। इन अल्पसंख्यकों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव की आप शिकायतें रहती हैं। चूंकि कट्टरपंथियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही नहीं होती है, इसलिए पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का जीना मुश्किल हो रहा है। इस स्थिति को देखते हुए ही भारत में केन्द्र सरकार रने नागरिक कानून में संशोधन किया है। इसके अंतर्गत पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि देशों से जो अल्पसंख्यक (हिन्दू, जैन, ईसाई, सिक्ख व पारसी) भारत आना चाहते हैं या जिन्होंने भारत में शरण ले रखी है, उन्हें भारत की नागरिकता प्रदान की जाएगी। इस संशोधित कानून से भारत में रहने वाले किसी भी मुसलमान या अन्य अल्पसंख्यक की नागरिकता पर कोई असर नहीं पड़ेगा। लेकिन गत वर्ष अनेक लोगों ने संशोधित नागरिकता कानून का विरोध किया। देशभर में जगह जगह धरने प्रदर्शन किए गए। ऐसे लोगों की मांग रही कि जिस प्रकार हिन्दू, जैन, ईसाई, सिक्ख और पारसी लोगों को भारत की नागरिकता दी जा रही है, उसी प्रकार पाकिस्तान से आने वाले मुसलमानों को भी नागरिकता दी जाए। जबकि नए कानून में धर्म के आधार पर प्रताडि़त होने वाले लोगों को ही नागरिकता का प्रावधान रखा गया था। जो लोग सीएए कानून का विरोध कर रहे थे, अब वे बताएं कि खैबर पख्तून में मंदिर जलाने और हिन्दुओं को प्रताडि़त करने वाले पाकिस्तान के कट्टरपंथियों को क्या भारत की नागरिकता दे दी जाए? हिन्दू और अल्पसंख्यक तो पाकिस्तान से प्रताडि़त होकर ही तो आए हैं? यदि वो ही लोग नए कानून में नागरिकता ले लेंगे तो भारत की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। सब जानते हैं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश मुस्लिम राष्ट्र हैं। इन मुस्लिम राष्ट्रों में सताए हिन्दू, सिक्ख यदि भारत में शरण नहीं लेंगे तो कहां लेंगे? सीएए कानून का विरोध करने वालों को यह भी समझना चाहिए कि देश के विभाजन के समय पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी 23 प्रतिशत थी जो आज घट कर मात्र तीन प्रतिशत रह गई है। जबकि भारत में अल्पसंख्यकों की आबादी 20 प्रतिशत तक पहुंच गई है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत और पाकिस्तान में अल्पसंख्यक किस स्थिति में रह रहे हैं। भारत की सूफी संतों की मजारों और दरगाहो में हिन्दू समुदाय के ज्यादा सिर झुकाते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है। दरगाह के आसपास के हिन्दू दुकानदार रोज सुबह अपनी दुकान की चाबियां दरगाह की सीढिय़ों पर रखते हैं, ताकि दिनभर कारोबार अच्छा हो। जो कट्टरपंथी पाकिस्तान में मंदिर चला रहे हैं उन्हें अजमेर आकर दरगाह के प्रति हिन्दुओं की अकीदत देखनी चाहिए। 
S.P.MITTAL BLOGGER (01-01-2021)
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