राजनीति में ऐसी दिलेरी सचिन पायलट ही दिखा सकते हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने फिर किया नकारा और निकम्मे शब्दों का इस्तेमाल।

कल्पना कीजिए कोई व्यक्ति आपको सार्वजनिक तौर पर निकम्मा और धोखेबाज़ आदि अप शब्द कहे और आप बार बार उस व्यक्ति के सम्मान के लिए पहुंच जाए। क्या आप हकीक़त में ऐसा कर सकते हैं? शायद इस सवाल का जवाब नहीं में ही आएगा। लेकिन राजस्थान की राजनीति में ऐसी दिलेरी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सचिन पायलट ही दिखा रहे हैं। तीन जनवरी को पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ जयपुर में धरना दिया और शाम को मुख्यमंत्री आवास पर पहुंच कर डिनर भी किया। यह बात अलग है कि दोनों नेताओं में कोई संवाद नहीं हुआ, लेकिन पायलट की उपस्थिति बेहद मायने रखती है। गत वर्ष जुलाई में जब राजस्थान में राजनीतिक संकट हुआ तब सीएम गहलोत ने पायलट को सार्वजनिक तौर पर नकारा, निकम्मा और धोखेबाज़ कहा। हालांकि एक माह बाद कांग्रेस का संकट समाप्त हो गया, लेकिन सीएम गहलोत ने अपने शब्दों पर आज तक भी खेद प्रकट नहीं किया। इतना ही नहीं तीन जनवरी को सचिन पायलट की उपस्थिति में गहलोत ने एक बार फिर नकारा और निकम्मा जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। फर्क इतना ही था कि इस बार ऐसे शब्द केन्द्र की भाजपा सरकार के लिए इस्तेमाल किए गए। पायलट की उपस्थिति में इन शब्दों का उपयोग इसलिए भी मायने रखता है कि गत वर्ष जुलाई में जब गहलोत ने इन शब्दों का इस्तेमाल किया था, तब सचिन पायलट और भाजपा में मिली भगत होने का आरोप लगाया था। सचिन पायलट भले ही कांग्रेस संगठन की गतिविधियों में सक्रिय रहे, लेकिन सीएम गहलोत ने अपना इरादा स्पष्ट कर दिया है। छह माह गुजर जाने के बाद भी पायलट और उनके समर्थकों को संगठन और सरकार में कोई सम्मान नहीं मिला है। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में पायलट सीएम गहलोत के साथ कैसे बैठे रहते हैं और खाना भी खाते हैं, यह पायलट ही बता सकते हैं। माना कि राजनीति में बहुत से समझौते करने पड़ते हैं, लेकिन अपमान सहकर समझौता करना बहुत कठिन होता है। राजनीति में पायलट जिस दौर से गुजर रहे हैं उसका अहसास वे ही कर सकते हैं। एक वो सचिन पायलट थे जो कांग्रेस के 18 विधायकों को लेकर दिल्ली चले गए और एक वो सचिन पायलट हैं जो विषम परिस्थितियों में अशोक गहलोत के साथ बेठे हैं। दोनों सचिन पायलट में बहुत अंतर हैं। सब जानते हैं कि तीन जनवरी को जयपुर में कांग्रेस पार्टी का धरना सीएम गहलोत की पहल पर हुआ था। इस धरने में कांग्रेस के सभी विधायकों को आमंत्रित किया गया। विधायक होने के नाते पायलट को भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवानी पड़ी। पायलट किस मन से उपस्थित थे, इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि तीन-चार घंटे एक साथ बैठे रहने पर भी पायलट और गहलोत में कोई संवाद नहीं हुआ। 

S.P.MITTAL BLOGGER (04-01-2021)

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