पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने रगड़ाई के बाद ढोली-घोड़ा शब्द का इस्तेमाल किया। आखिर ढोली-घोड़ा का क्या मतलब है? जसवंत दारा का सटीक कार्टून।

अशोक गहलोत जब राजस्थान के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने कांग्रेस में अपने प्रतिद्वंदी नेता सचिन पायलट के लिए रगड़ाई शब्द का इस्तेमाल किया था। गहलोत का कहना था कि रगड़ाई हुए बिना ही सचिन पायलट को बहुत कुछ मिल गया है, तब राजनीति के जानकारों ने रगड़ाई शब्द के अनेक अर्थ निकाले। लेकिन अब एक मार्च को अशोक गहलोत ने राजस्थान में भाजपा सरकार के मंत्रियों की तुलना ढोली-घोड़ा से की है। राजनीति के जानकार अब ढोली घोड़ा का मतलब समझने में लगे हुए हैं। ढोली घोड़ा समृद्ध राजस्थानी भाषा से जुड़ा हुआ है, इसलिए मैंने राजस्थान भाजपा के विद्वान और पद्मश्री सम्मान प्राप्त सीपी देवल से ढोली घोड़ा का अर्थ समझने का प्रयास किया। देवल ने कहा कि जब एक घोड़ा किसी ठाकुर के पास होता है तो उसकी स्थिति मजबूत होती है, क्योंकि ठाकुर के पास घोड़े को खिलाने के लिए अच्छा दाना, चारा, पानी होता है। इसलिए ठाकुर के घोड़े को दमदार माना जाता है। लेकिन वहीं घोड़ा किसी ढोली (ढोल बजाने वाला) को मिल जाए तो घोड़े का कमजोर होना स्वाभाविक है। जो ढोली स्वयं के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ मुसीबत से करता है, वह अपने घोड़े को हरा चारा और पौष्टिक दाना कहां से खिलाएगा? चूंकि ढोली का घोड़ा कमजोर और बेदम हो जाता है, इसलिए राजस्थान में ढोली-घोड़ा की कहावत बनी। देवल ने कहा कि राजस्थानी भाषा बहुत समृद्ध और सटीक है। आप कम शब्दों में भी बड़ी बात कह सकते हैं। मुझे नहीं पता कि पूर्व सीएम गहलोत ने ढोली घोड़ा शब्द का उपयोग किस संदर्भ में किया, लेकिन राजस्थान में ढोली घोड़ा शब्द के कई अर्थ निकलते हैं। यह कहावत कई मामलों में सटीक बैठती है। 
गहलोत अपने मंत्रियों के बयान सुने:
एक मार्च को जयपुर में पत्रकारों से संवाद करते हुए पूर्व सीएम गहलोत ने कहा कि भाजपा सरकार में मंत्रियों की कोई सुनवाई नहीं हो रही है। मुख्य सचिव सुधांश पंत ही मुख्यमंत्री की भूमिका में है। मुख्यमंत्री से ज्यादा पावर फुल एक डिप्टी सीएम है। भाजपा सरकार के मंत्रियों की तुलना गहलोत ने ढोली घोड़ा से क्योंकि यह तो वे ही जाने, लेकिन अच्छा होता कि अशोक गहलोत अपने मंत्रियों के बयान सुन लेते। अशोक गहलोत जब मुख्यमंत्री थे, तब प्रताप सिंह खाचरियावास, अशोक चांदना, शांति धारीवाल, लालचंद कटारिया आदि मंत्रियों ने सीधे मुख्यमंत्री के अधिकारों को ही चुनौती दे दी। अशोक चांदना ने तो यहां तक कहा कि गहलोत को मंत्रियों के अधिकार भी अपने प्रमुख शासन सचिव कुलदीप रांका को दे दिए जाने चाहिए। खाचरियावास ने आईएएस की सर्विस सीट भरने का अधिकार मंत्रियों को देने की मांग की। धारीवाल ने तो कांग्रेस हाईकमान को ही चुनौती दे दी। कांग्रेस सरकार के मंत्रियों के बयानों से जाहिर था कि घोड़ों ने कुछ ज्यादा ही चारा पानी खा लिया। लोकतांत्रिक व्यवस्था में मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्री परिषद काम करती है। कोई भी मंत्री मुख्यमंत्री के अधिकारों को चुनौती नहीं दे सकता। अशोक गहलोत माने या नहीं, लेकिन ईआरसीपी पर मध्यप्रदेश और यमुना नदी के पानी पर हरियाणा से समझौता करने का श्रेय मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को ही जाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि मौजूदा भाजपा सरकार में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की जनहित की किसी भी योजना को बंद नहीं किया है। जहां तक मुख्य सचिव सुधांश पंत का सवाल है तो वे प्रशासनिक ढांचे को मजबूत करने का काम कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस शासन में प्रशासनिक ढांचे की रीढ़ को ही तोड़ दिया गया था। सेवानिवृत्ति के बाद लाभ का पद लेने की लालच में डीबी गुप्ता, निरंजन आचार्य जैसे मुख्य सचिवों ने किस तरह काम किया इसे प्रदेश की जनता ने देखा है। 
सटीक कार्टून:
ढोली घोड़ा पर कार्टूनिस्ट जसवंत दारा ने सटीक कार्टून बनाया है। इससे ढोली घोड़ा शब्द का भावार्थ भी समझा जा सकता है। कार्टून को मेरे फेसबुक पेज  www.facebook.com/SPMittalblog पर देखा जा सकता है। मोबाइल नंबर 9828054045 पर जसवंत दारा को बधाई दी जा सकती है। 
S.P.MITTAL BLOGGER (02-03-2024)
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