आखिर वसुंधरा राजे की अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात हुई। पश्चिम बंगाल चुनाव में हो सकती है महत्वपूर्ण भूमिका। अजय माकन जयपुर आएं या जाए, पर सीएम अशोक गहलोत पर मंत्रिमंडल के विस्तार और राजनीतिक नियुक्ति यों का कोई दबाव नहीं।

आखिर कार 1 फरवरी की रात को राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की मुलाकात केन्द्रीय गृहमंत्री अमितशाह से हो ही गई। इस मुलाकात का राजनीतिक क्षेत्रों में लम्बे समय से इंतजार था। कोई पौने घंटे की मुलाकात में दोनों नेताओं के बीच राजस्थान और पश्चिम बंगाल की राजनीति को लेकर चर्चा हुई। यह मुलाकात ऐसे समय में हुई है, जब कहा जा रहा है कि राजे अपनी उपेक्षा से नाराज हैं। इसलिए राजस्थान में जिला स्तर पर टीम वसुंधरा राजे बन चुकी है। लेकिन राजे को भी यह पता है कि पार्टी से अलग होकर राजनीति करना आसान नहीं है। राजे भले ही प्रदेश के भाजपा नेताओं के समक्ष अपनी नाराज़गी जताएं लेकिन राष्ट्रीय नेताओं के समक्ष अपनी वफादारी दिखाने में राजे ने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी। पिछले दो वर्ष से राजस्थान में वसुंधरा राजे के बगैर ही भाजपा चल रही है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर राजे के महत्व को बरकरार रखा गया है। राजे अमित शाह की कार्यकारिणी में भी भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थीं और अब जेपी नड्डा की कार्यकारिणी में भी उपाध्यक्ष बनी हुई हैं। हाल ही में राजस्थान की कोर कमेटी में भी राजे को शामिल किया गया है। सूत्रों की माने तो एक फरवरी की मुलाकात में अमितशाह ने राजे के समक्ष पश्चिम बंगाल के चुनाव में भूमिका निभाने का प्रस्ताव रखा है। चूंकि पश्चिम बंगाल में फायर ब्रांड मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भाजपा का मुकाबला है, इसलिए अमितशाह चाहते हैं कि वसुंधरा राजे बंगाल में सक्रिय हों। यहां यह खासतौर से उल्लेखनीय है कि बंगाल में चुनाव की कमान अमितशाह के पास है और अमितशाह ममता बनर्जी के सामने भाजपा की तेजतर्रार महिला नेताओं की टीम उतारना चाहते हैं। गत 30 जनवरी को जब अमितशाह तय कार्यक्रम के मुताबिक बंगाल के दौरे पर नहीं जा सके तब अचानक केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को भेजा गया था। अमितशाह बंगाल में जो रणनीति बना रहे हैं, उसके अंतर्गत वसुंधरा राजे की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। जहां तक राजस्थान की राजनीति में राजे की सक्रियता का सवाल है तो राष्ट्रीय नेतृत्व से राजे को कोई पुख्ता भरोसा नहीं मिला है, लेकिन राजनीति में राजे के महत्व को राष्ट्रीय नेतृत्व कम नहीं आंकता है। अमितशाह से राजे की मुलाकात का असर मौजूदा समय में प्रदेश में भाजपा की राजनीति पर नहीं पड़ेगा।

गहलोत पर कोई दबाव नहीं:

कांग्रेस के प्रभारी महासचिव अजय माकन का 2 फरवरी की रात को जयपुर पहुंचने का कार्यक्रम है। माकन जब भी दिल्ली से जयपुर आते हैं, तब मीडिया में मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों की खबरें छपने लगती है। लेकिन सच्चाई ये है कि अजय माकन जयपुर आएं या जाएं लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर सीएम अशोक गहलोत पर कोई दबाव नहीं है। अजय माकन ने पूर्व में कहा था कि 31 जनवरी तक राजनीतिक नियुक्तियां हो जाएंगी और फिर मंत्रिमंडल का विस्तार होगा। अब 31 जनवरी गुजर चुकी है, लेकिन माकन की घोषणा पूरी नहीं हुई है। अशोक गहलोत को पहले ही राजनीतिक नियुक्तियों के सवाल को खारिज कर चुके हैं। वैसे भी सरकारी संस्थाओं पर सीएम गहलोत अपने नजरिए से नियुक्तियां कर रहे हैं। दो दिन पहले ही अधीनस्थ कर्मचारी चयन बोर्ड के अध्यक्ष के पद पर रिटायर आईपीएस हरि प्रकाश शर्मा की नियुक्ति की गई है। इससे पहले भी राज्य सूचना आयोग और राजस्थान लोक सेवा आयोग में सीएम गहलोत ने रिटायर नौकरशाहों को भरा है। जहां तक मंत्रिमंडल के विस्तार का सवाल है तो गहलोत को कोई चिंता नहीं है। कांग्रेस की राजनीति पूरी तरह गहलोत के कब्जे में है। कांग्रेस अथवा सरकार को समर्थन देने वाले निर्दलीय तथा अन्य पार्टियों का कोई विधायक सार्वजनिक तौर पर मंत्रिमंडल विस्तार की मांग नहीं कर रहा है। गहलोत के समर्थन में 115 से भी ज्यादा विधायक हैं। लेकिन एक भी विधायक स्वयं को मंत्री बनाने की नहीं कर रहा। असल में अपने समर्थक विधायकों को गहलोत मंत्री से भी ज्यादा सम्मान दे रहे हैं। चूंकि अब सचिन पायलट की स्थिति भी कमजोर हो गई है,इसलिए पायलट गुट के विधायक भी चुप हैं। 

S.P.MITTAL BLOGGER (02-02-2021)

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