तो आईएस अजमेर में आतंकी हमले की फिराक में है। दो आतंकियों ने अजमेर आकर भी ख्वाजा साहब की जियारत नहीं की।

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सब जानते हैं कि हिन्दुओं का तीर्थ स्थल पुष्कर और सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह होने की वजह से अजमेर का अन्तराष्ट्रीय महत्व है। यहां होने वाली छोटी से छोटी घटना भी अन्तराष्ट्रीय मंच पर सुर्खियां बनती हैं। इस महत्व को देखते हुए ही खूंखार आतंकी संगठन आईएस ने हमला करने की योजना बनाई है। 14 जुलाई की रात को आईएस से जुड़े दो आतंकी मोहम्मद इब्राहीम याजदानी और मोहम्मद हबीब इलियासी को राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए की एक टीम अजमेर लेकर आई। इन दोनों को एनआईए ने 19 जून को हैदराबाद में गिरफ्तार किया था। पूछताछ के दौरान दोनों ने बताया कि वे 10 से 14 जून तक अजमेर में ख्वाजा साहब की दरगाह के निकट संचालित होने वाले होटल दरबार में ठहरे थे। एनआईए की टीम ने दोनों को अजमेर लाकर होटल की तस्दीक करवाई। अब एनआईए यह पता लगा रही है कि अजमेर में इन दोनों आतंकियों ने किन लोगों से मुलाकात की। आईएस जैसे संगठन मुस्लिम बहुल्य क्षेत्र में स्लीपर सेल रखते हैं यानि गुप्त व्यक्ति। ऐसे स्लीपर सेलों से तभी सम्पर्क किया जाता है जब किसी वारदात को अंजाम देना हो। जांच टीम का मानना है कि यह दोनों आतंकी अपने स्लीपर सेलों को सक्रिय करने के लिए अजमेर आए थे। आईएस अपने स्लीपर सेलों की भनक किसी को भी लगने नहीं देता है। हालांकि पांच दिनों तक अजमेर में ठहरने वाले दोनों आतंकियों से स्लीपर सेलों के बारे में जानकारी लेना मुश्किल है। लेकिन फिर भी मोबाइल की कॉल डिटेल के माध्यम से दरगाह क्षेत्र के उन व्यक्तियों की पहचान की जा रही है जिन्होंने आतंकियों से मुलाकात की थी।
नहीं की जियारत:
पूछताछ में दोनों आतंकियों ने कहा है कि पांच दिनों तक दरगाह क्षेत्र में ठहरने के बाद भी सूफी संत ख्वाजा साहब की दरगाह की जियारत नहीं की। असल में आईएस की विचारधारा दरगाहों और सूफीवाद के खिलाफ है। आईएस की विचारधारा मानने वाले लोगों को यजीद का समर्थक माना जाता है। यजीद ने ही मोहम्मद साहब के परिजनों को भी सताया था। ऐसे में आईएस को अजमेर में आतंकी हमला करने पर कोई अफसोस भी नहीं होगा।
दरगाह से जाता है भाईचारे का पैगाम:
आईएस जैसे संगठन भले ही अजमेर में आतंकी हमले की फिराक में हों, लेकिन सूफी संत ख्वाजा साहब की दरगाह से ही भाई चारे का पैगाम दुनिया भर में जाता है। इसलिए ख्वाजा साहब की दरगाह को साम्प्रदायिक सद्भावना की मिसाल माना जाता है। यही वजह है कि ख्वाजा साहब के वंशज और दरगाह के दीवान सैय्यद जेनुल आबेदीन अली कई बार आईएस की खुलेआम निंदा कर चुके हैं। दीवान आबेदीन तो आईएस को इस्लाम का दुश्मन मानते हैं।
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(एस.पी. मित्तल) (15-07-2016)
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