दो मई को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की राजनीतिक परीक्षा का परिणाम भी आएगा। सचिन पायलट की बर्खास्तगी के बाद पहली बार हुए तीन विधानसभा के उपचुनाव। जीत हुई तो गहलोत खेमे का झंडा बुलंद होगा। नहीं हुई तो पायलट खेमे का दबाव बनेगा।

2 मई को पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणाम के साथ ही राजस्थान में हुए तीन विधानसभा के उपचुनाव के परिणाम भी आएंगे। इसमें कोई दो राय नहीं कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कोरोना काल में रात दिन मेहनत कर रहे हैं, लेकिन उपचुनाव के परिणाम ही गहलोत की राजनीतिक परीक्षा का परिणाम होगा। सचिन पायलट की डिप्टी सीएम और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से बर्खास्तगी के बाद प्रदेश में पहली बार विधानसभा के उपचुनाव हुए हैं। यदि इन उपचुनावों में कांग्रेस उम्मीदवारों की जीत होती है तो जयपुर से लेकर दिल्ली तक सीएम गहलोत का झंडा बुलंद होगा, लेकिन यदि हार होती है तो पायलट खेमे का दबाव कांग्रेस के दिल्ली दरबार तक पड़ेगा। प्रदेश में ढाई वर्ष बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। भले ही इन उपचुनावों में दिखाने के लिए सचिन पायलट साथ रहे, लेकिन सब जानते हैं कि उम्मीदवारों के चयन से लेकर प्रचार तक की कमान स्वयं मुख्यमंत्री ने संभाल रखी थी। कई मंत्रियों को एक उपचुनाव का प्रभारी बनाया गया। कोरोना काल में भी मंत्रियों ने चुनाव क्षेत्र में ही डेरा जमाए रखा। यानी सनि पायलट के बगैर इन उपचुनाव को जीतने में सीएम गहलोत ने कोई कसर नहीं छोड़ी। तीन में से दो सुजानगढ़ (चूरू) तथा सहाड़ा (भीलवाड़ा) में कांग्रेस के ही विधायक थे। इसलिए सुजानगढ़ में दिवंगत विधायक भंवरलाल मेघवाल के पुत्र मनोज मेघवाल तथा सहाड़ा में दिवंगत विधायक कैलाश त्रिवेदी की पत्नी गायत्री देवी त्रिवेदी को ही उम्मीद बनाया गया। ताकि सहानुभूति के वोट भी मिल सके। जबकि भाजपा ने सुजानगढ़ से खेमाराम मेघवाल और सहाड़ा से रतनलाल जाट को उम्मीदवार बनाया। खेमाराम और जाट दोनों ही दो-दो बार यहां से विधायक रह चुके हैं। इसलिए कांटे की टक्कर बताई गई। राजसमंद विधानसभा की सीट भाजपा के पास थी। विधायक किरण माहेश्वरी के निधन के बाद उपचुनाव में भाजपा ने भी दिवंगत किरण माहेश्वरी की पुत्री दीप्ति माहेश्वरी को उम्मीदवार बनाया। जबकि कांग्रेस के तनसुख बोहरा को उम्मीदवार बनाया है। यहां भी कांटे की टक्कर बताई जा रही है। भाजपा के लिए सीएम गहलोत पहले ही टिप्पणी कर चुके हैं। गहलोत का कहना रहा कि यदि उन उपचुनावों में भाजपा जीतती है तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। सिर्फ भाजपा विधायकों की संख्या 71 से बढ़कर 74 हो जाएगी, लेकिन यदि कांग्रेस जीतती है तो सरकार को मजबूती मिलेगी और प्रदेशभर का विकास तेज होगा। सीएम गहलोत की टिप्पणी अपनी जगह है, लेकिन सब जानते हैं कि इन उपचुनावों में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की कोई सक्रियता नहीं थी। राजे किसी भी क्षेत्र में प्रचार करने भी नहीं गई। यदि भाजपा को दो सीटें भी मिलती है तो मौजूदा प्रदेश नेतृत्व को मजबूती मिलेगी। इन चुनावों को जीतने के लिए भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने भरपुर मेहनत की है।
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