अब फोन रिसीव न करने पर आदिवासी छात्रा नील कुसुम की हत्या शाहबाज ने कर दी। आखिर किसे सबक लेने की जरूरत है?

27 दिसंबर को प्रसारित मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि छत्तीसगढ़ की आदिवासी छात्रा नील कुसुम की हत्या शाहबाज नामक युवक ने कर दी है। नील कुसुम का कसूर इतना ही था कि उसने शाहबाज का फोन रिसीव नहीं किया। गुस्से में शाहबाज ने कुसुम के मुंह पर धारदार हथियार से ऐसा बार किया उसकी मौत हो गई। हमले के बाद शाहबाज फरार हो गया। आदिवासी छात्रा कुसुम की हत्या की खबर तब आई है, जब टीवी एक्ट्रेस तुनिषा शर्मा की मौत की खबर सुर्खियों में है। तुनिषा की मौत का कारण उसके प्रेमी जीशान खान को बताया जा रहा है। तुनिषा की मौत के बाद जीशान को गिरफ्तार कर लिया है। पिछले दिनों जब दिल्ली में श्रद्धा के 35 टुकड़े वाली खबर आई थी, तब एक बार फिर लव जिहाद का मुद्दा उछला था, क्योंकि श्रद्धा को भी उसके प्रेमी आफताब ने बड़ी बेरहमी से मारा था। ये घटनाएं तो वे हैं जो अभी सुर्खियों में हैं, लेकिन ऐसी सैकड़ों घटनाएं होती है, जिनके बारे में पता ही नहीं चलता। सवाल उठता है कि ऐसी घटनाओं से सबक कौन लेगा? जिस बेरहमी से आदिवासी छात्रा नील कुसुम को मारा गया, उससे प्रतीत होता है कि शाहबाज के दिल में मोहब्बत की कोई बात नहीं थी। यदि शाहबाज, कुसुम को प्यार करता तो उसके मुंह पर हथियार से वार नहीं करता। इसी प्रकार आफताब भी अपनी प्रेमिका श्रद्धा के 35 टुकड़े नहीं करता जबकि श्रद्धा ने तो अपने परिवारों वालों के खिलाफ जाकर आफताब के साथ रहने का फैसला किया था। अब एक्टे्रस तुनिषा शर्मा की माताजी भी टीवी न्यूज चैनलों पर रोते हुए जीशान खान को हत्यारा बता रही हैं। जिन लड़कियों को लगता है कि ऐसे युवकों से प्यार मोहब्बत करना गलत नहीं है, नील कुसुम, तुनिषा शर्मा और श्रद्धा की हत्याओं से कुछ तो सबक लेना चाहिए। कोई युवक सही मायने में प्रेम करेगा तो अपनी प्रेमिका को कभी भी बेरहमी से नहीं मारेगा। आधी आबादी पर कोई अंकुश लगाने की बात अब बेमानी है। अब तो लड़कियों को ही समझने की जरूरत है। समझना तो यह भी जरूरी है कि माता पिता ने कितनी कठिनाइयों के बाद लड़की का पाला और उच्च शिक्षा के लिए किसी महानगर में भेजा। आमतौर पर देखा गया है कि जो लड़कियां उच्च शिक्षा के लिए घर से निकलती है फिर वे लौट कर नहीं आती। उच्च शिक्षा लेने के बाद महानगरों में ही नौकरी करने लग जाती हैं। ऐसी लड़कियों को अपने आप पर ज्यादा नियंत्रण की जरूरत है। उन माता पिता की पीड़ा का अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिन की बेटियों की हत्या शाहबाज, आफताब जैसे युवकों ने कर दी। अच्छा हो कि उच्च शिक्षा ग्रहण करने और फिर नौकरी प्राप्त करने वाली लड़कियां अपने माता-पिता की पसंद के लड़के से ही विवाह करें। कोई माता-पिता नहीं चाहेगा कि विवाह के बाद उनकी बेटी को परेशानी हो। अब जमाना भी बदल गया है। मध्यम वर्गीय परिवार के माता-पिता भी अपनी बच्ची की पसंद को प्राथमिकता देते हैं। माता-पिता को लड़का पसंद आ जाने के बाद भी यही कहा जाता है कि लड़की को लड़का पसंद आने पर रिश्ता पक्का होगा। यानी कोई भी माता-पिता अपनी पसंद को बच्ची पर नहीं थोपता है। यह सोच शाहबाज, आफताब, जीशान खान जैसे युवकों के मामलों में ही नहीं होती, बल्कि अधिकांश तौर पर होती है। उच्च शिक्षा तो बहुत आगे की बात 10वीं और 12वीं उत्तीर्ण करने वाली लड़कियों को भी अपनी पसंद का वर चुनने की स्वतंत्रता हो गई है। सवाल उठता है कि जब वर चुनने की स्वतंत्रता है फिर ऐसे युवकों को चयन क्यों किया जाता है जो शरीर के 35 टुकड़े कर दे या फिर मुंह पर हमला कर हत्या कर दें। सवाल शाहबाज, आफताब और जीशान खान का ही नहीं है बल्कि युवक के चयन में सतर्कता बरतने की है। बेटियां महफूज रहें यह हर माता पिता चाहता है। मुस्लिम धर्म में तो लड़कियों को बहुत संभाल कर रखा जाता है। तालिबान के शासन वाले अफगानिस्तान में तो लड़कियों को शिक्षा लेने पर ही प्रतिबंध रखा है। अफगानिस्तान के शासन में लड़कियों के शिक्षा ग्रहण के खिलाफ है। हालांकि भारत में मुस्लिम लड़कियों को भी शिक्षा ग्रहण की स्वतंत्रता है, लेकिन भारत में ऐसी संस्थाएं हैं जो तालिबान की नीतियों की पक्षधर है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (27-12-2022)
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