तो क्या अब अशोक गहलोत की नजर में सचिन पायलट धोखेबाज़ मक्कर और निकम्मे नहीं रहे हैं? क्या सिर्फ चुनावी सभाओं में मंच सांझा करने और हेलीकॉप्टर में बैठने से दोनों नेताओं के जख्म भर जाएंगे?

27 फरवरी को श्रीडूंगरगढ़ और मातृकुंडिया में हुई कांग्रेस की चुनावी सभाओं में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट एक मंच पर नजर आए तथा सभा में पहुंचने के लिए एक ही हेलीकॉप्टर में बैठे। गहलोत और पायलट को एक मंच पर लाने और एक साथ हेलीकॉप्टर में बैठाने को लेकर प्रदेश प्रभारी अजय माकन और प्रदेशाध्यक्ष गोविंद ङ्क्षसह डोटासरा अपनी बड़ी राजनीतिक उपलब्धि मान रहे हैं, लेकिन सवाल उठता है कि क्या सीएम अशोक गहलोत की नजर में अब सचिन पायलट धोखेबाज़ मक्कार और निकम्मे नहीं रहे हैं? क्या अब गहलोत को पायलट पर इतना भरोसा हो गया कि उनके सहारे प्रदेश के चारों विधानसभा उपचुनाव जीत लिए जाएंगे? सब जानते हैं कि जुलाई में जब पायलट कांग्रेस के 18 विधायकों को लेकर दिल्ली चले गए थे, तब गहलोत ने पायलट को सार्वजनिक तौर पर धोखेबाज, मक्कार और निकम्मा कहा था। अपने इन शब्दों के लिए गहलोत ने अभी तक भी खेद प्रकट नहीं किया है। सवाल गहलोत के मुख्यमंत्री पद पर रहने का भी है। दिसम्बर 2018 के चुनाव में जब कांग्रसे को बहुमत मिला था, तब मुख्यमंत्री के पद पर पायलट का सशक्त दावा था, लेकिन तब गहलोत को सीएम बनाया गया। क्या दिसम्बर 2018 की घटना को देखते हुए सचिन पायलट चार उपचुनावों में कांग्रेस को जीतवा कर राजस्थान में अशोक गहलोत को और मजबूत करेंगे? पायलट को लगता है कि गहलोत ने उनका हक छीना और गहलोत को लगता है कि पायलट ने भाजपा के साथ मिलकर उनकी सरकार गिराने की कोशिश की है। यानि दोनों के अपने अपने जख्म हैं? 27 फरवरी को भले ही दोनों नेताओं ने मंच सांझा किया हो, लेकिन दोनों की बॉडी लैग्वेज से नहीं लग रहा था कि जख्म भर गए हैं। श्रीडूंगरढ़ की सभा में अजय माकन बीच में बैठे तो मातृकुंडिया की सभा में गहलोत और पायलट के बीच में गोविंद सिंह डोटासरा को बैठना पड़ा। दोनों के चेहरे से मित्रता का भाव नजर नहीं आ रहा था। कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी की 12 व 13 फरवरी की राजस्थान यात्रा में पायलट की उपेक्षा जगजाहिर है। इसी के बाद 19 फरवरी को जयपुर के निकट चाकसू में पायलट की किसान महापंचायत में कांग्रेस के 15 विधायक उपस्थित रहे। इनमें से 14वो विधायक थे जो जुलाई में पायलट के साथ दिल्ली गए थे। चाकसू की पंचायत को पायलट का शक्ति प्रदर्शन माना गया। ऐसे में सवाल उठता है कि मात्र एक सप्ताह में ऐसा क्या हो गया जिस में दोनों नेताओं के मतभेद समाप्त हो गए? गत वर्ष जुलाई में हुए राजनीतिक संकट के बाद सीएम गहलोत ने एक तरफा निर्णय लिए न तो पायलट को और न उनके किसी समर्थक को सरकार में तवज्जों दी। यहां तक की मंत्रिमंडल का विस्तार तक नहीं किया। 18में से 15 विधायक का साथ में बने रहना भी पायलट के लिए बड़ी उपलब्धि है। अशोक गहलोत के साथ रहने वाले विधायकों को अभी भी मंत्रिमंडल के विस्तार और प्रदेश स्तरीय राजनीतिक नियुक्तियों का इंतजार है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (27-02-2021)

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